नेता जी से हमारा एक्सक्लूजिव्ह इंटरव्यू
चुनाव खत्म होने के बाद भी संपादक जी को हमारे ऊपर दया नहीं आयी। बोले जरा अब नेताजी के पास जाओ और फुरसत से उनसे बात करो। उनका इंटरव्यू करो और पूछो कि ‘का हाल भा’। उनसे पूछो चुनाव के उनके खट्टे-मीठे अनुभव। उनसे पता करो कैसे लड़ा उन्होंने चुनाव और कि क्या वे जीत जाएंगे। जीतेंगे तो किस बिना पर। उन्होंने कैसे रिझाया जनता को, उनसे क्या क्या वादे किए, कैसे काटे चुनाव प्रचार के दिन। कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़े। वगैरह वगैरह। तो अब पेश है नेता जी से हमारी बातचीत, जो उनके ड्राइंग रूम के मुलायम सोफा सैट पर की गई। ज्ञानेन्द्र शर्मा द्वारा लिए गए इस इंटरव्यू के संपादित अंश सिर्फ ‘दस्तक टाइम्स’ के सुधी पाठकों के लिए:-
क्या हाल है नेता जी? चुनाव खत्म हो गया, अब तो चैन मिला है ना?
नेताजी: ठीक है भैया। लेकिन अभी चैन कहॉ। अभी तो तकदीर का फाटक खुलना बाकी है। सब कैद है, उस बटन वाली पेटी में।
कैसा रहा चुनाव, जीत जाएंगे?
नेताजी: चुनाव तो लल्लन टॉप रहा अब आगे ऊपर वाले की मर्जी।
ऊपर वाला? क्या ऊपर वाले माले पर कोई रहता है?
नेताजी: अरे नहीं सर। ऊपर वाला मतलब बिल्कुल ऊपर वाला।
मतलब ऊपर का कोई पार्टी पदाधिकारी या अफसर। है ना?
नेताजी: अरे क्यों मजाक करते हैं, भाई साहब। ऊपर वाला मतलब ऊपर बैठा भगवान। अब तो सब उसके ही हाथ में है।
लेकिन भगवान तो उनकी ही मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं?
नेताजी: हमसे जो बन पड़ा हमने किया। घर घर गए। लोगों को समझाया, बुझाया, उनसे विनती की, निवेदन किया, हाथ जोड़े, पैर छुए। जनता के साथ गंदा संदा खाना खाया, बिना फिल्टर का पानी पिया, बीड़ी पीनी पड़ी। मैले कुचैले कपड़ों वाले बच्चों को गोद में उठाकर पुचकारना पड़ा। जाने कौन-कौन से काका काकी, चाचा चाजी, बुआ फूफा, बऊ बब्बा, भतीजे, नाती पोते अपने अपने बिलों में से निकल आते हैं। कोई-कोई सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने की मुद्रा में हमारे बाल बिगाड़ देते हैं और कोई कोई बदबूदार लोग गले लगने लगते हैं। बस मत पूछिए।
और क्या-क्या करना पड़ता है?
नेताजी: मत पूछिए। यह जो जनता है ना… बड़ी कमीनी है…. इसको छापिएगा नहीं। जैसे ही चुनाव आता है, इसके मिजाज आसमान पर पहुंच जाते हैं, भाव बढ़ जाते हैं। दो कौड़ी के लोग मूछ पर ताव देने लगते हैं और उम्मीदवार के कंधे पर हाथ पटक पटक कर बात करने लगते हैं। पूछने लगते हैं, बहुत दिनों बाद दिखे नेता जी, हमारी खबर आपको चुनाव के ऐन मौके पर ही आती है, बस। और वे हमारी गाड़ी में जबरन बैठने लगते हैं।
लोग कुछ सवाल भी करते हैं?
नेताजी: हॉ, हॉ। पूछते हैं, चुनाव जीत गए तो कुछ करोगे हमरे लिए? यह भी पूछते हैं कि आपके चमचों की गुंडई कैसे बंद होगी?
आपने अपना घोषणापत्र नहीं बताया जनता को?
नेताजी: अजी घोषणापत्र को कौन पूछता है। लोग तो बस सब कुछ फ्री चाहते हैं कहते हैं, हम फ्री इंडिया में रहते हैं, हमें क्या क्या फ्री दोगे?
