नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के नतीजे बताते हैं कि देशभर में 15 से 24 साल के बीच की 62 प्रतिशत युवतियां अब भी मासिक धर्म के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक जिसका संबंध साल 2015-16 से है में कहा गया है कि बिहार की 82 प्रतिशत युवतियां अब भी पीरियड्स के दौरान सुरक्षा के लिए कपड़े के टुकड़े का इस्तेमाल करती हैं जबकि छत्तीसगढ़ और यूपी में पीरियड्स के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करने वाली युवतियों की तादाद 81 प्रतिशत है। इस सर्वे के जरिए यह जानने की कोशिश की गई कि देशभर में कितनी प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्यकर तरीकों का इस्तेमाल करती हैं जिसमें स्थानीय तौर पर तैयार किया गया या फिर सैनिटरी नैपकिन या टैंपून शामिल है। साथ ही इस सर्वे में यह भी पता चला कि देश की 16 प्रतिशत युवतियां स्थानीय रूप से तैयार किए गए पैड्स का इस्तेमाल करती हैं।
मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के लिहाज से देश की ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं स्वास्थ्यकर तरीकों का इस्तेमाल नहीं करती हैं। सर्वे में शामिल हुई युवतियों में से शहरों में रहने वाली 78 प्रतिशत युवतियां ने कहा कि वे सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाली सिर्फ 48 प्रतिशत प्रतिभागियों ने सैनिटरी नैपकिन इस्तेमला करने की बात कही। इस रिपोर्ट में शिक्षा और संपत्ति और मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्यकर तरीकों के इस्तेमाल के बीच सीधा संबंध बताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘जिन महिलाओं ने 12 या इससे अधिक साल तक स्कूल में पढ़ाई की उनके द्वारा मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्यकर तरीकों को अपनाने की संभावना 4 गुणा ज्यादा है उन महिलाओं की तुलना में जो कभी स्कूल गई ही नहीं। ठीक इसी तरह वैसी महिलाएं जो सुख-सुविधा से संपन्न हैं उनके द्वारा भी मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी नैपकिन या दूसरे तरीके इस्तेमाल करने की संभावना 4 गुणा ज्यादा है उन महिलाओं की तुलना में जो आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं।’
मासिक धर्म के वक्त महिलाओं द्वारा हाइजीनिक तरीकों का इस्तेमाल करने की लिस्ट में मिजोरम 93 प्रतिशत के साथ पहले नंबर पर है जबकि तमिलनाडू 91 प्रतिशत, केरल 90 प्रतिशत, गोवा 89 प्रतिशत और सिक्किम 85 प्रतिशत पर है। महाराष्ट्र में 50 प्रतिशत, कर्नाटक में 56 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 43 प्रतिशत महिलाएं अब भी पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। डॉक्टरों का मानना है कि पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करने की वजह से महिलाएं प्रजनन संबंधी इंफेक्शन का शिकार हो जाती हैं।
सीनियर गाइनैकॉलजिस्ट डॉ साधना चौहान कहती हैं, ‘वक्त आ गया है कि महिलाओं की सेहत को सुरक्षित रखा जाए और इसके लिए उन्हें सैनिटरी नैपकिन मुहैया करवाए जाएं खासतौर पर उन सुदूरवर्ती इलाकों में जो विकास से दूर हैं।’ यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार की तरफ से बेहद कम दाम में पैड्स महिलाओं को मुहैया करवाए तो जाते हैं लेकिन वह नियमित रूप से नहीं होते। साथ ही ज्यादातर युवतियां हेल्थ वर्कर्स से पैड्स मांगने में शर्माती हैं।