उत्तराखंडराज्य

नेत्रहीन नौनिहालों की आंखों का तारा बनी विजयलक्ष्मी

उत्‍तरकाशी की विजय लक्ष्‍मी ने दुनिया के सामने एक आदर्श प्रस्‍तुत किया है। वे लंबे समय से नेत्रहीन बच्‍चों की पालनहार है।

उत्तरकाशी: अपने लिए जिएं तो क्या जिएं तू जी ए दिल जमाने के लिए…, यह जनगीत उन लोगों पर सटीक बैठता है, जिन्होंने अपना सबकुछ ऐसे लोगों के लिए समर्पित कर दिया जो दिव्यांगता के चलते कहीं न कहीं समाज में उपेक्षित रह जाते हैं।

यहां बात हो रही है उत्तरकाशी जनपद के तुनाल्का निवासी विजयलक्ष्मी जोशी के सराहनीय प्रयासों की। बीएड और एमएड कर चुकी 43 वर्षीय विजयलक्ष्मी ने दृष्टिबाधित और गरीब बच्चों को शिक्षित करने का बेड़ा उठाया है। वह पिछले नौ सालों से ऐसा ही एक जूनियर हाईस्कूल संचालित कर रही हैं।

खास बात यह है कि दृष्टिबाधित बच्चों में किसी तरह की भावना न आए इस लिए वह उन्हें सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाती हैं। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 95 किलोमीटर दूर नौगांव ब्लॉक में तुनाल्का गांव विकासनगर-बड़कोट नेशनल हाईवे पर पड़ता है। इसी गांव में विजयलक्ष्मी पब्लिक एंव दृष्टिबाधितार्थ आवासीय विद्यालय हैं। इसी स्थापना उन्होंने 2007 में की थी। विजयलक्ष्मी ने बताया कि स्कूल में वर्तमान में 40 दृष्टिबाधित बच्चे और 65 सामान्य बच्चे एक साथ पढ़ते हैं।इन 65 बच्चों में से 30 बच्चे बेहद ही गरीब परिवारों से हैं, जिन्हें यहां निशुल्क पढ़ाया जा रहा है। शेष 35 बच्चों की फीस से जो लाभांश प्राप्त होता है उसको वह दृष्टिबाधित बच्चों व गरीब परिवारों की पढ़ाई पर खर्च करती है। इन बच्चों के पढ़ाई, खाने, रहने, कपड़े, साबुन-तेल, पठन पाठन सामग्री, शिक्षकों, आया, कुक की वेतन की व्यवस्था वह किसी तरह से करा पा रही है। विजयलक्ष्मी जोशी ने बताया कि सामान्य बच्चों के साथ दिव्यांग बच्चों को जूनियर स्तर तक पढ़ाने का यह देश का तीसरा स्कूल है। दो विद्यालय दक्षिण भारत में हैं।

ऐसे मिली विजयक्ष्मी को प्रेरणा

विजयलक्ष्मी बताती है उन्हें ऐसे बच्चों के लिए काम करने की प्रेरणा एक आंख से दृष्टिबाधित व बोल न सकने वाली अनुराधा सेमवाल से मिली है। वर्ष 2002 में वह पुरोला स्थित एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थीं। स्कूल के पास ही अनुराधा का घर था, वह हर दिन घर की दीवार पर बैठकर बच्चों को पढ़ते व खेलते देखती रहती थी।

अनुराधा किसी स्कूल में नहीं पढ़ती थी। रोज इस दृश्य को देखकर मन में ऐसे बच्चों के लिए कुछ करने की सोच ली। यह बात पिता, भाई व पति को बताई तो वे भी सहायता के लिए तैयार हो गए। पिता भगतराम बिजल्वाण ने तुनाल्का में भूमि दिलाई, भाई आनंद बिजल्वाण ने स्कूल बनाकर दिया और पति विरेंद्र जोशी ने पूरा सहयोग दिया।

स्कूल में ही रहते हैं दृष्टिबाधित बच्चे

स्कूल में पढ़ने वाले 19 लड़के और 21 लड़कियां हैं। इनमें 8 बच्चे अनाथ हैं। सभी दृष्टिबाधित बच्चों को स्कूल परिसर में ही रखा जाता है।

बच्चे ही हैं सबकुछ

स्कूलों में रहने वाले दृष्टिबाधिता बच्चों की पढ़ाई व रहने के लिए भारत सरकार के एनआइवीटी से कुछ अनुदान भी मिलता है। लेकिन वह सिर्फ दस माह का ही मिलता है। हालांकि वह पर्याप्त नहीं होता। क्योंकि पूरे साल बच्चे यहीं रहते हैं। विजयलक्ष्मी जोशी बताती हैं कि उनके अपने बच्चे नहीं हैं, उनके लिए यही बच्चे सबकुछ हैं।

Related Articles

Back to top button