नायडू का स्टार्टअप, येदियुरप्पा का फेम और अब गुजरात कांग्रेस कर रही ‘इस पॉलिटिक्स’ का इतेमाल
नई दिल्लीः रिजॉर्ट पॉलिटिक्स सुनने में जरूर अटपटा लग रहा होगा। राजनैतिक गलियारों की वोकेबलरी में इस शब्द चलन हाल के कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से हो रहा है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो जिस तरह का पिरदृश्य आज की राजनीति में दिखाई दे रहा है। उससे ”रिजॉर्ट पॉलिटिक्स” का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है। हम आपको बताएंगे। क्या ये ”रिजॉर्ट पॉलिटिक्स” और किन-किन दलों से इसका संबंध है। साथ ही राजनीतिक दलों के दिग्गजों को इसके इस्तेमाल की जरूरत क्यों पड़ी। पॉलिटिक्स का मतलब तो बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन इसमें रिजॉर्ट जोड़ दिया जाए तो इसके मायने बहुत बदल जाते हैं। इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि किसी राज्य की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश। आजादी के बाद से इसके उदाहरण दर्जनों की संख्या में मौजूद हैं। लेकिन इसकी असल शुरुआत पहली बार जुलाई 1984 में हुई थी। जब तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) के विधायकों से भरी बसें हैदराबाद से बेंगलुरु पहुंचीं। जानकारों के मुताबिक एेसे संकटों में राजनैतिक दल उस राज्य तरजीह ज्यादा देते हैं। जहां उनकी पार्टी की सरकार हो। लेकिन अब तक हुए ज्यादातर घटनाक्रमों में कार्नाटक का बेंगलुरु में सबसे ज्यादा टूर कराए गए।
1984 में शुरू हुई असल शुरूआत
पहली बस के दरवाजे एक शक्स खड़ा था। लंबे दाढ़ी वाले व्यक्ति का नाम था चंद्रबाबू नायडू। उस दौरान राज्य में एनटी रामा राव के नेतृत्व में बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार को गिराने के लिए नाडेंड्ला भास्कार ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया था। इसके चलते टीडीपी ने अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए पहली बार राज्य से बाहर भेज दिया था। इसके करीब 11 सालों बाद सितम्बर 1995 में टीडीपी विधायकों को एक बार फिर हैदराबाद के एक होटल में बंद रखा गया जब नायडू ने विद्रोह कर दिया और अपने ससुर रामा राव को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ कर दिया था।
शब्दकोष में लाए बीएस येदियुरप्पा
लेकिन रेज़ॉर्ट पॉलिटिक्स तब राजनीतिक शब्दावली में शुमार हुआ। जब कुमारस्वामी और बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने जब भी राजनीतिक संकट पैदा होता था। उन्होंने विधायकों और समर्थकों को रिज़ॉर्ट में ले जाने का चलन बना दिया। दक्षिण भारत के सभी राज्यों में इस तरह के पर्यटन को धार्मिक दर्शन में बदल देने का श्रेय कुमारस्वामी को जाता है।येदियुरप्पा के लिए तो रेज़ॉर्ट पॉलिटिक्स ने दो तरह से काम किया। पहली बार तत्कालीन मंत्री और खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी ने उन्हें हटाने की कोशिश की और विधायकों को लेकर गोवा चले गए। येदियुरप्पा ने रेज़ॉर्ट पॉलिटिक्स को जितनी बार इस्तेमाल किया उतना शायद ही किसी नेता ने किया हो।
10 साल बाद फिर सुर्खियों में ”गुजरात”
जून 1996 में खुद गुजरात इसका गवाह बना और विधायकों को वहां से राजस्थान ले जाया गया था। इसके केंद्र में तब शंकरसिंह वाघेला थे। फिर से मौजूदा घटनाक्रम के केंद्र में वही हैं। वाघेला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के ख़िलाफ़ इसी तरह का मोर्चा खोला था। तब उन्होंने अपने समर्थकों को खजुराहो पहुंचा दिया। उनके ग्रुप को तब ‘खजुरिया’ के रूप में पहचान मिली। केशूभाई पटेल के ग्रुप को ‘हुज़ूरिया’ का नाम मिला, क्योंकि इस ग्रुप को राजस्थान ले जाया गया था।
इन सरकारों ने भी अपनाया ”आइडिया”
बेंगलुरु फिर से तब रेज़ॉर्ट पॉलिटिक्स के लिए सुर्खियों में आया, जब 2002 में विलासराव देशममुख सरकार बचाने के लिए विधायकों को महाराष्ट्र से बेंगलुरु पहुंचाया गया। चार साल बाद ऐसा ही नज़ारा फिर सामने आया, जब कर्नाटक में धरम सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल (एस) और कांग्रेस की पहली गठबंधन सरकार को एचडी कुमारस्वामी ने गिरा दिया था। राजभवन में राज्यपाल के सामने विधायकों को परेड कराने से पहले वो उन्हें एक रेज़ॉर्ट में ले गए। दूसरी बार ये 2010 में तब हुआ जब विश्वास मत हासिल करना था। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा, जो वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं, को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए उन्होंने ये तरीक़ा इस्तेमाल किया।
गुजरात में फिर बवंडर लाए ”वाघेला”
गुजरात कांग्रेस में बवंडर की मुख्य वजह इस बार भी शंकर सिंह वाघेला हैं। वे चाहते थे कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। लेकिन कांग्रेस उन्हें तरजीह नहीं दी। इसके बाद उनके समर्थक कांग्रेस छोड़ कर जाने लगे। वाघेला ने उम्मीदवार न बनाए जाने के लिए अहमद पटेल को ज़िम्मेदार ठहराया था। उन्होंने ये कदम उस समय उठाया जब राज्यसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं और अहमद पटेल को पांचवीं बार भेजने की तैयारी की जा रही थी। उनके कद का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी में उनकी गिनती सोनिया और राहुल गांधी के बाद की जाती है। बता दें कि 8 अगस्त को राज्यसभा के लिए चुनाव होने हैं। एेसे में विधायकों को टूट से बचाने के लिए उन्हें कर्नाटक के ऊर्जा मंत्री के भाई और कांग्रेस सांसद के रिजॉर्ट में रख रखा है।