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दिल्ली फिर स्मॉग की चादर में लिप्टी हुई आ रही नजर, जानिए कैसे मिल सकती है निजात

राजधानी दिल्ली फिर स्मॉग की चादर में लिप्टी हुई नजर आ रही है। रोजाना सुबह दिल्ली के राजपथ पर स्मॉग ही स्मॉग नजर आता है। बाकि अन्य जगहों पर भी स्मॉग नजर आया है। पंजाब व आसपास के अन्‍य राज्‍यों में पराली जलाने का असर यह हुआ है कि दिल्ली की हवा एक बार फिर प्रदूषित हो चली है।

हरियाणा: पंजाब व आसपास के अन्‍य राज्‍यों में पराली जलाने का असर यह हुआ है कि दिल्ली की हवा एक बार फिर प्रदूषित हो चली है। इस कारण लोगों का श्‍वांस लेना दुभर हो गया है। राजधानी दिल्ली फिर स्मॉग की चादर में लिप्टी हुई नजर आ रही है। रोजाना सुबह दिल्ली के राजपथ पर स्मॉग ही स्मॉग नजर आता है। बाकि अन्य जगहों पर भी स्मॉग नजर आया है। मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की है कि एक बार फिर दिल्‍ली में स्‍मॉग की घनी चादर छा सकती है। इस स्‍मॉग से पीएम 2.5 खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

क्‍या है पीएम 2.5

प्रदूषण से बचाव के लिए लोगों ने मास्‍क पहनना व अन्‍य उपाय शुरू कर दिए हैं, लेकिन डॉक्‍टरों की मानें तो यह काफी नहीं है।मास्क की अपेक्षा रेस्पिरेटर्स (एन95, एन99 एवं एफएफपी3) का प्रयोग ज्यादा उपयोगी होगा। चिकित्‍सकों के मुताबिक आसपास की हवा के प्रदूषण की गणना पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 (10 माइक्रॉन से छोटे कण) एवं पीएम 2.5 (2.5 माइक्रॉन से छोटे कण, मनुष्य के बाल से लगभग 25 से 100 गुना पतले) के घनत्व से होती है, जो फेफड़ों और खून में गहराई तक समा सकते हैं। दिल्ली में हर साल नवंबर में इनकी मात्रा काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है।

क्‍या है खतरा

पार्टिकुलेट मैटर पीएम 2.5 व पीएम 10 शरीर में जाने से अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर, कॉर्डियोवैस्कुलर बीमारी, श्वसन की बीमारी, समय पूर्व प्रसव, जन्मजात विकृति एवं समय से पूर्व मौत भी हो सकती है। पीएम2.5 व पीएम10 से खुद को बचाने के लिए मास्क नहीं, केवल रेस्पिरेटर्स (एन95, एन99 एवं एफएफपी3) का प्रयोग करना चाहिए।

सर्जिकल मास्‍क नहीं होंगे कारगर

रेस्पिरेटर्स को हवा में घुल चुके पार्टिकुलेट प्रदूषक कणों (जिनमें पीएम2.5 व पीएम10 भी शामिल हैं) के नुकसान से बचाने के लिए डिजाइन किया जाता है। वहीं सर्जिकल मास्क में पर्याप्त फिल्टरिंग और फिटिंग के गुण नहीं होते। सर्जिकल मास्क को पहनने से मनुष्यों द्वारा पैदा होने वाले बड़े कण (जैसे मनुष्यों के थूक, बलगम आदि) से कार्यस्थल को सुरक्षा देने के लिए डिजाइन किया जाता है, न कि बाहर के कणों को शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए।

ये मास्‍क हो सकते हैं प्रभावी

सिंगल लेयर मास्क:- यह कॉटन का मास्क है। लेकिन प्रदूषण से लड़ने में प्रभावी नहीं है। हालांकि, लोग सबसे अधिक इसका इस्‍तेमाल करते हैं। यह सिर्फ धूल के बड़े कणों को रोक पाता है। इसका कॉस्मेटिक इस्तेमाल ज्‍यादा होता है।

ट्रिपल लेयर मास्क:- हल्के प्रदूषण से बचने में यह मास्क कुछ हद तक कारगर है। लेकिन यह भी 20 से 30 पर्सेंट तक ही बचाव कर पाता है। 3 लेयर के कारण यह पीएम 10 को कुछ हद तक रोकने में कामयाब रहता है। इसकी कीमत 100 से 800 रुपए तक है और आप इसे साफ कर कई बार इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

सिक्स लेयर मास्क:- यह प्रदूषण से 80 फीसदी ही बचाव कर पाता है। अधिक प्रदूषित क्षेत्र में यह कारगर नहीं होता। यह काफी हद तक पीएम 10 के अलावा पीएम 2.5 से बचाता है। यह 200 से 1000 रुपए तक की रेंज में उपलब्ध है और इसे भी कई बार वॉश कर इस्तेमाल कर सकते हैं।

ऑक्‍सीजन-माईऑक्‍सी भी है मददगार

समाचार एजेंसी आईएएनएस की खबर के मुताबिक एफडीए से पास कैन्ड ऑक्‍सीजन-माईऑक्‍सी इस मुश्किल से निजात दिला सकता है। इंडस्ट्रियल, मेडिकल और रेफ्रिजरेशन गैसों के क्षेत्रों में अग्रणी-गुप्ता ऑक्सीजन प्राइवेट लिमिटेड ने खासतौर से भारतीय बाजारों के लिए पहली बार माईऑक्‍सी पेश किया है। माईऑक्‍सी पोर्टेबल कैन्स को भारतीय फार्मास्यूटिकल मानकों का अनुपालन करते हुए वैध ड्रग लाइसेंस के तहत निर्मित किया गया है।

दिल्‍ली-एनसीआर में बिक रहा

1200 किलोपास्कल पर 5.9 लीटर आयतन वाले माईऑक्‍सी एल्युमीनियम डिस्पोजेबल कैन में इनबिल्ट मास्क लगा है और प्रत्येक कैन से 100 से 150 दफा श्वास लिया जा सकता है। माईऑक्‍सी को अपोलो फार्मेसी और दिल्ली/एनसीआर के मेडिकल स्टोर्स समेत सभी प्रमुख फार्मेसी तथा नैटमैड्स जैसी ऑनलाइन फार्मेसी पर 399 रुपये प्रति कैन की कीमत पर उपलब्ध कराया गया है।

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