तीन तलाक : विपक्ष के हंगामे के बीच लोकसभा में नया बिल पेश
नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज नया विधेयक लोकसभा में पेश किया। इस दौरान सदन में हंगामा हुआ। कांग्रेस नेता शशि थरूर और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया। थरूर ने कहा कि तीन तलाक बिल मुस्लिम परिवारों के खिलाफ है। हम इस बिल का समर्थन नहीं करते। एक समुदाय के बजाय सभी के लिए कानून बनाना चाहिए। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में बिल पास हुआ था। राज्यसभा में बिल पेंडिंग था लेकिन लोकसभा भंग होने के चलते बिल खत्म हो गया। लिहाजा नया बिल लेकर आए। नए बिल में सुधार के लिए बदलाव किया। जनता ने हमें कानून बनाने के लिए चुना है। भारत का अपना एक संविधान है। किसी भी खवातीन (महिला) को तलाक, तलाक, तलाक बोलकर उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने कहा- तीन तलाक बिल मुस्लिम महिलाओं के हित में नहीं है। केरल के कोल्लम से सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने सबरीमाला मंदिर विवाद पर लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों की मौत को लेकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ, राज्यसभा में श्रद्धांजलि दी गई। मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में तीन तलाक विधेयक को लोकसभा से पास करा लिया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण वहां पारित नहीं हो सका था। 12 जून को कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि नया विधेयक फरवरी में पेश हुए अध्यादेश का स्थान लेगा। जावड़ेकर ने उम्मीद जताई कि इस बार यह बिल राज्यसभा से भी पास करा लिया जाएगा। 17वीं लोकसभा के पहले सत्र में केंद्र सरकार तीन तलाक समेत 10 बिल पेश कर सकती है। संसदीय नियमों के मुताबिक, जो विधेयक सीधे राज्यसभा में पेश किए जाते हैं, वो लोकसभा भंग होने की स्थिति में स्वत: समाप्त नहीं होते। जो विधेयक लोकसभा में पेश किए जाते हैं और राज्यसभा में लंबित रहते हैं, वे निचले सदन यानी लोकसभा भंग होने की स्थिति में अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। तीन तलाक बिल के साथ भी यही हुआ और इसी वजह से सरकार को नया विधेयक लाना पड़ रहा है। लोकसभा में तीन तलाक पर कानूनी रोक वाला विधेयक फरवरी में पारित हो गया था। राज्यसभा में एनडीए सरकार के पास बहुमत नहीं था, इसलिए बिल वहां अटका रहा। अब सरकार बजट सत्र में इसे पेश करने और दोनों सदनों से पास कराने की उम्मीद कर रही है। अध्यादेश को भी कानून में तभी बदला जा सकता है जबकि संसद सत्र आरंभ होने के 45 दिन के भीतर उसे पास करा लिया जाए। अन्यथा अध्यादेश की अवधि समाप्त हो जाती है। अध्यादेश के आधार पर तैयार नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा। मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा।