दिल्ली में बढ़ती पानी की समस्या
देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि देश की राजधानी दिल्ली में भी लोगों की बुनियादी जरूरतों में शुमार पानी के लिए अनेक हिस्सों के लोगों को जूझना पड़ता है। यह ऐसी कड़वी सच्चाई है जिससे दिल्ली के बहुतायत इलाकों के लोगों को अक्सर दो-चार होना पड़ता है। फिलहाल तो गर्मी का मौसम है और गर्मी के मौसम में तो पानी की समस्या वैसे भी विकराल होती जाती है। वैसे दिल्ली में कब पानी का संकट खड़ा हो जाएगा, इसके बारे में अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। इसके पीछे सबसे बड़़ा कारण यह है कि दिल्ली के पास अपना कोई पानी का ठोस आधार नहीं है जिससे वह यहांं के लोगों की पानी की जरूरतों को अपने दम पर पूरा कर सके। दिल्ली को हमेशा ही पानी के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पडता है। इसमें भी सबसे ज्यादा हरियाणा पर। हरियाणा से आने वाली मुनक नहर से दिल्ली को पानी की आपूर्ति की जाती है। जब भी किसी तरह की समस्या खड़ी होती है, मुनक से दिल्ली को पानी की आपूर्ति बाधित हो जाती है और दिल्ली के लोगों को पानी मिलना मुश्किल हो जाता है। इसका ताजा उदाहरण अब से करीब एक महीने पहले हरियाणा में जाट आरक्षण के दौरान आंदोलनकारियों द्वारा मुनक नहर को क्षतिग्रस्त कर दिए जाने से दिल्ली को कई दिनों तक पानी नहीं मिला था। इससे हाहाकार की स्थिति बन गई थी और लोगों को पानी के लिए तरसना पड़ा था। जब-जब पानी का संकट दिल्ली में खड़ा होता है, सरकार और विपक्ष की ओर से एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने की कोशिशें शुरू की जाती हैं लेकिन इस समस्या के समाधान के ठोस प्रयास अभी तक नहीं किए गए हैं।
हाल-फिलहाल दिल्ली में जल संकट राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उभरकर सामने आया तो अचानक लोगों को लगा होगा कि दिल्ली में भी पानी का संकट होता है। इस समय देश के कुछ हिस्सों में भयंकर सूखे की स्थिति है। इसमें भी महाराष्ट्र के लातूर में तो त्राहि-त्राहि मची हुई है। वहां के जल संकट को देखते हुए मानवीयता के आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से लातूर के लिए पानी भिजवाने की पेशकश कर दी। इसके साथ ही राजनीति का एक दौर शुरू हो गया। कांग्रेस और भाजपा ने इसे राजनीतिक स्टंट करार दिया और आरोप लगाया कि केजरीवाल दिल्ली वालों को तो पानी दे नहीं पा रहे हैं, लातूर को पानी भेज रहे हैं। इन पार्टियों का आरोप था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को पहले अपने राज्य के लोगों को पानी का इंतजाम करना चाहिए उसके बाद दूसरों की चिंता करनी चाहिए। दरअसल, इस मामले में दोनों ही पक्ष पानी के मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के आधार पर देखने लगे। यही कारण रहा है कि दिल्ली में पानी के संकट पर न कोई गंभीर विमर्श हुआ और न हीं इस संकट के स्थायी समाधान की दिशा में कोई प्रयास किया गया। परिणाम यह हो रहा है कि हमेशा की तरह लोग पानी को तरस रहे हैं और सरकार वादों-घोषणाओं तक खुद को सीमित किए हुए है।
