दर्शन मात्र से मिलता है पति और पुत्रों की रक्षा का फल
काले तिल से होती है पूजा
धूमावती जयंती समारोह में धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है। काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पुत्र और पति की रक्षा के लिए मां धूमावती की पूजा की जाती है। हां सुहागिनें इस पूजा में भाग नहीं लेती है। इसके पीछे एक बड़ा कारण है।
मां धूमावती की कथा
पुराणों में मां धूमावती का जिक्र मिलता है। देवी धूमावती मां पार्वती का ही रूप हैं। एक बार देवी पार्वती को बहुत जोरों से भूख लगी। उन्होंने भोलेनाथ से कुछ भोजन मांगा। तब महादेव ने पार्वती को थोड़ा इंतजार करने को कहा, ताकि वह भोजन आदि का प्रबंध कर सकें। समय बीतता गया जब खाना सामने नहीं आया तो मां पार्वती व्याकुल हो उठीं। भूख बर्दाश्त न होने पर देवी पार्वती ने भगवान शिव को ही निगल लिया। शिव जी के गले में विष था, इस वजह से पार्वती के शरीर में धुआं निकलने लगा।
विधवा स्वरूप में मां धूमावती
तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी, धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी। दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है। इसी वजह से धूमावती देवी विधवा रूप में पूजी जाती हैं और सुहागिनें उनके दूर से से दर्शन करती हैं।
दर्शन से होते हैं कष्ट दूर
धूमावती देवी का वाहन कौवा है। वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं। देवी का स्वरूप चाहे जितना उग्र क्यों न हो वह संतान के लिए कल्याणकारी ही होता है। मां धूमावती के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। पापियों को दण्डित करने के लिए इनका अवतरण हुआ। नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं। माँ की जयंती पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है जो भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली है।