नव वर्ष 2019 को लेकर व्हाट्सऐप ग्रुपों में धमाचौकड़ी
नया साल 2019 बनाम नव वर्ष 2019 सोशल मीडिया पर ले-दे करते और विभिन्न व्हाट्सऐप ग्रुपों में धमाचौकड़ी मचाते आखिरकार वर्षांत आ गया। सब जानते हैं कि साल का आखिरी पड़ाव यह दिसम्बर का महीना ही होता है, जो आपको भावुक और उत्तेजित होने के सुअवसर देता है। इस बार 6 और 11 तक उत्सुक, आशंकित और चिंतित होने की तमाम वजह मौजूद हैं।
उत्सव के लिए साल का अंतिम दिन 31 तो है ही। चिंता और चिंतन के लिए घर की बोसीदा दीवार पर टंगा ग्रेगेरियन कैलेंडर और उस पर जल किल्लोल करती अल्पवस्त्रधारी बालाओं का कौतुक है। साल बीतेगा तो सनातन दैहिक सौन्दर्य का निजी फलसफा भी नेपथ्य में चला जाएगा।
तब यह सवाल लहराएगा कि सुंदरता को यूं ही अपने वक्त से बाहर नहीं किया जा सकता। तब तक यह तय हो चुका होगा कि किसके लिए कितने अच्छे या बुरे दिन आए। 6 दिसम्बर का क्या, वह दिन तो धार्मिकता से भरी छींटाकशी के साथ आना ही है। वह तनाव पूर्ण शांति के साथ बीत भी जाएगा।
उस दिन सबकी निगाह इस पर रहेगी कि आस्ट्रेलिया में हो रहे टेस्ट मैच में आस्ट्रेलियन स्लेजिंग अधिक हुई या देशज शब्दावली में इसकी-उसकी छिछालेदारी। यह बात पक्की है कि यह दिन कमोबेश इवेंटफुल होगा। होना ही है, उस दिन जो कुछ होगा बहुत प्लेफुल होगा।
अनुमान यह है कि जो होगा बेहद फ्रेंडली रहेगा। यत्र-तत्र कुछ गाली-गलौच यदि हुई तो सद्भावना से पूरित माना जाएगा। इसी तरह के इवेंट हमारे सेक्युलर चरित्र की निशानदेही करते हैं। 11 दिसम्बर को जो कुछ होगा, बाकमाल होगा। होते-होते जो सामने आएगा, सनसनीखेज तो होना ही है,
रोमांचकारी इतना रहेगा कि दिल मानो बार-बार धड़कना बिसरा देगा। विलम्बित ख्याल की तरह शास्त्रीयता व शायस्तगी के साथ होगा। उस दिन लोकतंत्र ही जीतेगा और यकीनन वही हार भी जाएगा। मैच टाई भी हो जाए तो कोई ताज्जुब नहीं।
हो सकता है कि किसी जादुई चिराग की रगड़ से ईवीएम में से कोई जिद्दी जिन्न भुनभुनाता हुआ नमूदार हो जाए। ऐसा हुआ तो ट्विटर पर कर्कश ट्वीट-ट्वीट मच जाएगी। वहां से ऐसी अचीन्ही आशंकित आवाज़ उठेंगी कि जैसे चहचहाते पक्षी ने किसी झाड़ी में फनदार सांप या जहरीला बिच्छू देख लिया हो।
25 दिसम्बर को अंकल माइकल की बेकरी पर सर्वधर्म संपन्न उत्सवी दोस्तों के साथ स्वादिष्ट केक पेस्ट्री उदरस्थ करने के तुरंत बाद विमर्श उठेगा कि न्यू इयर की पूर्वबेला में केवल मुंहमीठा कराने से काम न चलेगा। थोड़ा मीठा, ज्यादा चटपटा होगा तभी बात बनेगी।
तब तमाम मुद्दों पर नाना प्रकार की असहमतियों के बावजूद सब एकमत होकर कहेंगे कि जब तक मुंह में कसैलापन ढंग से न घुले, नए साल की हैंगओवर वाली भारी भरकम धूप धुली सुबह तो शायद नहीं ही आने वाली।