दूसरी शादी अवैध लेकिन उससे पैदा बच्चा वैध : उच्चतम न्यायालय
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दूसरी शादी (जो अमान्य है) से पैदा हुआ बच्चा वैध है और उसे हमदर्दी (अनुकंपा) के आधार पर नौकरी से मना नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड और जस्टिस एम.आर. शाह की बेंच ने कहा कि अगर कानून बच्चे को वैध मानता है, तो इसकी इजाजत नहीं हो सकती कि ऐसे बच्चे को हमदर्दी के आधार पर नौकरी से वंचित किया जाए। बता दें कि, पहली शादी के होते हुए हिंदू मैरेज ऐक्ट में दूसरी शादी अवैध है।
क्या है मामला : केंद्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। केंद्र सरकार ने मुकेश कुमार (बदला हुआ नाम) को प्रतिवादी बनाया था। मुकेश के पिता रेलवे में नौकरी करते थे। मुकेश पिता की दूसरी पत्नी से हुई संतान है। पिता की मौत के बाद मुकेश ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगी। रेलवे ने अर्जी खारिज कर दी, लेकिन सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल ने मुकेश के पक्ष में आदेश दिया। मामला बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-16 के हवाले से कहा कि पहली शादी रहते हुए दूसरी शादी अमान्य है, लेकिन उससे पैदा बच्चा वैध है। हाई कोर्ट ने कहा कि रेलवे अनुकंपा नौकरी के आवेदन पर विचार करे। इसके बाद मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया : सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। सुप्रीम अदालत ने कहा हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-16 (1) ऐसे बच्चे को प्रोटेक्ट करने के लिए ही है। धारा-11 के तहत दूसरी शादी अवैध मानी जाती है, लेकिन ऐसी शादी से पैदा हुआ बच्चा वैध है। कोई भी शर्त संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकती। अगर कानून बच्चे को वैध मानता है, तो ऐसे बच्चे को हमदर्दी के आधार पर नौकरी देने से मना नहीं किया जा सकता। रेलवे के 1992 के ऐसे सर्कुलर को कोलकाता हाई कोर्ट खारिज भी कर चुका है, जिसमें दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे को नौकरी देने से मना किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन महीने में अथॉरिटी फैसला ले। केंद्र सरकार की याचिका में कोई मेरिट नहीं है।