दुनिया के सबसे क्रूर ‘ठग ऑफ हिंदोस्तान’, जिसने सिर्फ एक रूमाल से किए 940 कत्ल
सिनेमा के पर्दे पर ‘गब्बर सिंह’ के फेमस होने और मध्य भारत के डाकुओं के आतंक से पहले भारत में कई इलाकों में ठगों का राज चलता था. ठगी ही इनकी जिंदगी थी, इनका पेशा था. ये प्रोफेशनल ठग थे. हथियार होने के बावजूद बिना उसका प्रयोग किए हजारों-हजार लोगों के काफिलों को लूट लेना इनके बाएं हाथ का खेल था. इन्हीं ठगों में सबसे क्रूर सबसे जालिम और इंसान की शक्ल में भेड़िया था- बेहराम जिसे ठगी की दुनिया में ‘बेरहम’ ठग के नाम से भी जाना जाता था.
बेहराम को दुनिया का सबसे क्रूर ठग का खिताब हासिल है. बेहराम ज्यादातर व्यापारियों के काफिले को अपना निशान बनाता था. बेहराम ठग का दिल्ली से लेकर ग्वालियर और जबलपुर तक खौफ था. जब तक बेहराम जिंदा था लोगों ने इस रास्ते से चलना बंद कर दिया था. बेहराम का आतंक भारत में उस समय था जब मुगल साम्राज्य खत्म हो गया था. देश के अधिकतर हिस्सों में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था.
अंग्रेजों को पता था कि शासन लंबा चलाना है तो देश में कानून व्यवस्था लानी होगी. सशस्त्र गिरोहों को कंट्रोल करना होगा. उनकी रास्ते का सबसे बड़ा कांटा बनकर सामने आया बेहराम और उसके ठगों का गिरोह. इस गिरोह की वजह से हजारों लोग गायब हो रहे थे. कराची, लाहौर, मंदसौर, मारवाड़, काठियावाड़, मुर्शिदाबाद के व्यापारी बड़ी तादाद में रहस्यमय परिस्थितियों में अपने पूरे के पूरे काफिलों के साथ गायब थे. तवायफ, नई–नवेली दुल्हनें या फिर तीर्थयात्री इन गिरोहों ने किसी को नहीं छोड़ा. यही नहीं छुट्टी से घर लौट रहे ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों की टोली भी अपनी ड्यूटी पर नहीं लौट रही थीं. ऐसे में अंग्रेजों के लिए जोरदार कदम उठाना मजबूरी बन गया.
सबसे हैरानी की बात ये थी कि पुलिस को इन लगातार गायब हो रहे लोगों की लाश तक नहीं मिलती थी. लाश मिलने के बाद पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ सकती थी. लाशों को यह गिरोह किसी अनजान जगह पर दफना देता था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहले एक फरमान जारी किया कि कंपनी का कोई भी सिपाही या सैनिक इक्का-दुक्का यात्रा नहीं करेगा. यात्रा करते वक्त सभी सैनिक बड़े झुंड में चले और अपनी साथ ज्यादा नकदी लेकर न चलें.
1765-1840 तक बेहराम का आतंक रहा. बेहराम पैसे के लिये निशाना बनाता था और उसका हथियार होता था रूमाल. सिर्फ एक पीले रूमाल से वह कई लोगों को मार दिया करता था. खून उसे पसंद नहीं था, इसलिए गला घोंटकर हत्या करने में यकीं करता था. बेहराम ने एक नहीं, दो नहीं, दो सौ नहीं तीन सौ नहीं पूरे 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था. उसके गिरोह में करीब 200 सदस्य थे. सीरियल किलर के रूप में ठग बेहराम पूरी दुनिया में कुख्यात है. उसका जन्म 1765 में हुआ था. 50 वर्षों के समय में उसने रूमाल के जरिए गला घोंटकर 900 से अधिक लोगों की हत्या की थी. उसको 75 वर्ष की उम्र में पकड़ लिया गया. 1840 में उसको फांसी की सजा दी गई.
