नई दिल्ली : केंद्रीय ग्रामीण योजनाओं से गांव बदल रहे हैं। गांव की तस्वीर बदल रही है। दैनिक मजदूरी के पर्याप्त अवसर से लोगों की आय में इजाफा हुआ है। उनकी आमदनी का जरिया बदला है। तकनीकी विस्तार से गांव का सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक तानेबाने में भी बदलाव आया है। इसके चलते उनकी जीवन शैली में भी बड़ा बदलाव आया है। अगर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की ताजा रिपोर्ट को आधार बनाया जाए तो 21वीं सदी के भारत में गांव की सूरत और सीरत बदल रही है। भारत के ग्रामीण परिवारों की आमदनी, जीवन स्तर, रोजगार आदि की ताजा तस्वीर नाबार्ड के सर्वेक्षण से सामने आई है।
नाबार्ड की रिपोर्ट में क्या है नया पहलू-
अत्याधुनिक सुविधाओं के मोहताज नहीं हैं गांव : आज के गांव अत्याधुनिक सुविधाओं के मोहताज नहीं है। हर शहरी सुविधा गांव में सुलभ है। करीब 87 फीसदी ग्रामीण घरों में अब मोबाइल है। 58 फीसदी परिवारों के पास टीवी की सुविधा है। 34 फीसदी परिवारों के पास मोटरसाइकिल और तीन फीसदी परिवारों के पास कार है। इसके अलावा दो फीसदी परिवार लैपटाप और एसी से लैस हैं। इन सुविधाओं का सीधा असर ग्रामीण जीवन शैली में देखने को मिल रहा है।
औसत आय में पंजाब अव्वल, यूपी से सबसे पीछे : ग्रामीण परिवारों के औसत आय के मामले में पंजाब अव्वल राज्य है। यहां हर माह प्रति व्यक्ति आय 16,020 रुपये है। दूसरे स्थान पर केरल है। राज्य में प्रति व्यक्ति आय 15,130 रुपये है। तीसरे स्थान पर हरियाणा राज्य है। यहां प्रति व्यक्ति आय 12,072 रुपये है। इसके उलट यूपी, झारखंड और आंध्र प्रदेश की हालत बहुत नाजुक है। औसत आय के मामले में अंतिम पायदान पर खड़े हैं। यूपी में प्रति व्यक्ति आय 6,257 रुपये है, वहीं झारखंड में 5,854 और आंध्र प्रदेश में 5,842 रुपये है।ग्रामीण परिवारों की औसत आय कृषि से अधिक दैनिक मजदूरी से प्राप्त हो रही है। एक ग्रामीण परिवार की औसत वार्षिक आय 1,07,172 रुपये है, जबकि गैर-कृषि गतिविधियों से जुड़े परिवारों की औसत आय 87,228 रुपये रही। गांव की मासिक आमदनी का 19 फीसद हिस्सा कृषि से आता है, जबकि औसत आमदनी में दिहाड़ी मजदूरी का हिस्सा 40 फीसदी से अधिक है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैकिंग क्षेत्र से जोड़ने के लिए चलाए गए सरकार के अभियान का व्यापक लाभ हुआ है। 88.1 फीसद परिवारों के पास बचत खाते हैं। 55 प्रतिशत कृषक परिवारों के पास एक बैंक खाता है। कृषि से जुड़े करीब 26 फीसद परिवार और गैर-कृषि क्षेत्र के 25 प्रतिशत परिवार बीमा के दायरे में है। इसी प्रकार, 20.1 फीसद कृषक परिवारों ने पेंशन योजना ली है, जबकि इससके मुकाबले 18.9 प्रतिशत गैर-कृषक परिवारों के पास पेंशन योजना है। चिंता की बात यह है कि कृषि से जुड़े 52.5 फीसद परिवारों पर कर्ज का बोझ है। बकाए कर्ज के मामले में कृषि से जुड़े 52.5 फीसद परिवारों और 42.8 फीसद गैर-कृषि परिवारों पर ऋण है। गौरतलब है कि नाबार्ड हर तीन वर्ष में एक सर्वेक्षण करता है। इसके बाद एक रिपोर्ट जारी करता है। यह सर्वेक्षण में 2016-17 में किया गया और इसमें 40,327 ग्रामीण परिवार शामिल थे। यह सर्वेक्षण पूरे देश में किया गया है। इसमें 29 राज्यों के 245 जिलों में 2016 गांवों से नमूने एकत्र किए गए हैं। इस प्रक्रिया में कुल 1,87,518 लोगों को शामिल किया गया है।