एनजीटी ने अपने निर्देश में कहा कि स्वच्छ गंगा से जुड़े एमसी मेहता के मामले में गंगा में खनन पर रोक के आदेश पहले दिए जा चुके हैं इसलिए यह गंगा की सहायक नदी गौला पर भी लागू होगा।
जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह निर्देश राज्य सरकार की ओर से दिए गए जवाब के बाद दिया है। बीती सुनवाई में बेंच ने दिनेश पांडेय बनाम केंद्र सरकार के मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया था।
याची की ओर से कहा गया था कि ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 10 दिसंबर को नदी के 100 मीटर दायरे में किसी भी तरह का निर्माण करने और खनन के लिए रोक लगाई थी। इसलिए गौला नदी में निगम के जरिये हो रहे खनन पर रोक के साथ हासिल किए गए पर्यावरण मंजूरी को भी खारिज कर दिया जाए।
इन बातों को लेकर को शिकायत
– 30 मई 2015 को हल्दूचौड़ क्षेत्र के रहने वाले दिनेश पांडे एनजीटी में अपील की
– 15 हजार श्रमिक खनन और खनन क्षेत्र में साल भर रहते हैं, जिससे जंगल में व्यवधान होता है।
– 7000 हजार वाहन चलते हैं, जिनसे प्रदूषण होता है
– 15 स्टोन क्रशर नदी क्षेत्र के करीब हैं। इसमें खनन नियमावली-2011 में बदलाव स्टोन क्रशर को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया
– खनिज वन निगम से 17 रुपये में खरीदा जाता है, जबकि लोगों को 70 रुपये प्रति कुंतल मिलता है।
इनको बनाया गया पार्टी
– केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय
– उत्तराखंड पीसीबी
– राज्य के वन विभाग के सचिव
– वन निगम
करीब 17 करोड़ के राजस्व को लगा झटका
वर्तमान में गौला में करीब 10 लाख घनमीटर खनिज निकासी हुई है। 44 लाख घनमीटर खनिज निकासी होनी बाकी है। ऐसे में अनुमान है कि अगर गौला पूरे सत्र भर बंद रहती है, तो करीब 17 करोड़ तक केवल सरकारी विभागों के राजस्व का नुकसान होगा।