नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस ने शुक्रवार को एक मोर को लकड़ी के बक्से में दफनाने से पहले तिरंगे में लपेटा और इसे सही प्रक्रिया बताया, कहा कि यह प्रोटोकॉल के मुताबिक किया गया। पुलिस ने उच्च न्यायलय के बाहर वाली सड़क से मोर को बचाया था लेकिन घायल मोर बच न सका और उसने दम तोड़ दिया। तिरंगे में लपेटकर उसे दफनाए जाने पर पुलिस ने कहा कि वह महज प्रोटोकॉल का पालन कर रही है क्योंकि मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘हमने मोर को पूरा सम्मान दिया और राष्ट्रीय पक्षी होने के नाते उसे तिरंगे में लपेटकर दफनाया। यह एक प्रोटोकॉल है और हम भविष्य में भी ऐसा ही करेंगे अगर हमारी कस्टडी में कोई मोर आता है।’ वहीं वन्यजीव कार्यकर्ताओं का कहना है कि मोर शेड्यूल-I पक्षी है, इसलिए यह नियमों का उल्लंघन हो सकता है। शुक्रवार को पुलिस को एक घायल मोर की सूचना मिली, जो हाईकोर्ट के गेट नंबर 5 के बाहर था। वहां पहुंचकर उसे चांदनी चौक के जैन बर्ड हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उसे मृत बतया गया। इसके बाद उसे जौनापुर के अस्पताल ले जाया गया जहां उसका पोस्टमॉर्टम हुआ और फॉरेस्ट अधिकारी के सामने उसे दफनाया गया। अधिकारी ने बताया, हम मौत की वजह नहीं जानते और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अगले सप्ताह मिलेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि पेड़ से गिरने से मोर घायल हो गया था।
ऐनिमल ऐक्टिविस्ट गौरी मौलेखी ने कहा कि उन्होंने पिछले महीने वन विभाग को एक पत्र लिखा था, जब जनकपुरी पुलिस स्टेशन में एक मृत मोर मिला था। मौलेखी ने कहा, यह वन्यजीव संरक्षण ऐक्ट का उल्लंघन है क्योंकि कोई एनजीओ या पुलिस मृत जानवर का पोस्टमॉर्टम नहीं करा सकती और न उसे दफना सकती है। ऐसे मामले वन विभाग को फॉरवर्ड किए जाते हैं और वही उनको दफनाना या जलाना सुनिश्चित करते हैं ताकि उनके अंगों की तस्करी न हो सके। मोरों के मामले में सही प्रोटोकॉल फॉलो नहीं किया जाता है और मैंने विभाग को लिखकर हर पुलिस स्टेशन को नियमों से अवगत कराने के लिए कहा है।
जैन हॉस्पिटल के मैनेजर सुनील जैन ने कहा कि उनके पास हर माह औसतन मोरों से जुड़े 10 मामले आते हैं, जिनमें से कुछ गर्मी के थपेड़ों, कुछ अन्य हदसों तो कुछ ट्रैफिक से मर जाते हैं। मोर को तिरंगे में लपेटना गलत है और पुलिसकर्मियों ने वन्यजीव कानून का उल्लंघन किया है। टीओआई से बातचीत में एक्सपर्ट्स ने कहा कि इस तरह का कोई प्रोटोकॉल नहीं है और यह गतिविधि वन्यजीव संरक्षण ऐक्ट, 1972 के उल्लंघन के दायरे में आ सकती है। इस ऐक्ट के तहत शेड्यूल-I जानवरों के शवों पर राज्य का अधिकार होता है और उनको जलाए जाने या दफनाने का अधिकार स्टेट फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के पास होता है।