अब से कुछ समय पहले जब दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपनी एक साल की उपलब्धियों को गिनाया था तब उसकी ओर से दिल्ली में पानी की समस्या को सुलझाने के अपने प्रयासों का भी जिक्र किया था। उसके बाद दिल्ली में जल संकट खत्म करने के उपायों की भी घोषणा की गई थी। लेकिन यह दोनोंं ही पर्याप्त नहीं लग रहे हैं क्योंकि जितनी तेजी से गर्मी बढ़ रही है और तापमान बढ़ रहा है उतनी तेजी से पानी का संकट भी राजधानी के कई इलाकों में गहराता जा रहा है। स्वाभाविक रूप से इस समस्या का कोई तात्कालिक समाधान हो भी नहीं सकता। इसके लिए दूरगामी और ठोस उपाय किए जाने की जरूरत है जिसके लिए बहुत समय लगने वाला है। अगर पहले की सरकारों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया होता और काफी पहले से इस दिशा में काम किया गया होता तो संभव है कि अब तक कोई उपयुक्त समाधान निकल चुका होता। लेकिन लगता है कि राजनीतिक दलों और सरकारों के एजेंडे में कभी भी दिल्ली में पानी की समस्या के समाधान का मुद्दा शामिल ही नहीं हुआ।
हालांकि दिल्ली सरकार ने अपने हालिया बजट में पानी और सेनिटेशन के लिए पिछले साल की तुलना में इस बार 9.6 प्रतिशत ज्यादा प्रावधान किया है। पिछले साल 1468 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था जबकि इस बार इसे बढ़ाकर 1976 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सरकार ने 2017 तक यह लक्ष्य भी रखा है कि सभी को बेहतर गुणवत्ता वाला पीने का पानी मिले। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि सरकार ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है कि दिसंबर 2017 तक सभी को साफ पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इस साल सरकार ने 300 अनाधिकृत कालोनियों तक वाटर पाइप पहुंचा दिया है। हमारा लक्ष्य है कि अपने सिस्टम से पानी के टैंकर को हटा दिया जाए। इसके लिए 676 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 2036 के सीवरेज मास्टर प्लान का इंतजार करने के बदले सरकार ने सीवरेज सुविधा 10 साल में ही पूरी दिल्ली को उपलब्ध करा देने की योजना बनाई है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग और रिवाइवल आफ वाटर बाडीज जैसी चीजोंं पर भी काफी जोर दिया जाएगा ताकि पानी की उपलब्धता बनी रहे। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हाल के दिनों में हरियाणा में जाट आंदोलनकारियोंं द्वारा मुनक नहर को क्षतिग्रस्त कर दिए जाने से दिल्ली में पानी की समस्या जटिल हो गई थी। इस तरह की दिक्कतों का सामना दिल्ली को अक्सर करना पड़ता है। इसलिए सरकार अब दिल्ली के मामले में आत्मनिर्भर बनाने या इतनी क्षमता विकसित करने की कोशिश करेगी कि अगर पानी की आपूर्ति कुछ दिनों तक बाधित रहे तो भी ज्यादा परेशानी न हो। सरकार की ओर से यह सब लगातार कहा जाता रहा है लेकिन वास्तविकता यह है कि कभी भी इसके लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए। अभी भी केवल यह उम्मीद ही की जा सकती है कि सरकार इस तरह की किसी ठोस योजना पर काम करेगी जिससे दिल्ली में पानी की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके।
दिल्ली में फिलहाल काफी गर्मी पड़ रही है जिसके अभी और बढ़ने की आशंका है। गर्मी बढ़ने के साथ पानी का संंकट भी गंभीर होता जाता है। उत्तरी दिल्ली के कई इलाकों में पानी के लिए लोगोंं को तरसना पड़ रहा है। कुछ इलाकों में कुुछ घंटे ही पानी आता है जिससे लोगों की दैनिक जरूरतें पूूरी हो पाना ही मुश्किल हो रहा है। दिल्ली में पानी की किल्लत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बुराड़ी के कुछ इलाकों में लोगों को खरीद कर पानी पीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इसके अलावा, कई इलाकों के लोगों को पानी के लिए टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। टैंकरों का पानी प्राप्त करने के लिए भी लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कई बार तो लोगों मेंं आपस में मारपीट तक की नौबत आ जाती है। इसके बाद भी उन्हें पानी नहीं मिल पाता। जिन्हें पानी मिल भी जाता है उन्हें इसे बचाकर रखना पड़ता है क्योंकि यह पता नहीं होता कि आगे पानी मिल भी पाएगा या नहींं। गंदे पानी की समस्या अलग है। कई इलाकों में गंदे पानी की आपूर्ति से लोगों को बीमारियों का भी भय सताता रहता है। इसकी शिकायतें संबंधित विभागीय अधिकारियों से की जाती हैं लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकल पाता है।
इस बारे में उपभोक्ता मामलों के केद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का कहना है कि दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किया जा रहा पानी पीने के लिए सुरक्षित नहीं है क्योंकि तय गुणवत्ता से मानकों को पूरा नहीं किया जा रहा है। पासवान ने उपभोक्ताओं से अपील की है कि अगर उन्हें फाइव स्टार होटलों, सिनेमा हालों या एयरपोर्ट जैसी जगहों पर बोतलबंद पानी एमआरपी से अधिक रेट पर बेचा जा रहा है तो वे इसकी शिकायत दर्ज कराएं ताकि सरकार ऐसे विक्रेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सके। यहां यह गौर करने की बात है कि पासवान पीने के पानी और शिकायतोंं की बात तो करते हैं लेकिन यह नहीं बताते कि दिल्ली में पानी की लगातार गहराती समस्या के समाधान के लिए क्या सरकार के पास कोई योजना है। यहां यह देखने की बात है कि अगर सरकारें दिल्ली में जल संकट के प्रति गंभीर होतीं तो छोटे-छोटे उपायों से भी इस समस्या को कुछ ठीक किया जा सकता था। उदाहरण के लिए अगर बरसात के पानी के उपयोग की ही कोई योजना होती तब भी इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता था। हर साल बरसात के दौरान यमुना में 5 से 6 लाख क्यूसेक पानी आता है और ऐसे ही बहकर बेकार हो जाता है। अगर इस पानी को स्टोर करके रखने का इंंतजाम कर दिया जाए तो कम से कम तीन से चार महीने तक दिल्ली को पानी के लिए किसी और राज्य का मोहताज नहीं होना पड़ेगा। जल विशेषज्ञ और सेंट्रल वाटर ग्राउंड बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ. डीके चड्ढा का कहना है कि यदि बाढ़ के पानी को स्टोर करने के लिए पल्ला से लेकर ओखला तक आउटर और साउथ वेस्ट दिल्ली में एक नहर बना दी जाए तो इससे ग्राउंड वाटर लेवल भी रिचार्ज होगा और पानी की किल्लत भी दूर हो जाएगी। पल्ला से लेकर अशोक विहार, रोहिणी, मंगोलपुरी, द्वारका, वसंत कुंज होते हुए ओखला तक नहर ले जायी जाए।
ओखला के करीब नहर को यमुना से जोड़ दिया जाए। नहर में जगह-जगह करीब सौ इंजेक्शन वेल बनाए जाएं जिनके जरिये पानी जमीन के अंदर छोड़ा जाए। दिल्ली में जमीनी पानी 20 मीटर से 50 मीटर की गहराई पर मिलता है। इसलिए अलग-अलग जगह के मुताबिक इनकी गहराई तय की जाए। उनका यह भी कहना है कि उन्होंने इस बाबत एक प्रस्ताव एक साल पहले दिल्ली के उपराज्यपाल को सौंपा था। इस प्लान की डिटेल स्टडी मिनिस्ट्री और वाटर रिसोर्सेज के तहत आने वाली वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी से कराने की बात थी। उल्लेखनीय है कि इस पर अभी तक कोई काम नहीं किया गया है। यहां यह ध्यान में रखा जा सकता है कि यदि बाढ़ के पानी को स्टोर करने के लिए नहर बन जाती है तो इससे पांच वाटर ट्रीटमेंट प्लाटों को संकट के समय पानी मिल सकता है। इस पानी का इस्तेमाल 20 एमजीडी क्षमता के बवाना प्लांट, 200 एमजीडी क्षमता के हैदरपुर प्लांट, 40 एमजीडी क्षमता के नांगलोई प्लांट, 50 एमजीडी क्षमता के द्वारका प्लांट और 20 एमजीडी क्षमता के ओखला प्लांट में किया जा सकता है। यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि विदेशों में भी इस तरह के सफल प्रयोग किए गए हैं। पानी की कमी से जूझ रहे लैटिन अमेरिका के कई देशों में ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने के लिए बाढ़ का पानी खरीदा जाता है।
