दुनिया का एक शहर जहां किराए का घर पाने में लग जाते हैं 9 साल
अगर हम आपसे ये कहें कि दुनिया में एक शहर ऐसा भी है, जहां किराए का घर पाने में भी नौ बरस लग जाते हैं तो। हमें पता है, आप हमारी बात पर कतई यक़ीन नहीं करेंगे। बकवास कहकर ख़ारिज कर देंगे। मगर है ये सौ फ़ीसद सच्ची बात। ये शहर यूरोप में है। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम। यहां पर रहने के लिए घर तलाशना, भूसे के ढेर में से सुई तलाशने जैसा है, जिसका मिलना क़रीब-क़रीब नामुमकिन है। स्टॉकहोम, दुनिया के बेहतरीन शहरों में से एक है। यहां बसना बहुत से लोगों का ख़्वाब हो सकता है। ये भी हो सकता है कि यहां की कंपनियों में आपको नौकरी भी आसानी से मिल जाए। मगर यहां रहने के लिए घर ढूंढना, चांद-तारे तोड़ने जैसा है।
यहां किराए का घर मिलने में नौ साल तक लग सकते हैं। और अगर आपने यहां के कुछ लोकप्रिय, पसंदीदा इलाक़ों में रहने की ठानी तो ये इंतज़ार बीस सालों तक खिंच सकता है। ये इतना लंबा वक़्त है कि अब गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी इसे दर्ज किए जाने की तैयारी है। स्टॉकहोम में रिहाइशी ठिकानों की ऐसी कमी है कि साझे के फ्लैट भी बमुश्किल मिलते हैं। आज स्टॉकहोम, यूरोप की सबसे तेज़ी से तरक़्क़ी कर रहा राजधानी शहर है। हाल के दिनों में यहां बाहर से आकर बसने वालों की तादाद काफ़ी तेज़ी से बढ़ी है। यहां बहुत सी स्टार्ट अप कंपनियों ने कारोबार शुरू किया है। इसी वजह से शहर की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है जबकि आबादी के मुक़ाबले रिहाइशी ठिकानों के बढ़ने की रफ़्तार कम है।
यहां इमारत बनाने के सख़्त नियम, हाउसिंग सेक्टर में निवेश की कमी और सरकारों में दूरंदेशी की कमी ने ये हालात बना दिए हैं। आज हाल ये है कि शहर के पुराने बाशिंदों के रहने के लिए ही घर कम पड़ रहे हैं। तिस पर से बाहर से नए लोगों की आमद ने हालात और ख़राब कर दिए हैं। अभी हाल ही में संगीत कंपनी स्पॉटिफ़ाई ने शहर प्रशासन के नाम खुली चिट्ठी लिखी। कंपनी ने कहा कि रिहाइश की कमी के चलते वो अपना कारोबार स्टॉकहोम में नहीं बढ़ा पा रही है। अगर प्रशासन ने हालात सुधारने के लिए ज़रूरी क़दम नहीं उठाए, तो वो अपना मुख्यालय यहां से किसी और शहर में ले जाएगी। फ्रांस से यहां आकर बसने वाली माएवा स्कैलर अपना तजुर्बा बताती हैं। वो कहती हैं कि वो स्टॉकहोम शहर को पसंद करती हैं। मगर उन्हें पिछले सात सालों में नौ बार घर बदलना पड़ा है। इस वजह से वो यहां से जाने की सोच रही हैं। वो यहां रहने के लिए घर ख़रीदने की इच्छुक नहीं हैं। वजह, स्टॉकहोम में घर बहुत महंगे हैं। पिछले एक साल में ही क़ीमतों में चौदह फ़ीसदी का उछाल देखा गया है। माएवा की तरह यहां आकर बसने वाले ज़्यादातर विदेशी यही सोच रखते हैं।
एक दिक़्क़त और भी है। जो विदेशी यहां आकर काम करते हैं, उन्हें अपने मालिकों के घर में भी किराए पर रहने का मौक़ा नहीं मिलता। यहां नियम इतने सख़्त हैं कि कोई कंपनी इकट्ठे कोई बिल्डिंग या इलाक़े किराए पर नहीं ले सकती। माएवा सवाल उठाती हैं कि आज स्टॉकहोम में हज़ारों लोग बाहर से आकर काम कर रहे हैं। मगर जब वो अपने रहने को लेकर ही बेफ़िक्र नहीं हो सकते, तो काम पर क्या ख़ाक ध्यान दे पाएंगे? वैसे, स्वीडन में किराए के नियम, किराएदारों के हक़ में हैं। जिसके पास घर नहीं है, उसे सरकार के तय हुए किराए पर मकान मिल जाएं, इसकी कोशिश प्रशासन करता है। किराए के लिए आपकी लीज़ एक बार बन गई तो समझिए कि उम्र भर के लिए मकान आपका हुआ। मगर स्टॉकहोम में हालात एकदम अलग हैं। यहां स्थानीय लोग हों या फिर बाहर से आए लोग, सबको किराए के मकान का कतार में लगकर इंतज़ार करना होता है। आज की तारीख़ में यहां पांच लाख से ज़्यादा लोग किराए पर मकान मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं।
बाहर से आकर स्टॉकहोम में बसे जोस लागोस ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मानते हैं। उन्हें 2003 में एक कमरे का मकान रहने के लिए किराए पर मिल गया था। वो शहर के पुराने हिस्से में रहते हैं, जहां काफ़ी हरियाली है। और साथ ही पब और रेस्तरां भी क़रीब ही हैं। लेकिन दिक़्क़त ये है कि जोस का अपार्टमेंट बहुत छोटा है। सिर्फ़ एक कमरा और रसोई है। वो इससे बड़ा घर चाहते हैं। मगर उसके लिए इंतज़ार बहुत लंबा है।
किराए पर मकान तलाशने वालों को यहां, पहले से घर किराए पर लेकर रहने वालों से मकान मिल सकता है। या फिर वो मकान मालिकों से समझौता कर सकते हैं। मगर लीज़ एक साल या इससे भी कम वक़्त की बनती है। वजह, यहां के नियम-क़ायदे हैं। दूसरे बड़े शहरों में लोग मकान या फ्लैट लेकर किराए पर उठा देते हैं। मगर स्टॉकहोम में होता ये है कि अक्सर मकान के मालिक अपने घर में रहते हैं। वो तभी घर किराए पर देते हैं, जब उन्हें साल-दो साल के लिए बाहर जाना होता है। स्टॉकहोम में किराया भी बहुत ज़्यादा है। 66 वर्ग मीटर के फ्लैट का किराया 783 डॉलर महीना या क़रीब 55 हज़ार रुपए है। वहीं किराए के मकान को फिर से किराए पर लेना और भी महंगा सौदा है। अक्सर लोग ये सौदे ब्लैक में करते हैं। माएव स्कैलर ने पिछले कुछ सालों में एक स्टूडियो अपार्टमेंट के लिए औसतन एक हज़ार डॉलर किराया चुकाया है। जो कि क़रीब 70 हज़ार रुपए महीना बैठता है।
किराए पर मकान न मिलने की वजह से आज लोग स्टॉकहोम आकर नौकरी करने से कतरा रहे हैं। स्वीडन की कंपनियों के एक संगठन के मुताबिक़, स्वीडन की 61 फ़ीसद कंपनियों को नए कर्मचारी तलाशने में दिक़्क़तें आ रही हैं। इसकी बड़ी वजह स्टॉकहोम में मकानों की कमी है। बड़ी कंपनियां, यहां पर एजेंट्स की मदद से अपने कर्मचारियों को मकान मुहैया कराती हैं। लेकिन छोटी कंपनियों के पास इतने संसाधन होते नहीं कि वो ये सुविधा दे सकें। स्वीडन के कमोबेश सभी बड़े कारोबारी और कंपनियों के अफ़सर मानते हैं कि रिहाइशी ठिकानों की कमी उनकी तरक़्क़ी की राह में रोड़े अटका रही है, क्योंकि अच्छे, क़ाबिल लोग इसी वजह से उनके यहां नौकरी करने नहीं आते। वो मानते हैं कि नियमों में कुछ ढील देकर इस हालत से फौरी तौर पर छुटकारा पाया जा सकता है।
वैसे, हाल के दिनों में स्टॉकहोम के प्रशासन ने रिहाइशी बस्तियां बसाने पर ज़ोर देने का काम शुरू किया है। सरकारी मदद से क़रीब 40 हज़ार नए अपार्टमेंट बनाए जा रहे हैं। 2030 तक इन्हें बढ़ाकर डेढ़ लाख तक किया जाना है। लेकिन, इन्हें पूरा होने में वक़्त लगेगा। तब तक हालात और बिगड़ सकते हैं। तब तक कहीं भी ले जा सकने वाले मॉड्यूलर होम और एक साथ रहने के नुस्खों से घर की दिक़्क़त दूर करने की कोशिश की जा रही है। वैसे कुछ लोग ये भी सलाह देते हैं कि नए घर बनाने की हड़बड़ी में स्टॉकहोम की क़ुदरती ख़ूबसूरती से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। यहां पार्क, पानी के ठिकाने और खुली जगहों की इफ़रात है। यही बात शहर को औरों से अलग बनाती है। रिहाइशी बस्तियां बसाने के चक्कर में ये पहचान नहीं ख़त्म होनी चाहिए। आयरलैंड से आकर स्टॉकहोम में बसने वाली जेन रुफिनो कहती हैं कि शहर की तरक़्क़ी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं। मगर इसकी ख़ूबसूरती पर दाग़ नहीं लगना चाहिए।