नरेंद्र मोदी : चाय विक्रेता से सत्ता के शिखर तक का सफर
नई दिल्ली। गुजरात के एक रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी आज देश के प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने जा रहे हैं। गरीबी में पले बढ़े और उतार-चढ़ाव से भरी जिंदगी जीने वाले मोदी अतंत: राजनीति के शिखर तक पहुंचे। नरेंद्र दामोदरदास मोदी (63) अब 14वें प्रधानमंत्री के रूप में देश की सत्ता पर काबिज होने के लिए तैयार हैं। मोदी की कहानी मुंबइया फार्मूला फिल्म की तरह लगती है। आज मोदी के पास गुजरात में 13 वर्ष तक शासन करने का प्रशासनिक अनुभव है। सहयोगियों का कहना है कि मोदी में विपरीत अवसरों को बदलने की क्षमता है जिसके कारण वह नए मील के पत्थरों को गाड़ते जाने में कामयाब हुए हैं। गुजरात के एक छोटे से कस्बे वडनगर के एक गरीब परिवार में 17 सितंबर 195० को जन्मे मोदी अपने माता-पिता की छह संतानों में तीसरे हैं। उनका परिवार एक तंग घर में रहता था जहां सूरज की रोशनी भी बमुश्किल से पहुंचती थी और जमीन कच्ची थी। घर में मिप्ती तेल की चिमनी से अंधेरा मिटता था। उनके पिता वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे जहां बचपन में कुमार नाम से पुकारे जाने वाले मोदी ट्रेनों में एक आने की चाय और दो आने की स्पेशल चाय बेचा करते थे। तब मोदी छह वर्ष के थे। उन्हें रोज 5 बजे उठना होता था। जब स्कूल में पढ़ते थे उन दिनों भी रेलगाड़ी की सीटी सुनकर वे भागते थे और चाय बेचकर फिर कक्षा में लौटते थे। उनकी मां हीराबेन उन दिनों दूसरों के घरों में काम करती थी। बर्तन साफ करती थी। वे एक निजी कार्यालय के लिए एक कुएं से पानी भी पहुंचाती थी। जब युवा मोदी भारतीय सेना में जाने के लिए एक परीक्षा में शामिल होना चाहते थे तब उनके पिता के पास उन्हें जामनगर कस्बे तक भेजने के लिए पैसे नहीं थे। अवसाद में वह साधु बन गए। समय के साथ मोदी संन्यासी बन गए। 17 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने परिवार को बताया कि वे सत्य की तलाश में गृह त्याग करना चाहते हैं। 197० में उन्होंने घर छोड़ दिया। वे संत होना चाहते थे।