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तीन साल से गायब थे शाहाबाद में मिले मोर्टार शेल, रिपोर्ट भी दर्ज नहीं

r1_1443818140कुरुक्षेत्र। शाहाबाद में लगभग ढाई माह पहले रेलवे ट्रैक के पास मिले मोर्टार शेल मामले में अब नया खुलासा हुआ है। ये मोर्टार बम 2012 से गायब हैं। इन्हें केरल के एर्नाकुलम के अलवाय में स्थित नेवी आयुद्ध डिपो से परीक्षण के लिए ट्रेन से इटारसी आॅर्डिनेंस फैक्ट्री भेजा गया था, लेकिन हथियारों को बॉक्स इटारसी पहुंचा ही नहीं।
 
सुरक्षा से जुड़ा मसला होने के बाद भी कोई केस दर्ज नहीं कराया गया। नौ सेना ने रेलवे से सिर्फ पत्राचार करके काम चला लिया। 51 एमएम के 10 मोर्टार बमों का टिन बॉक्स तीन साल बाद 22 जुलाई को शाहाबाद के पास रेलवे ट्रैक पर पड़ा मिला था। तब नौ मोर्टार शेल बरामद हुए थे। एक अन्य बम की जीआरपी अब तक तलाश रही थी। 10वां बम वहीं मिला जहां बाकी मिले थे। माना जा रहा है कि मामला ठंडा पड़ने पर शायद कोई उसी जगह पर रख गया हो। हालांकि सेना के हथियारों का गायब होना रेलवे की चूक या कोई साजिश, ये दिल्ली-जम्मू ट्रैक पर कैसे आया, जीआरपी, अम्बाला अभी तक इसका पता नहीं लगा सकी हैं। इटारसी में आर्म्स टेस्टिंग रेंज है। इसलिए अक्टूबर 2012 अलवाय के नेवी डिपो से हथियार इटारसी के लिए बुक कराया गया था। मोर्टार शेल 2010 में पुणे की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से बने थे।
नियमानुसार सेना को दो साल में इनकी जांच करानी होती है। सूत्रों के मुताबिक शेल की मियाद इतनी ही होती है। शाहाबाद में जो बाॅक्स मिला था, उस पर 20 अगस्त, 2012 की तिथि लिखी थी। लॉट नंबर 20/00/088बी लिखा था। बक्से पर ही फॉर पीआरडीडीएफ लिखा था और कमांडेंट सीपीई, इटारसी की मुहर लगी थी। वहीं दूसरे हिस्से पर नौसेना का स्टीकर लगा है।
 
सेना या पैरामिलिट्री ही ऐसे मोर्टार बम यूज करती है
51 एमएम के ये मोर्टार शेल आमतौर पर सेना या अर्धसैनिक बल के इस्तेमाल के लिए होते हैं। इनका प्रयोग युद्ध जैसे हालात में किया जाता है। ये बम भारी ताबाही मचाते हैं और पहाड़ी इलाकों में प्रयोग के लिए अच्छे माने जाते हैं। मैदानी इलाकों में 91 एमएम के गोले होते हैं।
 
नेवी ने टेस्टिंग के लिए केरल से इटारसी भेजा था, शाहाबाद में मिले
नेवी के मोर्टार शेल शाहाबाद के पास ट्रैक पर कैसे पहुंचे, इसको लेकर कई आशंकाएं हैं। जीआरपी के मुताबिक अभी जांच पूरी नहीं हुई है। सूत्राें के मुताबिक बुकिंग के समय माल बाबू की चूक के कारण मोर्टार शेल का बॉक्स गार्ड के रिकार्ड में नहीं आया। सवाल है कि ऐसा गलती से हुआ या साजिशन किया गया। आशंका ऐसी भी कि यह ओवर कैरेज (बुक सामान का गंतव्य के बजाय कहीं और पहुंच जाना) का मामला हो सकता है। लेकिन ऐसा था तो सामान किसी ना किसी शहर में रेलवे के पास ही पहुंचता। रेलवे ट्रैक के पास गिरे न मिलते।
 
 
>माना जा रहा था-हथियार लेकर जा रही सेना की किसी ट्रेन से गिरे होंगे। अब तक की जांच में स्पष्ट हो गया कि मोर्टार शेल नेवी के थे?
>बुक कराया गया सामान गंतव्य तक नहीं पहुंचा। कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई। सैन्यकर्मी की मिलीभगत भी हो सकती है?
>इटारसी पहुंचने बजाय ये शाहाबाद तक कैसे पहुंचे। वो भी तीन साल बाद। कोई इन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए तो नहीं ले जा रहा था?
>शाहाबाद के पास भी ये खुद नहीं गिरे, बल्कि गिराए गए। शायद ट्रेन में चेकिंग हो रही थी और ले जाने वाले व्यक्ति ने ट्रैक के पास गिरा दिए।

 

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