दिवालिया हो सकती हैं अमेरिकी कंपनियां: बरबाद होता तेल का बाजार
विवेक ओझा
नई दिल्ली: कोरोना वायरस की महामारी के बीच वित्तीय बाज़ार बिखर से गए हैं , आर्थिक प्रवृत्तियों में अप्रत्याशित उतार चढ़ाव जारी है। 20 अप्रैल को अमेरिका के तेल व्यापार में गंभीर विचारणीय कमी देखी गई। अमेरिका में कच्चे तेल की क़ीमतों में 14 प्रतिशत की गिरावट के साथ डब्ल्यूटीआई ( वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट) तेल इक्कीस वर्ष के निचले स्तर पर आ गया है। एशिया में 20 अप्रैल को अमेरिकी कच्चे तेल की क़ीमतें 15.65 डालर प्रति बैरल हो गई । कोविड-19 के कारण आधी दुनिया में लाक डाउन से माँग में भारी कमी के फलस्वरूप तेल उत्पादक देशों ने पिछले ही सप्ताह 97 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती की थी। इसके बावजूद कच्चे तेल में माँग और आपूर्ति में संतुलन पैदा नहीं हो सका। गौरतलब है कि चीन, भारत के बाद अमेरिका कच्चे तेल का तीसरा बड़ा आयातक देश है।
कच्चे तेल की माँग में निरंतर कमी से ब्रेंट आयल में 0.8 प्रतिशत की कमी से सोमवार को कच्चे तेल की यूरोप और एशिया में 27.87 डालर प्रति बैरल की दर पर बिक्री हो पाई।
कोरोना वायरस के संकट के चलते दुनिया में अब कच्चा तेल पानी से भी सस्ता हो गया है। सोमवार को अमेरिकी क्रूड ऑयल की कीमत जीरो से भी नीचे लुढ़कते हुए -40 डॉ़लर प्रति बैरल पर पहुंच गए। यह पहला मौका है, जब कच्चे तेल की कीमतों में इतनी बड़ी गिरावट देखने को मिली है। सऊदी अरब से लेकर रूस और अमेरिका तक की ओर से कच्चे तेल के लगातार उत्पादन और मांग में कमी के चलते यह स्थिति पैदा हुई है।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका है, जब कच्चे तेल की कीमत जीरो के लेवल पर पहुंच गई। पहली बात यह समझने की है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट कोरोना के संकट से पहले से ही जारी थी। इसके बाद कोरोना ने क्रूड ऑयल के लिए कोढ़ में खाज जैसा काम किया। बीते कई महीनों से लुढ़क रहे कच्चे तेल के दाम मार्च के अंत में 20 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे।
वेस्ट टेक्सास के कच्चे तेल के लिए फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट पर मूल्य में नकारात्मक गिरावट आई जो कि माइनस 37.63 प्रति बैरल हो गया । स्थिति इतनी गंभीर है कि पुलित्जर पुरस्कार विजेता ऑयल हिस्टोरियन और आईएचएस मार्किट लिमिटेड के वाइस चेयरमैन डेनिएल यर्जिंन का कहना है कि मई में कच्चे तेल की कीमत में मंद स्वर में रोने की आवाज़ नहीं , बल्कि तेज चीख सुनाई देगी । आरबीसी कैपिटल मार्केट्स के ग्लोबल एनर्जी स्ट्रेटजी के निदेशक माइकल ट्रान का भी यही मानना है कि निकट भविष्य में भौतिक बाजार को गिरावट से बचाना मुश्किल होगा ।
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था हाशिए पर पहुंच गई है। इसका एक उदाहरण सोमवार को उस समय सामने आया जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 301.97 फीसदी की गिरावट हुई। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के लिए सोमवार का दिन इतिहास में सबसे बुरा दिन रहा। पूरी दुनिया में इस समय लॉकडाउन है और लोग घरों में कैद हैं। इसी कारण कच्चे तेल की मांग घटने से डब्ल्यूटीआई वायदा भाव 0.97 डॉलर तक पहुंच गया। जबकि तेल की कीमत -37.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई।
”दरअसल कीमतों का नेगेटिव में जाने का अर्थ यह होता है कि बेचने के लिए सामान के साथ खरीददार को कीमत भी अदा करना। रिसर्च एवं कंसल्टिंग फर्म आईएचएस मार्किट से जुड़े आरोन ब्रैडी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ‘यदि आप उत्पादक हैं और आपके सामने मार्केट ही खत्म है। फिर तेल रखने के लिए भी जगह की कमी है तो समझिए कि अब भाग्य आपके साथ नहीं है।’ दरअसल दुनिया भर की रिफाइनरीज की ओर से क्रूड ऑयल को गैस, डीजल और पेट्रोल में तब्दील करने की प्रक्रिया ही ठप है। दुनिया में उड़ानें बंद हैं। वाहनों के पहिए थम गए हैं। ऐसी स्थिति में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट अप्रत्याशित नहीं है।”
यदि कुछ और दिनों तक यही हाल रहा तो कई अमेरिकी कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। इसकी वजह यह है कि फिलहाल लॉकडाउन की स्थिति में पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल ही नहीं है। इसके अलावा कई देशों ने सस्ते तेल की खरीदकर पहले ही अपने भंडार भर लिए हैं और अब उनके पास स्टोरेज तक की जगह नहीं बची है। गौर करने वाली बात ये है कि कच्चे तेल का भाव अमेरिका में एक कप कॉफी से भी सस्ता हो गया है, क्योंकि वहां स्टारबक्स में एक कप कॉफी 3-4 डॉलर में मिलती है। वहीं अमेरिकी ऑयल बाजार में कारोबार की शुरुआत 18.27 डॉलर प्रति बैरल से हुई और घटते-घटते पहले 1 डॉलर के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई और मार्केट बंद होते-होते यह निगेटिव में पहुंच गई।
(लेखक अंतराष्ट्रीय मामलो के विशेषज्ञ हैं।)