सनातन धर्म में सबसे ज्यादा पवित्र और प्राचीन नगरों में से एक उत्तर प्रदेश का वाराणसी काशी के नाम से भी जाना जाता है। वाराणसी हमेशा से ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का केन्द्र रहा है। ऐसी मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान शिव ने की थी। यहां पर बहुत से धार्मिक स्थल है। काशी में नवापुरा नामक स्थान पर एक कुआं है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी अथाह गहराई पाताल और नागलोक तक जाती है। कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध इस कुएं की गहराई कितनी है इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस कूप के दर्शन मात्र से ही नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है।
करकोटक नाग तीर्थ के नाम से विख्यात इसी पवित्र स्थान पर शेषावतार (नागवंश) के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी। मान्यता यह भी है की इस कूप का रास्ता सीधे नाग लोक को जाता है। इस कुएं की सबसे बड़ी मान्यता ये हैं कि इस कुएं में स्नान व पूजा मात्र से ही सारे पापों और दोषों का नाश हो जाता है। कुएं में स्नान मात्र से ही नाग दोष से मुक्ति मिल जाती है, ऐसी मान्यता है। पूरे विश्व में काल सर्प दोष की सिर्फ तीन जगह ही पूजा होती हैं उसमे से ये कुंड प्रधान कुंड हैं। ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी के अनुसार नागपंचमी के दिन छोटे गुरू और बड़े गुरू के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता है उससे तात्पर्य यह है कि हम बड़े व छोटे दोनों ही नागों का सम्मान करते हैं और दोनों की ही विधिविधानपूर्वक पूजन अर्चन करते हैं। क्योकि, महादेव के श्रृंगार के रूप में उनके गले में सजे बड़े नागदेव हैं तो वहीं उनके पैरों के समीप छोटे-छोटे नाग भी हैं और वो भी हमारी आस्था से गहरे जुड़े हुए हैं।