आपने कुछ वादा किया? लैपटॉप, फ्री डाटा, मोबाइल फोन, साइकिल, पेंशन…
नेताजी: बिल्कुल किया। लेकिन ये लैपटॉप, फोन नहीं, हमने तो कह दिया पूरा राशन पानी फ्री, कपड़ा लत्ता फ्री, पेट्रोल डीजल फ्री, गुटका सिगरेट-बीड़ी फ्री। बस का टिकट माफ, बिजली बिल माफ, सारे कर्जे माफ, चाहे जितने बच्चे हों सबकी फीस माफ, किताबें फ्री, ट्यूशन फ्री आगे के कर्जों के लिए रास्ता साफ, 5 हजार महीना विशेष भत्ता। बताइए और क्या चाहिए?
जनता तो बड़ी खुश हो गई होगी। है ना?
नेताजी: अरे कहॉ। कहते हैं लड़की के दहेज की रकम का वादा करो, ठेके पर फ्री दारू का इंतजाम हो…… मैं कहता हूॅ न भैया, यह जनता बहुत बेमुरौव्वत है…. इतने के बाद भी इनका पेट नहीं भरता।
बहुत से लोग वोट के लिए नोट बांटते हैं, शराब पिलवाते हैं लेकिन इस बार तो नोटबंदी हो गई। दिक्कत तो हुई होगी?
नेताजी: दिक्कत हो जाती अगर टिकट कट जाता तो।
कैसे?
नेताजी: देखिए हमें टिकट की पूरी उम्मीद थी सो हमने गॉव-गॉव के प्रमुख व्यक्तियों को पुराने नोट एडवांस में दे दिए थे मतदाताओं में बांटने के लिए। ठेकों को भी एडवांस दे दिया था ताकि चुनाव के समय लोग फ्री में देशी पी सकें। इससे दो फायदे हुए- पुराने नोट खप गए और रोज रोज की चिक चिक खतम हो गई। मान गए न आप हमें?… मगर भैया जरा काट छांट के लिखना। सारी पोल पट्टी न खोलके रख देना।
लेकिन दारू बांटना, नकदी बांटना तो अच्छी बात नहीं है?
नेताजी: मैं नहीं जानता अच्छा-बुरा क्या है। भैया, जो कुछ जीत दिला दे, वही अच्छा होता है। फिर आपने वो नारा नहीं सुना- कच्ची दारू कच्चा वोट, पक्की दारू पक्का वोट। और वो भी खुल्ला नोट, खुल्ला वोट। बस आप समझ लीजिए। और फिर यह चलन कोई हमने थोड़े चलाया है, बहुत पहले से यह चल रहा है।
अच्छा यह बताइए कि टिकट कैसे मिला। दावेदार तो कई थे। पुराने नेता भी थे?
नेताजी: कलम बंद करिए तो बताऊं। उसे का कहते हैं- आफ रिकार्ड- बताता हूॅ। आप तो हमारे पुराने दोस्त हैं।
नहीं नहीं, बताइए।
नेताजी: पूरे तीस लाख लगे।
तीस लाख! इतने सारे नए नोट कहॉ से लाए आप?
नेताजी: बस आप अखबार वालों की यही आदत बहुत खराब है। बाल की खाल निकालते हैं। कहीं से लाए हों, लाए तो और दिए तो। वरना सब कुछ मटियामेट हो जाता।
फिर भी?
नेताजी: दिल्ली और नोयडा में मिल रहे थे नए नोट। एक करोड़ का चैक दो और 70 लाख नकद लो। सो हमने भी ले लिए।
सुना है आपने एक अन्य प्रत्याशी की जाति का डमी उम्मीदरवार निर्दलीय खड़ा करा दिया था ताकि उसकी बिरादरी के वोट विभाजित हो जाएं।
नेताजी: हॉ किया तो था, अब आपसे क्या छिपाना और अब तो चुनाव भी हो गया, चुनाव आयोग अब हमारा कुछ नहीं कर सकता। इससे हमें बहुत लाभ हुआ। आठ हजार वोट उसने हमारे पहले नम्बर के दुश्मन से काट लिए, ऐसा अनुमान है। यही जिता देगा हमें।
आपने चुनाव में अपराधियों की और गुंडों की मदद ली?
नेताजी: अरे नहीं, भाई साहब। अब कुछ लोग हैं जो अपने आप जुड़ जाते हैं। वे भी बहती गंगा में हाथ धोने को आगे आ जाते हैैं। अब उनको मारकर भगा दें क्या?
आपके ऊपर भी तो डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। यह आपने अपने एफीडेविट में बताया है। सब जगह इसकी चर्चा है?
