देशद्रोह कानून के मौजूदा प्रावधानों में होगा बड़ा बदलाव
एजेन्सी/जेएनयू के कन्हैया प्रकरण में देशद्रोह का मामला दर्ज किए जाने पर आलोचनाओं से रूबरू हुई केंद्र सरकार अब इस कानून में बदलाव करने वाली है। इस ब्रिटिशकालीन कानून में बदलाव के लिए विधि आयोग ने उप समूहों का गठन किया है। बदलाव के क्षेत्रों की पहचान भी कर ली गई है।
मजहब के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश करने वालों पर भी सख्त कार्रवाई का प्रावधान तय किया जा सकता है। इन मुद्दों पर नेशनल लीगल रिफॉर्म कमेटी भी मंथन कर रहीे है। इसके अलावा, आत्महत्या और सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित कानूनों में भी बदलाव का निर्णय लिया गया है।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रश्नकाल के दौरान राज्यसभा में कहा कि विधि आयोग पहले ही आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से अलग करने का सुझाव दे चुकी है।
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि देशद्रोह कानून में बदलाव पर विधि आयोग की रिपोर्ट आने के बाद सभी सियासी दलों से इस मसले पर सलाह ली जाएगी। देशद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124क को एक संशोधन के जरिए 1870 में आईपीसी में शामिल किया गया था।
देशद्रोह मामले में साल 2014 में 47 मामले दर्ज हुए। देशद्रोह के आरोप में बिहार में सबसे अधिक 16 मामले दर्ज हुए और 28 लोग गिरफ्तार किए गए। बिहार के बाद झारखंड और केरल का स्थान है।
राज्यसभा में इस मुद्दे पर तारांकित सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा कि देशद्रोह कानून में बदलाव की प्रक्रिया 2012 में शुरू की गई थी। तब गृह मंत्रालय ने विधि और न्याय मंत्रालय से इसमें संशोधन के लिए सुझाव मांगे थे।
कानून मंत्रालय ने विधि आयोग से देश के आपराधिक कानूनों की व्यापक समीक्षा का अनुरोध किया। उसके बाद 11 दिसम्बर 2014 को विधि आयोग ने बदलाव के बिंदु तय कर लेने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में संशोधन एक सतत प्रक्रिया है ताकि कानून को सामाजिक परिवर्तनों के अनुरूप बनाया जा सके।
विभाग से संबंधित स्थाई संसदीय समिति ने भी जून 2010 में अपनी 146वीं रिपोर्ट में आपराधिक न्याय प्रणाली की व्यापक समीक्षा के बाद संबंधित मसौदा तैयार करने का सुझाव दिया था।
अंग्रेजों के जमाने के देशद्रोह के इस पुराने कानून को समाप्त कर उसकी जगह नया कानून लाने पर राज्यसभा में सभी दल सहमत दिखे। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वर्तमान प्रावधानों के रहते सरकार के खिलाफ बोलने पर भी राजद्रोह का मुकदमा किया जा सकता है। इसे बदलना जरूरी है।
साथ ही मजहब के आधार पर समाज को बांटने की कोशिश को देशद्रोह कानून के अंदर लाया जाना चाहिए। गृह मंत्री ने मजहब के नाम पर लोगों को भड़काने पर सख्त कार्रवाई के प्रावधान पर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि वे राज्य सरकारों से भी अपील कर रहे हैं कि ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई करें।
शिव सेना के अनिल देसाई ने कहा कि खुलेआम राष्ट्र विरोधी नारे लगते हैं इसलिए इस कानून में बदलाव कर इसे और सख्त बनाया जाना जरूरी है। जदयू के शरद यादव ने कहा कि अंग्रेजों ने हमारे पुरखों को प्रताड़ित करने के लिए यह कानून बनाया था। इसे तुरंत हटाना चाहिए।