जय प्रकाश मानस
अपनी सफलता में औरों को एकाध शख़्सियत ही श्रेय दे पाते हैं । खय्याम साहब ऐसे ही संगीतकार थे ।
कल वही महान् कलाप्रेमी हमेशा के लिए ख़ामोश हो गये ।
वे पूछने पर बड़े प्यार से कहा करते थे :
‘पाकीज़ा’ की सफलता के बाद ‘उमराव जान’ का संगीत बनाते समय मुझे बहुत ही डर लग रहा था ।
‘पाकीज़ा’ और ‘उमराव जान’ की पृष्ठभूमि एक जैसी थी । खय्याम की मेहनत रंग लाई और 1982 में रिलीज हुई मुज़फ़्फ़र अली की ‘उमराव जान’ बेहद कामयाब रही।
झूठ न बुलवाये मुझसे अल्लामियाँ – रेखा ने मेरे संगीत में जैसे जान डाल दी थी…
उनके अभिनय को देखकर मुझे तो लगता है कि रेखा पिछले जन्म में उमराव जान ही थी।”