नोबेल प्रशस्ति-पत्र की चोरी से दुखी हूं: कैलाश सत्यार्थी
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने शनिवार को कहा कि अपने नोबेल प्रशस्ति-पत्र और उनकी मां की ओर से उनकी पत्नी को दिए गए गहनों की चोरी से वह दुखी हैं, क्योंकि वो परिवार के लिए बेशकीमती थे.
उन्होंने यह भी कहा कि चोरी की इस घटना ने बच्चों की लिए काम करने के इरादे को और मजबूत कर दिया और उन्होंने अतिरिक्त सुरक्षा लेने के बारे में नहीं सोचा है. सत्यार्थी ने कहा कि मेरी पत्नी और मैं लातिन अमेरिका की अपनी यात्रा से आज वापस आया और हमें देखकर काफी दुख हुआ कि घर बिखरा पड़ा था. जब मैं रवाना हुआ था तो हर चीज सुरक्षित थी. मुझे लगा था कि मेरी नोबेल प्रतिकृति (रेपलिका) और प्रशस्ति-पत्र मेरे घर में मेरे देश के लोगों के पास सुरक्षित हैं, लेकिन ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो गई.
बता दें कि सात फरवरी को सत्यार्थी के दक्षिण-पूर्व दिल्ली स्थित आवास से नोबेल शांति पुरस्कार की प्रतिकृति और प्रशस्ति-पत्र सहित कई अन्य सामानों की चोरी हो गई. पनामा के राष्ट्रपति, उनकी पत्नी और अन्य गणमान्य हस्तियों के साथ डिनर के दौरान सत्यार्थी को चोरी की इस घटना के बारे में पता चला.
उन्होंने बताया कि पनामा के राष्ट्रपति, उनकी पत्नी और अन्य गणमान्य हस्तियों के साथ मेरा डिनर काफी अच्छा चल रहा था कि तभी मुझे कुछ संदेश और फोन आए. मैंने किसी को नहीं बताया क्योंकि राष्ट्रीय सम्मान की चोरी के बारे में बताना कोई अच्छी बात नहीं है.
सत्यार्थी ने कहा कि चोर कई ऐसे बेशकीमती सामान चुरा ले गए जो उनके और परिवार के काफी करीब थे. उन्होंने कहा कि मेरी मां ने अपनी बचत और चांदी के अपने सारे आभूषण इकट्ठा किए थे ताकि हमारी शादी पर मेरी पत्नी को सोने का आभूषण तोहफे में दे सके. मैं परिवार में सबसे छोटा था, इसलिए वह मुझे और मेरी पत्नी को बहुत प्यार करती थीं. सत्यार्थी ने कहा कि मां हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन हमने उस सामान को बहुत संभाल कर रखा था. हमने उसे रखने के लिए एक लॉकर खरीदा था. बाल अधिकार कार्यकर्ता ने यह भी कहा कि प्रशस्ति-पत्र की चोरी भी उतनी ही दुखद है.
उन्होंने कहा कि यह बच्चों के लिए काम करने वाले किसी भी शख्स को नोबेल के इतिहास में दिया गया पहला प्रशस्ति-पत्र था. मैं इसे प्राप्त करने वाला एकमात्र भारतीय नागरिक था. मैंने अपना नोबेल पुरस्कार पदक दे दिया था और वह राष्ट्रपति भवन संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है. सत्यार्थी ने कहा, लेकिन प्रशस्ति-पत्र से मेरा लगाव था, इसलिए मैंने इसे नहीं दिया था. मैंने सोचा था कि मेरा पोता, जो अब दो साल का हो गया है, बड़ा होने पर इसे पढ़ेगा. मेरी पत्नी ने सोचा कि यह बेशकीमती है और हमने इसके लिए एक लॉकर खरीद था, लेकिन उसे तोड़ दिया गया.