दिल्ली में तो बरसात के सीजन में इतना पानी आता है कि जलस्तर भ्ी कई गुना बढ़ जाता है। बताया जाता है कि भारत में भी गुजरात में इस तरह का सफल प्रयोग किया गया है। उत्तरी गुजरात में जमीनी पानी का अत्यधिक दोहन होने के कारण भूजल स्तर काफी नीचे चला गया था। उत्तरी गुजरात में सुजलाम-सुफलाम नाम से चल रही योजना के तहत करीब 337 किलोमीटर लंबी नहर बनाई गई है जो सात जिलों से होकर गुजरती है। पंचमहल, खेड़ा, साबरकांठा, गांधीनगर, पाटन, और बांसकांठा आदि में इस पर काम किया गया है। अलग-अलग जिलों से गुजरने के कारण हर जिले की जमीन भी अलग तरह की है, इसलिए वहां यह योजना लागू करने में काफी परेशानियां भी आईं। लेकिन दिल्ली में तो केवल दो ही तरह की जमीन है, एक सामान्य जमीन और एक चट्टानी। यहां तो आसानी से नहर बनाकर बाढ़ के पानी को रिचार्ज किया जा सकता है। दिल्ली में अगर इंजेक्शन वेल लगा दिए जाएं तो जमीनी पानी तेजी से रिचार्ज किया जा सकेगा। इसी तकनीक को महाराष्ट्र में कुछ क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है। डीडीए के पूर्व कमिश्नर (प्लानिंग) आरजी गुप्ता का कहना है कि पल्ला से लेकर ओखला तक यमुना की लंबाई लगभग 50 किलोमीटर है। यमुना कहीं डेढ़ किलोमीटर तो कहीं तीन किलोमीटर तक चौड़ी है। दिल्ली में यमुना का एरिया तकरीबन 97 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 16.45 वर्ग किलोमीटर एरिया में पानी बहता है। अगर यमुना को तीन से चार मीटर तक और गहरा कर दिया जाए तो बरसात के दिनों में आसानी से पानी जमीन के भीतर चला जाएगा। इससे यमुना का बहाव भी बना रहेगा और जब दिल्ली को जरूरत पड़ेगी तो पानी भी मिल जाएगा। अगर यमुना के दोनों किनारों पर वजीराबाद से लेकर ओखला तक कंकरीट के चैनल बना दिए जाएं और गंदे नालों के पानी को इसमें जमा कर ओखला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाए तो यमुना गंदी नहीं होगी। नब्बे के दशक में इस तरह का एक प्लान तैयार भी किया गया था। इसे पीएमओ तक से मंजूरी मिल गई थी लेकिन अब तक इस पर कोई काम नहीं किया जा सका है।
फिलहाल दिल्ली के जल मंत्री कपिल मिश्रा जल क्रांति की वकालत कर रहे हैं। लेकिन यह बात समझ से परे है कि जब लोगों को पानी ही नहीं मिल पा रहा है तो ट्वीट से क्या होगा। दिल्ली और केंद्र सरकार दोनों को इस बात को समझना चाहिए कि जब देश की राजधानी दिल्ली के लोगों को ही पानी का संकट झेलना पड़ रहा है तो दूरदराज के इलाकों में लोगों का क्या हाल होगा। इसलिए तमाम तरह की क्रांंतिकारी बातों से इतर आज की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से पानी उपलब्ध कराया जाये। तभी विकास का नारा सार्थक हो सकेगा। गर्मी हर साल आएगी, नदियों और भूजल का स्तर गिरता जाएगा, जलसंंग्रह पर काम नहीं होगा तो आने वाले दिनों में पानी को लेकर कितना हाहाकर मच सकता है, इसका अंदाजा लगाना कठिन होगा। कम से कम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को तो इस बारे में अवश्य ही काम करना चाहिए क्योंकि दिल्ली की जनता को उनसे कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं। ’