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दो साल से सरकार कर रही माल्या को भारत लाने की कोशिश, ऐसे बचता रहा वह

मोदी सरकार पिछले करीब दो साल से भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को भारत लाने की कोशिश कर रही है. इस मामले में अब तक खास कामयाबी नहीं मिल पाई, लेकिन अब ब्रिटेन के गृह मंत्री की मंजूरी के बाद यह उम्मीद जगी है कि माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया तेज होगी. ब्रिटेन में मिले कानूनी संरक्षण की बदौलत माल्या अब तक इस प्रत्यर्पण से बचता रहा है.

दो साल से सरकार कर रही माल्या को भारत लाने की कोशिश, ऐसे बचता रहा वह गौरतलब है कि जनवरी 2017 में सीबीआई की विशेष अदालत ने आईडीबीआई लोन डिफाल्ट केस में माल्या के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. 8 फरवरी 2017 को भारत सरकार ने ब्रिटेन को माल्या के प्रत्यर्पण की अर्जी दी थी.

संकट में फंसने पर भाग गया माल्या

देश में अपने शराब और एयरलाइंस कारोबार से हमेशा सुर्खियों में रहे विजय माल्या पर लगभग एक दर्जन बैंकों से किंगफिशर एयरलाइंस के नाम पर 9000 करोड़ रुपये कर्ज लेकर न लौटाने का आरोप है. हालांकि, अपने बचाव में विजय माल्या दावा करता रहा है कि बैंक से लिए कर्ज से एक रुपए का भी गलत इस्तेमाल उसने नहीं किया है. तीन-चार साल पहले की बात है. माल्या की कंपनियां आर्थि‍क संकट में फंसती जा रही थीं. भारतीय बैंकों के एक कंसोर्टियम से लिया हजारों करोड़ रुपये का लोन माल्या नहीं चुका पा रहा था.

16 फरवरी 2016 को पीएनबी ने माल्या की कंपनी यूबी होल्डिंग को ‘विलफुल डिफाल्टर’ घोषि‍त किया. 2 मार्च 2016 को विजय माल्या भारत से फरार हो गया और बाद में उसी साल उसे लंदन में देखा गया. माल्या ने ईडी की ओर से कोर्ट में पेशी को लेकर भेजे तीन समन नजरअंदाज किए, जिसके बाद विदेश मंत्रालय ने उसका डिप्लोमेटिक पासपोर्ट भी रद्द कर दिया. नवंबर 2016 में मुंबई की एक स्पेशल पीएमएलए कोर्ट ने शराब कारोबारी विजय माल्या को ‘भगोड़ा’ घोषित किया. इसके साथ ही कोर्ट ने माल्या की सभी घरेलू संपत्ति, शेयर और डिबेंचर को जब्त करने का आदेश दिया.

प्रत्यर्पण की कोशिश और माल्या के बहाने

मनी लॉन्डरिंग केस की जांच कर रही मुंबई स्पेशल कोर्ट ने फरवरी, 2017 में ही प्रवर्तन निदेशालय के अनुरोध को मंजूरी दे दी थी. प्रवर्तन निदेशालय ने कोर्ट से भारत और यूके के बीच एमलैट का सहारा लेते हुए विजय माल्या को भारत लाने की इजाजत मांगी थी. इस प्रक्रिया के लिए ED ने कई आधार पेश किए. ED ने कहा है कि माल्या के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है. उनका पासपोर्ट भी निलंबित किया जा चुका है.

इसके बाद शराब कारोबारी विजय माल्या का इंग्लैंड से प्रत्यर्पण कराने के लिए गृह मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय को अदालत से जारी आदेश की कॉपी दी. गृह मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय को मुंबई स्पेशल कोर्ट का वह आदेश दिया है जिसमें प्रवर्तन निदेशालय ने इंडिया-यूके म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (एमलैट) के तहत विजय माल्या को मामले में पेश होने के लिए अपील की थी. सरकारी सूत्रों के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया गया है जिससे विदेश मंत्रालय जल्द से जल्द विजय माल्या के प्रत्यर्पण के लिए इंग्लैंड की सरकार के सामने अपना पक्ष रख सके.

विदेश मंत्रालय ने अर्जी को दिल्ली स्थित इंग्लैंड के हाई कमीशन को भेजा. भारत ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे के भारत दौरे पर माल्या सहित करीब 60 वांछित लोगों को प्रत्यर्पित करने को कहा ताकि उन्हें यहां न्याय की जद में लाया जा सके.

माल्या के प्रत्यर्पण का मामला लंदन में शुरू हुआ. 18 अप्रैल, 2017 को लंदन में स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने विजय माल्या को गिरफ्तार भी किया, लेकिन घंटे के भीतर ही उसे जमानत मिल गई. 10 दिसंबर, 2018 को ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट के चीफ मजिस्ट्रेट विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश दे दिया, जिस पर अब वहां के गृह मंत्री ने भी मुहर लगा दी है. हालांकि माल्या को अभी वहां के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार है.

भारत की प्रत्यर्पण की कोशिशों को धता करते हुए विजय माल्या ने फरवरी, 2017 में दावा किया है कि भारत सरकार के पास उनके प्रत्यर्पण के लिए पर्याप्त आधार नहीं है और वह इंग्लैंड नहीं छोड़ेंगा. माल्या ने कहा कि उसे महज देश के दो राजनीतिक दलों के आपसी झगड़े में फुटबाल बनाया जा रहा है.

लंदन में फॉर्मूला 1 रेसिंग के लिए अपनी कार लॉन्च करते वक्त माल्या ने कहा कि भारत के सरकारी बैंक देश की सबसे बड़ी एयरलाइंस के विफल हो जाने पर खुद की जिम्मेदारी उनके ऊपर लाद रहे हैं. माल्या ने कहा कि लोन की रिकवरी पूरी तरह से सिविल कोर्ट का मामला है. लेकिन केंद्र सरकार के दबाव में सीबीआई ने पूरे मामले को क्रिमिनल केस में बदल दिया है जिससे उन्हें गिरफ्तार किया जा सके. इसके बाद उन पर फ्रॉड और मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया गया है.माल्या ने समाचार एजेंसी रायटर्स से दावा किया कि वह कानूनी लड़ाई लड़ेंगे क्योंकि भारत सरकार के पास उनके खिलाफ किसी कारवाई के लिए पर्याप्त आधार नहीं है.

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