व्यापारी हो या फिर तीर्थयात्रा पर निकले श्रद्धालु या फिर चार धाम की यात्रा करने जा रहे परिवार, सभी निकलते तो अपने-अपने घरों से लेकिन ना जाने कहां गायब हो जाते, ये एक रहस्य ही था. काफिले में चलने वाले लोगों को जमीन खा जाती है या आसमां निगल जाता है, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
1809 मे इंग्लैंड से भारत आने वाले अंग्रेज अफसर कैप्टन विलियम स्लीमैन को ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगातार गायब हो रहे लोगों के रहस्य का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी. उन्हें ठगों के खिलाफ एक डिपार्टमेंट का इंचार्ज बना दिया गया. ईस्ट इंडिया कंपनी ने विलियम स्लीमैन को THUGEE AND DACOITY DEPARTMENT का इंचार्ज बना दिया.
ठगों के खिलाफ विलियम स्लीमैन ने पूरे उत्तर भारत में एक मुहिम छेड़ दी. इस ऑफिस का मुख्यालय स्लीमैन ने जबलपुर में बनाया. स्लीमैन के अनुसार जबलपुर और ग्वालियर के आस-पास ही ठग गिरोह सक्रिय है. ये दोनों ऐसी जगह थी जहां से देश के किसी भी कोने में जाने के लिये गुजरना पड़ता था. साथ ही साथ इस इलाके की सड़कें घने जंगल से होकर गुजरती थीं. विलियम स्लीमैन ने जबलपुर में अपना मुख्यालय बनाने के बाद सबसे पहले दिल्ली से लेकर ग्वालियर और जबलपुर तक के हाईवे के किनारे जंगल का सफाया कर दिया. इसके बाद स्लीमैन ने गुप्तचरों का एक बड़ा जाल बिछाया. गुप्तचरों की मदद से स्लीमैन ने पहले तो ठगों की भाषा को समझने की कोशिश की. ठग अपनी इस विशेष भाषा को ‘रामोसी’ कहते थे. रामोसी एक सांकेतिक भाषा थी जिसे ठग अपने शिकार को खत्म करते वक्त इस्तेमाल करते थे.
आपको बता दें कि ये ठग काफी प्रफेशनल होते थे. किसानी का काम खत्म होने पर वे तीन चार महीनों के लिए ठगी के काम को अंजाम देते थे और फिर घर लौट जाते थे. इनकी वजह से स्थानीय साहूकारों व्यापारियों को भी फायदा होता था. वे ठगी के अभियानों की फंडिंग करते थे और बदले में काफी ऊंची दरों पर ब्याज वसूलते थे.
ऐसे में विलियम स्लीमैन ने व्यापारियों पर भी शिकंजा कसा और इसी का नतीजा हुआ कि करीब 10 साल की कड़ी मशक्कत के बाद कैप्टन स्लीमैन ने आखिरकार बेहराम ठग को गिरफ्तार कर ही लिया. उसके गिरफ्तार होने के बाद खुला उत्तर भारत में लगातार हो रहे हजारों लोगों के गायब होने का राज़.
अपने शिकार का काम तमाम करने के बाद ठग मौका-ए-वारदात पर ही जश्न मनाते थे. ठग अभियान से पहले और बाद में काली पूजा भी करते थे. कब्रगाह के ऊपर बैठकर ही वो गुड़ खाते थे. कैप्टन स्लीमैन को एक ठग ने बताया कि हजूर ‘तपोनी’ यानि कब्रगाह का गुड़ जिसने भी चखा वह फौरन ठग बन गया.
बेहराम ठग ने गिरफ्तार होने के बाद खुलासा किया कि उसके गिरोह ने पीले रूमाल से पूरे 931 लोगों को मौत के घाट उतारा है. उसने खुद 150 लोगों के गले में रूमाल बांधकर हत्या की है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्लीमैन के वंशजों के पास वह रूमाल आज भी है. कैप्टन स्लीमैन ने इस गिरोह के 1400 ठगों को फांसी दिलवाई. जबलपुर के जिस पेड़ों पर फांसी दे दी गई—जबलपुर में ये पेड़ अभी भी हैं.
बेहराम ठग ने बताया कि वे व्यापारियों का भेष धरकर शिकार करते थे. बेहराम और उसके गिरोह के सदस्य पहले पीले रूमाल में सिक्का डालकर गॉठ बनाते और उससे लोगों की गला घोंटकर हत्या करते थे. ठग मरे हुये लोगों की लाशों के घुटने की हड्डी तोड़ देते. लाशों को वहीं कब्रगाह बनाकर दबा दिया जाता था या फिर लाशों को पास के ही किसे सूखे कुएं या फिर नदी में फेंक देते थे. यही वजह थी कि लाश कभी नहीं मिलती थी.