अन्तर्राष्ट्रीयदस्तक-विशेष

डोनाल्ड ट्रंप के उदय से उग्र राष्ट्रवाद के उभार को बल

डॉ. रहीस सिंह
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत को दुनिया भर खासकर पश्चिमी देशों की राजनीति में धुर राष्ट्रवादियों की बढ़त के मानक के तौर पर देखा जा रहा है। ट्रंप के विवादित बयान और अमेरिकी नीतियों को अलग राह पर ले जाने के इरादे के वैश्विक राजनीति पर बड़े असर के आसार भी हैं। वर्ष 1799 में नेपोलियन बोनापार्ट ने रिवोल्यूशनरी सरकार के तख्तापलट का नेतृत्व किया था और स्वयं को प्रथम कांसुल के रूप में स्थापित कर विश्व इतिहास को पुनर्निर्देशित करने वाली व्यवस्था पेश की थी। क्या डोनाल्ड ट्रंप नेपोलियन की तरह ही विश्व व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं? जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप कट्टर, उन्मादी, राष्ट्रवादी और संरक्षणवादी की अपनी छवि के साथ अमेरिकी राजनीति के क्षितिज पर उभरे और राष्ट्रपति पद की जीत हासिल की, उससे इस शंका को बल मिलता है। इस तरह के निष्कर्ष उन परिस्थितियों में और भी प्रासंगिक लगने लगते हैं, जिनमें लगभग पूरी पश्चिमी दुनिया में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद शक्ति प्राप्त कर रहा हो तथा पूरा मध्य-पूर्व एक नये ध्वंस का इतिहास लिख रहा हो। तो क्या विश्व इतिहास में एक ऐसा नया अध्याय जुड़ सकता है, जो 18वीं-19वीं शताब्दी के इतिहास को दोहरा रहा हो? अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की विजय को कई विश्लेषक और समीक्षक सामान्य विजय के रूप में रेखांकित नहीं किया है। वे जिन वादों के साथ चुनाव जीते, उनमें उन्मादी राष्ट्रवाद, मस्जिदों पर निगरानी, आतंकवाद के विरुद्ध बम का इस्तेमाल, अवैध अप्रवासियों और सीरियाई प्रवासियों को रोकने के लिए अमेरिका व मैक्सिको के बीच एक बड़ी दीवार का निर्माण, जलवायु परिवर्तन, ट्रांस पैसिज़्कि पार्टनरशिप (टीपीपी) जैसे समझौते रद्द करना शामिल हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा कि वे सेना को इतना बड़ा और ताकतवर बना देंगे कि कोई अमेरिका से झगड़ने की हिम्मत न कर सके। उन्होंने सर्वअमेरिकावाद और सर्वसत्तावाद के तहत अमेरिका को सुनहरे युग में ले जाने की बात भी की।
चुनाव जीतने के बाद ट्रंप लगातार ऐसे संकेत दे रहे हैं, जो दुनिया को अज्ञात भय की ओर ले जाने वाले लगते हैं। ट्रंप चीन से सीधे टकराव की ओर जाते दिख रहे हैं। 1978-79 से स्थापित अमेरिका-चीन संबंध में परिवर्तन लाने के वे संकेत दे रहे हैं। वे एशियाई शांति के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके परिणाम एशिया-प्रशांत, यूरेशिया और मध्य-पूर्व में परिवर्तन ला सकते हैं और यूरोप में नये संयोजनों को जन्म दे सकते हैं। ट्रंप द्वारा पेंटागन के सबसे ऊंचे पद पर जनरल जेम्स मैटिस गेटी को, जो मैड डॉग के नाम से प्रसिद्ध रहे, को नियुक्त करना एक खतरनाक संकेत है। ये वही जनरल गेटी हैं, जिन्हें लोगों को गोली मारने में मजा आता है। एक्शन मोबिल के सीइओ रेम्स टिलरसन को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति की मंशा भी समझ से परे है। ट्रंप इस समय वैश्विक राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र में हैं। इसलिए उनके द्वारा उठाए गये कदमों से वैश्विक राजनीति प्रभावित होगी। लेकिन साथ ही पूरी दुनिया में कुछ नये उभारों को देखा जा सकता है जो विश्व शांति को प्रभावित कर सकता है। इनमें सबसे महत्वपर्ण बदलाव यूरोप में दक्षिण पंथ का उभार है, जिसमें वही विशेषताएं देखी जा सकती हैं, जो ट्रंप में देखी जा रही हैं। इन्हीं उभारों के कारण ब्रिटेन में ब्रेक्सिट के पक्ष में जनमत रहा, जर्मनी में पेगिडा जैसा आंदोलन शक्ति प्राप्त कर गया, फ्रांस में मरीन ली पेन का उभार देखा जा रहा है। जो देश कभी विश्व बाजार व्यवस्था के अगुआ थे, वे अब कट्टर राष्ट्रवादी एवं संरक्षणवादी होकर इसके ध्वंस का इतिहास लिखना शुरू कर रहे हैं। इसे कई संदर्भों और उदाहरणों के रूप में देखा जा सकता है। जैसे कि ब्रेक्सिट पर जनमत के निर्णय को यूके इंडिपेंडेंस पार्टी के नेता नाइजेल फैराज ने स्वतंत्रता दिवस के रूप में पेश किया था। यह स्थिति ब्रिटेन में ही नहीं है, बल्कि जर्मनी में भी कुछ समय पहले हुए तीन राज्यों के चुनावों भी देखी गयी। जहां जर्मनी की चांसलर मर्केल की कंजर्वेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन तीन राज्यों में से दो में हारी और उग्र दक्षिण पंथी विचारों वाली पार्टी एएफडी को भारी जीत मिली। इस पार्टी ने मर्केल की शरणार्थियों के प्रति नरम नीति बरतने के खिलाफ अभियान छेड़ा था। फ्रांस में राज्यों के चुनाव में मरीन ली पेन की पार्टी नेशनल फ्रंट को सफलता मिली और अब इस बात की संभावना व्यक्त की जा रही है कि 2017 के चुनाव में ली पेन राष्ट्रपति पद की सबसे प्रबल दावेदार होंगी। पोलैंड में पिछले वर्ष दक्षिण पंथी दल सत्ता में आ चुका है। हंगरी में प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान दक्षिण पंथ दल की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। स्विटजरलैंड में हुए चुनावों में स्विस पीपुल्स पार्टी को जीत हासिल हुई, जिसे कुछ हद तक कट्टर राष्ट्रवादी कहा जा सकता है। फिलहाल अमेरिकी राजनीति में डोनाल्ड ट्रंप के उदय के समानांतर यूरोप में भी उग्र राष्ट्रवादी और दक्षिण पंथी शक्तियों का उभार देखा जा सकता है। इनमें इस्लाम ज़ेबिया, इस्लामी आतंकवाद के विरोध के नाम पर पनपती नयी विचारधाराओं के साथ कट्टर राष्ट्रवाद एवं संरक्षणवाद प्रमुखता से उभरा है। अब वहां लेबर, लिबरल और कंजरवेटिव दलों का स्थान नवराष्ट्रवादी दल लेते हुए दिख रहे हैं। क्या राजनीति की इस नवराष्ट्रवादी विचारधारा से ऐसी विश्व व्यवस्था की अपेक्षा की जा सकती है, जहां शांति और स्वतंट्टाता संरक्षित हो। वास्तव में यह विषय इस समय दुनिया के लिए गंभीर चिंतन का है, भले ही अभी इस पर उतनी गंभीरता न देखी जा रही हो।
(लेखक विदेश मामलों के जानकार हैं।) 

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