नेताजी: अब देखिए ना। हम तो विरोधियों की, सरकार की, पुलिस की, अफसरों की ऑख की किरकिरी हरदम रहे हैं। हमेशा जनता के लिए लड़े हैं। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है। इसी सबके बीच लोगों ने मुकदमे लिखा दिए।
पर आप पर हत्या और हत्या के प्रयास, दलित उत्पीड़न और महिला उत्पीड़न के भी तो मुकदमे हैं?
नेताजी: हैं न। लेकिन सब फर्जी हैं। राजनीतिक कारणों से हमारे ऊपर मुकदमे लगाए गए हैं। एक में भी पुलिस आज तक चार्जशीट नहीं लगा पाई, कोई सबूत नहीं है, कोई गवाह प्रशासन को नहीं मिलता। हम कहते हैं अदालत फैसला कर दे। हमारा तो न्यायपालिका में पूरा भरोसा है। सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा अदालत में। सब मुॅह की खाएंगे।
तो इन मुकदमों से आपकी जीत शक के घेरे में तो नहीं आ जाएगी?
नेताजी: अजी कैसा घेरा। कहीं कोई विरोध नहीं है। क्षेत्र में इसकी चर्चा भी नहीं होती। कुछ लोग खासकर प्रेस वाले कभी कभार इन मामलों को उठा देते हैं तो उन्हें हम अपने तरीकों से समझा देते हैं और वे समझ भी जाते हैं।
‘अपने तरीकों से’ आपका मतलब?
नेताजी: अरे भाई साहब आपसे कुछ बात छिपी है क्या। चुनाव के वक्त सबका मुॅह बड़ा हो जाता है। सबका जी जलेबी इमरती और कबाब खाने को करता है और करेगा, क्यों नहीं करेगा। आखिर सब इंसान ही तो हैं। हम खिलाते हैं। यही तो असली संसदीय लोकतंत्र है।
तो इतने से तो आपकी जीत पक्की हो गई होगी?
नेताजी: लगता तो यही है। अब कौन जाने? ऊपर वाला ही जानता है।
यह भी तो हो सकता है कि आप मुख्यमंत्री बन जाएं?
नेताजी: क्यों नहीं हो सकता। आखिर विधायक ही तो मुख्यमंत्री बनता है। और आपने देखा होगा हमारा पूरे इलाके में दबदबा है, हमारी लोकप्रियता है। तमाम सीटों के उम्मीदवार हमको पसंद करते हैं। वे का कहत हैं। हॉ, सबको हमारा साथ पसंद है।
मुख्यमंत्री बन गए तो जनता का कैसे कल्याण होगा?
नेताजी: हमारा सीधा सा फार्मूला है। पूरी यू0पी0 सरकार का सालाना बजट मान लीजिए 5 लाख करोड़ का है तो हमें इतना भर करना है कि इसमें से कोई एक लाख करोड़ मंत्रियों, विधायकों, सरकारी कर्मियों आदि के खर्च के लिए रख लिया जाएगा बाकी बची रकम में आठ करोड़ का भाग दे देना है। वित्त विभाग चार लाख करोड़ में आठ करोड़ का भाग देगा और जो कुछ निकलेगा उतने की धनराशि सब वोटरों को बराबर-बराबर बांट दी जाएगी।
सबको से मतलब? आठ करोड़ ही क्यों?
नेताजी: अरे भाई साहब 14 करोड़ पंजीकृत वोटर हैं प्रदेश में। इनमें से करीब आठ करोड़ ने वोट डाला है। हो सकता है संख्या कुछ इधर उधर हो, वित्त विभाग देख लेगा। हमने तो कहा है उंगली की चैकिंग कर लो। जिसके स्याही लगी हो उसके खाते में 5 लाख करोड़ रुपए बटे आठ करोड़ राशि पहुॅचा दी जाएगी। जो वोट डाले हैं, उन्हें ही तो लाभ मिलेगा। किस्सा खतम। जिसको जो करना हो उस पैसे का करे। हमें चैन से बैठने दे। फिर इसका एक और लाभ होगा। अगले चुनाव में सौ फीसदी मतदान होगा। ये जो जागरूकता अभियान वगैरह पर करोड़ों खर्च होता है, वो बंद।
पर यह कैसे होगा?
नेताजी: बाकी खुद समझ ल्ीजिए। अच्छा नमस्कार भाई साहब। जरा संभलकर लिखिएगा। बहुत मेहरबानी।