तीन तलाक पर कानून बनने से पहले उलेमाओं से बातचीत हो, मुस्लिम समाज की मांग
सहारनपुर. तीन तलाक पर केंद्र सरकार की कैबिनेट में मंजूरी मिलने के बाद अब इस पर मुस्लिम समाज कानून बनने से पहले बातचीत करना चाहता है। बता दें कि मोदी कैबिनेट ने जिस प्रस्ताव को मंजूरी दी है, उसमें तीन तलाक को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही तीन साल की सजा का भी प्रावधान रखा गया है।
क्या कहते हैं मौलाना….
– इस मामले में देवबंद अरबी विद्धान मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा, “सुप्रीमकोर्ट ने पहले भी हिदायत दी थी कि एक साथ तीन तलाक देने पर कानून बनाया जाए, उससे पहले इस मामले में उलेमाओं और अन्य तंजीमों खासकर ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड को बातचीत में शामिल कर उनसे राय लेनी चाहिए।”
– “तीन तलाक में सजा किस बात की है ? यदि तीन तलाक एक साथ देने पर तलाक हो जाता है, तब सजा की बात सोची जा सकती है। अगर एक साथ तीन तलाक नहीं हुआ है, फिर सजा का कोई मतलब नहीं बनता।”
– “यह एक टेक्निकल सवाल है, इस पर कानून बनाये जाने से पहले बहस होनी चाहिए। मुसलमान भी यही कहते हैं। दारूल उलूम, मुस्लिम तंजीमें और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी यही कहता है।
ट्रिपल तलाक का विरोध करते हैं मुसलमान
– वहीं इस मामले में पूर्व विधायक माविया अली ने कहा,”मुसलमान पहले से इस बात का विरोध करते हैं कि एक साथ तीन तलाक नहीं दिया जाना चाहिए। हजरत उमर के वक्त में भी एक साथ तीन तलाक देने वाले को कोड़े मारने की सजा मिलती थी। एक साथ तीन तलाक देने वालों को सजा मिलनी चाहिए। यह मसला सरकार का नहीं, हदीस का भी है।
ट्रिपल तलाक कानून को कैबिनेट से मंजूरी
-मोदी कैबिनेट ने शुक्रवार को ट्रिपल तलाक पर बिल को मंजूरी दे दी। इस बिल को विटंर सेशन में रखा जाएगा। मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल, 2017 ट्रिपल तलाक बिल के नाम से पॉपुलर है।
– बिल में एक साथ तीन तलाक देने पर सजा का प्रोविजन है। इसमें महिला को मेंटेनेंस मांगने का अधिकार भी शामिल है।” बता दें कि अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दिया था। इसके बाद भी देश में ट्रिपल तलाक से जुड़े कुछ मामले सामने आए थे। सरकार की तरफ से कहा गया था वो तीन तलाक पर रोक लगाने के लिए नया कानून लाएगी।