ज्योतिष डेस्क : गणेश चतुर्थी आज देश में बड़े उत्साह से मनायी जा रही है। श्रद्धालुओं ने भगवान गणेश को अपने घरों में विधि-विधान, पूजन, मंत्रों के साथ स्थापित किया। गणेश चतुर्थी पर भगवान की पूजा करते समय ध्यान रखें कि कभी उनकी पीठ का दर्शन न करें। गणपति ऐसे देव हैं जिनके शरीर के अवयवों पर संपूर्ण ब्राह्मण का वास होता है। चारों वेद और उनकी ऋचाएं होती हैं। इसलिए गणपति की पूजा सदा आगे से करनी चाहिए। उनकी परिक्रमा लें लेकिन पीठ के दर्शन नहीं करें। आपको बताते हैं कि गणेश जी की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिए। गणपति की सूंड पर धर्म का वास है। नाभि में जगत वास करता है। उनकी आंखों या नयनों में लक्ष्य, कानों में ऋचाएं और मस्तक पर ब्रह्मलोक का वास है। हाथों में अन्न और धन, पेट में समृद्धि और पीठ पर दरिद्रता का वास है। इसलिए, पीठ के दर्शन कभी नहीं करने चाहिए।
गणेश जी के मंत्र
नमस्ते योगरूपाय सम्प्रज्ञातशरीरिणे । असम्प्रज्ञातमूर्ध्ने ते तयोर्योगमयाय च ॥
अर्थ : हे गणेश्वर ! सम्प्रज्ञात समाधि आपका शरीर तथा असम्प्रज्ञात समाधि आपका मस्तक है । आप दोनों के योगमय होने के कारण योगस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।
वामाङ्गे भ्रान्तिरूपा ते सिद्धिः सर्वप्रदा प्रभो । भ्रान्तिधारकरूपा वै बुद्धिस्ते दक्षिणाङ्गके ॥
अर्थ : प्रभो ! आपके वामांग में भ्रान्तिरूपा सिद्धि विराजमान हैं, जो सब कुछ देनेवाली हैं तथा आपके दाहिने अंग में भ्रान्तिधारक रूपवाली बुद्धि देवी स्थित हैं ।
मायासिद्धिस्तथा देवो मायिको बुद्धिसंज्ञितः । तयोर्योगे गणेशान त्वं स्थितोऽसि नमोऽस्तु ते ॥
अर्थ : भ्रान्ति अथवा माया सिद्धि है और उसे धारण करनेवाले गणेशदेव मायिक हैं । बुद्धि संज्ञा भी उन्ही की है । हे गणेश्वर ! आप सिद्धि और बुद्धि दोनों के योग में स्थित हैं । आपको बारम्बार नमस्कार है ।
जगद्रूपो गकारश्च णकारो ब्रह्मवाचकः । तयोर्योगे गणेशाय नाम तुभ्यं नमो नमः ॥
गकार जगत्स्वरूप है और णकार ब्रह्मका वाचक है । उन दोनों के योग में विद्यमान आप गणेश-देवता को बारम्बार नमस्कार है ।
चौरवद्भोगकर्ता त्वं तेन ते वाहनं परम् । मूषको मूषकारूढो हेरम्बाय नमो नमः ॥
अर्थ : आप चौर की भाँति भोगकर्ता हैं, इसलिए आपका उत्कृष्ट वाहन मूषक है । आप मूषक पर आरूढ़ हैं । आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है ।
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