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…तो क्या अदालत ने अटल के केस को झूठा साबित कर दिया!

atal-bihari-vajpayee-551e427de6681_exlst21 वर्ष पूर्व बिजली विभाग की टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता को लेकर अधिशासी अभियंता के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री व लखनऊ के तत्कालीन सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने केस दर्ज कराया था। इस मामले में किसी के हाजिर न होने पर मेगा लोक अदालत में सीजेएम हितेन्द्र हरि ने पुलिस की फाइनल रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए प्रकरण को समाप्त कर दिया।

वर्ष 1994 में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी की शिकायत पर राज्यपाल ने गंभीर रुख अपनाते हुए मामले की जांच के बाद तत्कालीन अधिशासी अभियंता कृष्णा के खिलाफ हजरतगंज में रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश दिया।

पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद अधिशासी अभियंता को क्लीन चिट देते हुए मामले में फाइनल रिपोर्ट लगाकर बताया कि आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला नहीं बनता है तथा उसके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। जबकि दूसरी ओर आरोपी के खिलाफ चली विभागीय जांच में आरोपी को दोषी पाया गया था।

पुलिस की फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल होने के बाद इसकी सुनवाई सीजेएम कोर्ट में शुरू हुई, तो तत्कालीन सीजेएम ने पुलिस की फाइनल रिपोर्ट को 30 नवम्बर 2000 को निरस्त कर दिया तथा पुलिस को आदेश दिया कि इस मामले की अग्रिम विवेचना करें।

कोर्ट के आदेश के बाद विवेचक तत्कालीन क्षेत्राधिकारी ने मामले की विवेचना के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के बयान दिल्ली जाकर दर्ज किए। पुलिस ने इस मामले की विवेचना के बाद फिर से आरोपी को क्लीन चिट देते हुए साक्ष्य के अभाव में फाइनल रिपोर्ट लगाकर कोर्ट में भेज दिया।

कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट आने केबाद से कोर्ट लगातार मामले के वादी अटल बिहारी वाजपेई को नोटिस व सम्मन भेज रही थी कि वह कोर्ट में हाजिर होकर अपना पक्ष रखें।

कोर्ट की लगातार नोटिस व सम्मन भेजने केबावजूद न तो पूर्व प्रधानमंत्री अपना पक्ष रखने के लिए हाजिर हुए न ही उनकी ओर से कोई आपत्ति ही कोर्ट में दाखिल की गई।

इस पर शनिवार को आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत में सीजेएम हितेन्द्र हरि ने माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मामले में अपना पक्ष नहीं रखना चाहतेलिहाजा पुलिस की फाइनल रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया।

 

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