तवांग के लिए रवाना हुए दलाई लामा, लेना पड़ा सड़क मार्ग का सहारा
दिरांग| तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा शुक्रवार को सड़क मार्ग से अरुणाचल प्रदेश के तवांग के लिए निकल पड़े हैं। दलाई लामा के इस दौरे से चीन बुरी तरह बौखलाया हुआ है। दलाई लामा तवांग से अरुणाचल प्रदेश का एक सप्ताह लंबा धार्मिक दौरा चार अप्रैल को ही शुरू करने वाले थे। लेकिन खराब मौसम के कारण उन्हें सड़क मार्ग का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि उनका हेलीकॉप्टर असम के डिब्रूगढ़ से उड़ान नहीं भर सका।
दलाई लामा के स्वागत के लिए तैयार है तवांग के बौद्ध धर्म अनुयायी
बर्फ से घिरे पहाड़ों तथा 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित तवांग में मोनपा लोग रहते हैं, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। पूरा कस्बा दलाई लामा के स्वागत के लिए तैयार है। पूरे तवांग को भारत तथा तिब्बत के झंडों तथा फूलों के अलावा, रंगीन प्रार्थना झंडों से सजाया गया है। सड़कों को रंग किया गया है और नालों की सफाई की गई है।
शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा तवांग मठ में ठहरेंगे। यह मठ भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बौद्ध मठ है। दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ तिब्बत का पोटला पैलेस है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सैकड़ों की तादाद में लोग पारंपरिक औपचारिक स्कार्फ लिए हुए सड़क पर अगरबत्तियां जला कर दलाई लामा के दर्शन तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खड़े हैं। अरुणाचल प्रदेश के पुलिस प्रमुख संदीप गोयल ने कहा कि सभी आवश्यक सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं।
दलाई लामा की एक झलक पाने के लिए लद्दाख तथा पड़ोसी देश भूटान से हजारों की तादाद में लोग तवांग पहुंच चुके हैं। मठ के सचिव लोबसांग खुम ने कहा, “हम दलाई लामा की यात्रा की तैयारी पिछले दो महीने से कर रहे हैं। हर कोई उनकी एक झलक पाना, उनसे बातें करना और उनका आशीर्वाद लेना चाहता है। दलाई लामा हमारे श्रद्धेय धर्मगुरु हैं।”
आठ वर्षो के दौरान दलाई लामा का यह पहला अरुणाचल दौरा होगा। दलाई लामा ने इस पहाड़ी राज्य का पहला दौरा सन् 1983 में किया था और अंतिम दौरा सन् 2009 में किया था। लामा सन् 1959 से ही भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। भारत में लगभग एक लाख निर्वासित तिब्बती रहते हैं।