
बगदाद। यजीदी महिला नादिया मुराद को शुक्रवार को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है। नोबेल समिति की अध्यक्ष बेरिट रीस एंडरसन ने यहां नामों की घोषणा करते हुए कहा कि मुराद और कांगो के चिकित्सक डेनिस मुकवेगे को यौन हिंसा को युद्ध हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के इनके प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए संयुक्त रूप से चुना गया है। हम आपको बताते है नादिया और उनकी उस लड़ाई के बारे में जिसकी वजह से उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। पतले और पीले पड़ चुके चेहरे वाली मुराद (25) उत्तरी इराक के सिंजर के निकट के गांव में शांतिपूर्वक जीवन जी रहीं थी लेकिन 2014 में इस्लामिक स्टेट के आंतकवादियों के जड़े जमाने के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए। वह उत्तरी इराक में सिंजर के जिस गांव में रह रही थी, उसकी सीमा सीरिया के साथ लगती है। और यह इलाका किसी जमाने में यजीदी समुदाय का गढ़ था। नादिया उत्तर इराक के सिंजर पहाड़ियों में के एक याजीदी गांव में पैदा हुई लड़की है। वह जब 21 साल की थी, तब एक चरमपंथी समूह ने उनके गांव पर हमला कर दिया था। इन आंतकवादियों ने पुरूषों की हत्या कर दी, बच्चों को लड़ाई सिखाने के लिए और हजारों महिलाओं को यौन दासी बनाने और बल पूर्वक काम कराने के लिए अपने कब्जे में ले लिया। उन्हें करीब छ महीनों तक आईएस के लड़ाकों के बीच काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जिसमें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना शामिल है। हालांकि उनके चंगुल से छुटने के बाद नादिया ने अपने साथ हुए अपराध को अपनी ताकत बनाया और वो याजीदी लोगों के लिए कार्यकर्ता के रूप में सामने आई और इन अपराधों से जंग लड़ी।
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द लास्ट गर्ल : माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी एंड माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट’ में अपने साथ हुई बर्बरता का दिल दहला देने वाला वर्णन किया है। उन्होंने बताया था कि आईएस के आतंकवादी मुराद से यौन दासी का काम लेते थे, मतलब आईएस के लड़ाके उनसे अपनी हवस की भूख शांत करते थे। आईएस के अत्याचारों को झेलने वाली नादिया ने एक किताब भी लिखी थी और अपनी किताब के जरिए आईएस के मानवीयता को शर्मसार कर देने वाले कारनामों का खुलासा किया था। आज मुराद और उनकी मित्र लामिया हाजी बशर तीन हजार लापता यजीदियों के लिए संघर्ष कर रहीं हैं। माना जा रहा है कि ये अभी भी आईएस के कब्जे में हैं। दोनों को यूरोपीय संघ का 2016 शाखारोव पुरस्कार दिया जा चुका है। मुराद फिलहाल मानव तस्करी के पीड़ितों के लिए संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर हैं। वह कहती हैं, ‘आईएस लड़ाके हमारा सम्मान छीनना चाहते थे लेकिन उन्होंने अपना सम्मान खो दिया।’आईएस की गिरफ्त में रह चुकीं मुराद इसे एक बुराई मानती हैं। पकड़ने के बाद आतंकवादी मुराद को मोसुल ले गए। मोसुल आईएस के स्वघोषित खिलाफत की ‘राजधानी’थी। दरिंदगी की हदें पार करते हुए आतंकवादियों ने उनसे लगातार सामूहिक दुष्कर्म किया, यातानांए दी और मारपीट की। वह बताती हैं कि जिहादी महिलाओं और बच्चियों को बेचने के लिए दास बाजार लगते हैं और यजीदी महिलाओं को धर्म बदल कर इस्लाम धर्म अपनाने का भी दबाव बनाते हैं। मुराद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आपबीती सुनाई। हजारों यजीदी महिलाओं की तरह मुराद का एक जिहादी के साथ जबरदस्ती निकाह कराया गया। उन्हें मेकअप करने और चुस्त कपड़े पहनने के लिए मारा पीटा भी गया। अपने ऊपर हुए अत्याचारों से परेशान मुराद लगातार भागने की फिराक में रहती थीं और अंतत: मोसूल के एक मुसलमान परिवार की सहायता से वह भागने में कामयाब रहीं। वह बताती हैं कि गलत पहचान पत्रों के जरिए वह इराकी कुर्दिस्तान पहुंची और वहां शिविरों में रह रहे यजीदियों के साथ रहने लगीं। वहां उन्हें पता चला कि उनके छह भाइयों और मां को कत्ल कर दिया गया है। इसके बाद यजीदियों के लिए काम करने वाले एक संगठन की मदद से वह अपनी बहन के पास जर्मनी चलीं गईं। आज भी वह वहां रह रही हैं। मुराद ने अब अपना जीवन ‘अवर पीपुल्स फाइट’ के लिए समर्पित कर दिया है। पिछले सप्ताह मुराद की किताब रिलीज हुई है, जिसमें उन्होंने आईएस के कब्जे में रहने के दौरान अपनी दर्दनाक आपबीती बयान की है। नादिया अपनी पुस्तक में बताती हैं कि उन्होंने कई बार आईएस के चंगुल से भागने की कोशिश की और कई बार पकड़ी गईं। जब भी वह भागते हुए पकड़ ली जातीं, उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता। उन्होंने लिखा है, “एक बार मैंने मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहनी जानी वाली पोशाक पहनकर भागने की कोशिश की, लेकिन एक गार्ड ने मुझे पकड़ लिया। उसने मुझे मारा और छह लड़ाकों की अपनी सेंट्री को सौंप दिया। उन सभी ने मेरे साथ तब तक बलात्कार किया, जब तक मैं होशो-हवास न खो बैठी।” वह आगे लिखती हैं कि अगले सप्ताह उन्हें छह लड़ाकों की एक अन्य सेंट्री को सौंप दिया गया। उन लड़ाकों ने भी उनके साथ लगातार बलात्कार किया और मारा पीटा भी। इसके बाद एक आईएस लड़ाके को उन्हें सौंप दिया गया, जो उन्हें लेकर सीरिया चला गया। नादिया बताती हैं कि मोसुल में उन्हें एकबार भागने का मौका मिला। वह बागीचे की चहारदीवारी फांदने में सफल रहीं। लेकिन मोसुल की गलियों में भटकते हुए उन्हें जब समझ में नहीं आया कि क्या करें तो उन्होंने एक अनजान घर के दरवाजे की घंटी बजा दी और मदद की गुहार लगाई। हालांकि ऐसा नहीं है कि उन्हें हर बार अनजान लोगों से मदद मिली हो। उन्होंने आईएस के कब्जे में यौन दासी की जिंदगी बिता रही अपनी भतीजी को बताया था कि छह बार उन्होंने जिन अनजान लोगों से मदद की गुहार लगाई। लेकिन उन्होंने मुराद को वापस आईएस के हवाले कर दिया। मोसुल में लेकिन उनका साहसी कदम काम आया और वह किसी तरह शरणार्थी शिविर तक पहुंचने में सफल रहीं। नादिया के अनुसार, इराक और सीरिया में उन्होंने देखा कि सुन्नी मुस्लिम आम जीवन जीते रहे, जबकि यजीदियों को आईएस के सारे जुल्म सितम सहने पड़े। मुराद बताती हैं कि हमारे लोगों की हत्याएं होती रहीं, रेप किए जाते रहे और सुन्नी मुस्लिम जुबान बंद किए सब देखते रहे। उन्होंने कुछ नहीं किया। नादिया अपनी पुस्तक में लिखती हैं, “अपनी कहानी कहना कभी आसान नहीं होता। हर बार जब आप इसके बारे में कहते हैं, आप उसे मंजर को जैसे फिर से जी रहे होते हैं। कई बार ऐसा होता था कि आपके साथ लगातार सिर्फ बलात्कार होता रहता था। आपको नहीं पता होता था कि अगला कौन दरवाजा खोलेगा और आपके साथ रेप करेगा। हर आने वाला दिन और खौफनाक होता था।” गौरतलब है कि इराक और सीरिया में यजीदी अल्पसंख्यक समुदाय है और मुस्लिमों के अत्याचारों का शिकार है। 2014 में आईएस ने 7,000 यजीदी लड़कियों और महिलाओं को बंधक बना लिया था, जिसमें नादिया मुराद भी शामिल थीं। आईएस के लड़ाकों ने यजीदी पुरुषों और बूढ़ी महिलाओं की हत्या कर दी थी। मुराद के आठ भाई और उनकी मां की भी हत्या कर दी गई थी।