..थम गई बोली, बंदूक से न गोली से बात बनेगी बोली से
अपने मुख्यमंत्रित्व काल में चाहे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी रहे हों या फिर नरेंद्र मोदी वे पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने की वकालत करते रहे। मुफ्ती के प्रयासों का ही नतीजा रहा कि दोनों देशों के बीच दोनों ही प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में कड़वाहट खत्म करने के प्रयास शुरू हुए।
2002 के अपने पहले मुख्यमंत्री के कार्यकाल में उन्होंने तत्कालीन प्रधान अटल बिहारी वाजपेयी को श्रीनगर आने का न्योता दिया। पिछले दो दशक के इतिहास में पहली बार पीडीपी के मंच से किसी प्रधानमंत्री ने संबोधन किया।
इसके साथ ही भारत और पाकिस्तान तथा केंद्र व अलगाववादियों के बीच बातचीत का रास्ता भी खुला। उनके प्रयासों से क्रास एलओसी ट्रेड को बढ़ावा देने की दिशा में भी कदम उठाए गए। इसके तहत श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू की गई।
श्रीनगर-मुजफ्फराबाद तथा पुंछ-रावलाकोट क्रास एलओसी ट्रेड शुरू हो पाया। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में हीलिंग टच पालिसी के तहत काम करते हुए लोगों में विश्वास बहाली की दिशा में प्रयास किए।
रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने रियासत को 80 हजार करोड़ रुपये के भारी भरकम पैकेज का एलान किया। हालांकि, यहां उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत का कोई संदेश तो नहीं दिया लेकिन बाद के दिनों में एनएसए स्तर की वार्ता और फिर मोदी का पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर पहुंच जाना इस दिशा में मुफ्ती द्वारा उठाई गई आवाज का प्रतिफल माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जोरावर सिंह सभागार में शपथ ग्रहण करने के ठीक बाद मुफ्ती ने कहा था कि कश्मीर में अमन और विकास के लिए पाकिस्तान से वार्ता के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हुर्रियत से वार्ता शुरू करने पर जोर देते हुए कहा कि सज्जाद लोन ने मुख्य धारा में लौटने की पहल की है। भविष्य में कुछ और लोग ऐसा कर सकते हैं।