1972 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे किशोर कुणाल ने दावा किया है कि अयोध्या में राम मंदिर बाबर नहीं, औरंगजेब के शासनकाल में तोड़ा गया था। ब्रिटिशकाल की फाइलों, प्राचीन संस्कृत सामग्री, खोदाई की समीक्षा व विदेशी पर्यटकों का हवाला देते हुए उनकी लिखी पुस्तक ‘अयोध्या रीविजिटेड’ में यह दावा किया गया है।
अयोध्या में रविवार को पत्रकारों से कुणाल ने कहा कि यह पुस्तक दोनों समुदायों के बीच तनाव खत्म करने में मील का पत्थर साबित होगी। कुणाल ने कहा कि आम धारणा यह है कि बाबर ने राम मंदिर को तुड़वाया था, जो गलत है। बाबर के नाम से जो मस्जिद कही जाती है, वह कभी बनी ही नहीं।
यही नहीं मंदिर को तोड़े जाने की घटना भी बाबर के शासनकाल में नहीं हुई थी। बल्कि यह घटना 1660 ई. में तब हुई थी जब फिदाई खान अयोध्या में औरंगजेब का गवर्नर था। पुस्तक में बताया गया है कि बाबर कभी अयोध्या आया ही नहीं, इसलिए यह दावा अवास्तविक है कि अवध के गवर्नर मीर बाकी ने 1528 में बाबरी मस्जिद बनवाई थी। पुस्तक में यह भी कहा गया है कि बाबर से लेकर शाहजहां तक सभी मुगल शासक उदार थे उनमें कट्टरता नहीं थी।
विदेशी लेखकों ने भी राम मंदिर का किया जिक्र
संस्कृत, अंग्रेजी और फ्रांसीसी विद्वानों का अपनी पुस्तक में उल्लेख करते हुए किशोर कुणाल ने यह साबित करने की कोशिश की है कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर मौजूद था।
पुस्तक में बताया है कि 1767 में भारत आए ऑस्ट्रिया के फादर जोसेफ टीफेंथेलर ने भी अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख किया है। उन्होंने बताया है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी।
1801 में भारत आए अंग्रेज पर्यटक सी मेंटल ने भी औरंगजेब द्वारा मस्जिद तोड़े जाने की बात लिखी है। 1841 में बने एक गजेटियर में भी औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़ने जाने का जिक्र है। 1631 में हिंदुस्तान आए इटली के पर्यटक डीलेट ने जिक्र किया है कि उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर देखा है।
इसी प्रकार 1634 में भारत में आए इंग्लैंड यात्री हर्बर्ट ने जिक्र किया है कि अयोध्या में बहुत प्राचीन इमारतें हैं लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण वह है जिसे रामजी ने बनवाया था।