दो-दो CM के बावजूद FAIL हो गया बिहार!
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बहार हो, नीतीशे कुमार हों…दरअसल ये ख्वाब थे बिहार की खातिर। लेकिन 20 नवंबर 2015 के बाद लोगों के जहन में पल रहे तमाम ख्वाबों को नेस्तनाबूत कर दिया गया। कत्लेआम की खबरों ने लोगों के जहन में एकबार फिर से उस शब्द ”जंगलराज” को लौटा दिया जिसे छिपाने, दबाने के लिए आरजेडी सुप्रीमों लालू यादव भरसक कोशिशें करते रहे। सवाल ये है कि आखिर प्रशासनिक व्यवस्था को कायम रख पाने में नाकामी का कारण क्या है ? गठबंधन की सरकार है तो बिहार में फेल कौन है?
लालू या फिर नितीश…। सवाल यह भी है कि असल में सीएम नीतीश ही हैं या फिर महज एक रबर स्टैंप। बिहार जुर्म की आग में जल रहा है लेकिन बिहार सरकार के मंत्री स्वीमिंग पूल में नहा रहे हैं। जरायम की अंधी दुनिया में बिहार को झोंका जा रहा है लेकिन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में राजनीति करने के लिए फोकस्ड हैं। दरअसल ये बातें लोगों के मन में विस्मयादिबोधक चिन्ह ( ! ) के साथ पनप रही हैं। निश्चित तौर पर इनके जवाबों को जानना बेहद जरूरी है। इस मामले में वन इंडिया की खास रिपोर्ट – कैसा था लालू-राबड़ी का कार्यकाल? लालू-राबड़ी के 15 सालों के शासन यानि की 1990-2005 के दौरान हुए आपराधिक मामलों पर गौर किया जाए तो एक सर्वे के मुताबिक 32,085 किडनैपिंग के केस सामने आए। जबकि कई मामलों में बंधकों को फिरौती के लिए मार भी दिया जाता था।
वहीं बिहार पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक, साल 2000 से 2005 की पांच साल की अवधि में 18,189 हत्याएं हुईं। इस आंकड़े को ध्यान में रखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि 15 सालों में 50 हजार से ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि जातीय हिंसा से भी बिहार मुखातिब हुआ। भोजपुर के सहार स्थित बथानी टोला नरसंहार हो या जहानाबाद के अरवल स्थित लक्ष्णपुर बाथे कांड अथवा अरवल के ही शंकरबिगहा कांड, इन नरसंहारों को कोई भुला नहीं सकता। माना जाता है कि लालू-राबड़ी शासन में शहाबुद्दीन, सूरजभान, पप्पू यादव जैसे कई नेताओं का अपने-अपने इलाके में आतंक व्याप्त था। नीतीशे कुमार का बिहार और कथित ”बहार” 2012 में प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि नीतीश कुमार ने जब सत्ता संभाली थी। उससे पहले के पांच सालों में कुल संज्ञेय अपराध की संख्या 5 लाख 15 हज़ार 289 थी, जो नीतीश राज के पांच सालों में बढकर 7 लाख 78 हज़ार 315 हो गई। इसी तरह अपहरण की कुल संख्या भी 10 हज़ार 365 से बढकर, 18 हज़ार 83 तक जा पहुँची। आपको बता दें कि ये सरकारी आंकड़े हैं। इन सबके इतर यदि मौजूदा गठबंधन की बात की जाए तो नवंबर से अब तक बिहार में लोगों की मौत की संख्या लोगों को चौंकाने वाली है। जनता ने कहा- बिहार के लोगों की मानें तो जंगलराज के दौरान बिहार में आते जाते वक्त भी इस बात का भय बना रहता था कि पता नहीं किस वक्त क्या हो जाए। वहीं नीतीश कुमार के दौर में भी हालात में कुछ ज्यादा सुधार नहीं हुए। स्थानीय लोगों ने मौजूदा सरकार पर तंज कसते हुए यहां तक कहा कि चुनावों से पहले ही इस बात की आशंका नजर आ रही थी कि लालू और नीतीश की सरकार गर बन गई तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी लेकिन लोकतंत्र है। जिसके पास बहुमत वही नेता। लोग गीतों से प्रभावित होते हैं। धमक से पक्ष में मतदान करते हैं। महज कुछ फीसदी फायदे के लिए जीवन भर खुद को कोंसने वाला चुनाव कर लिया है इस बार तो हमने। अपराधी मस्त, नेता व्यस्त बात हिंदुस्तान समाचार पत्र के पत्रकार की हत्या हो या फिर रोड रेज केस में मारे गए एक मासूम की..साफ तौर पर नजर आता है कि बिहार के हालात बद्तर हैं। सरकार को इस पर मंथन कर अपनी नीतियों को मजबूत कर प्रशासनिक व्यवस्था को और मजबूत करने की जरूरत है। लेकिन नीतीश उत्तर प्रदेश की राजनीति में कुछ इस हद तक लट्टू हो चुके हैं कि 2017 में वे इसकी तैयारियों में जुट गए हैं। बिहार के मुखिया नीतीश कुमार का ख्वाब महज यूपी विधानसभा चुनावों तक सीमित नहीं बल्कि वे 2019 में पीएम मोदी से लोकसभा चुनाव में दो-दो हाथ करने की मंशा बनाए बैठे हैं। वहीं स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव की वाटर पार्क में मस्ती करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई। बिहार सरकार द्वारा ऐसे कारनामों को देखने के बाद ढुलमुल रवैया उजागर हो जाता है। आवश्यकता है सख्त कार्यवाही की ताकि जनता सुरक्षित रह सके। क्योंकि इन सभी मामलों से बिहार में लोगों के जहन में दहशत भर गई है।