राज्य

पंजाब विधानसभा चुनाव: इस बार काफी अलग है प्रचार अंदाज

पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार प्रचार का अंदाज बदला हुआ है। प्रत्‍याशी सभाओं के बदले डोर टू डोर पर ही अधिक भरोसा कर रहे हैं। न ज्‍यादा चुनावी शोर सुनाई देता है और न भोंपू की आवाज।

जालंधर। पंजाब विधानसभा चुनाव इस बार प्रचार का अंदाज बिल्कुल बदला नजर आ रहा है। रात के नौ बजे थे और तापमान काफी गिर गया था। लेकिन, गिरते तापमान के साथ यहां का चुनावी पारा गर्म होता जा रहा है। घर-घर जाकर प्रचार कर रहे जालंधर नॉर्थ से भाजपा उम्मीदवार और दो बार से यहां के विधायक केडी भंडारी कहते हैं, चुनाव में किसे सर्दी लगती है। वाकई शाम के बाद इनके काफिले में भीड़ बढ़ गई है। कई मायने में अपनी बिल्कुल अलग पहचान रखने वाले देश के अकेले सिख बहुल राज्य पंजाब में चुनाव के रंग इस बार काफी अलग हैं।

कुछ चुनाव आयोग की सख्ती का असर है, कुछ शीतलहर का प्रकोप, कुछ वोटरों की बदलती उम्र और कुछ विदेश से पहुंच रही एनआरआइ फौज का। हर चीज को पूरे उत्साह और तामझाम के साथ करने वाले पंजाब में इस बार विधानसभा चुनाव के दौरान न तो उत्साह की कमी है और न ही पैसों की। लेकिन, चुनाव आयोग ने खर्च के हिसाब के साथ ही नकदी की आवाजाही पर भी खासी सख्ती कर दी है। ऊपर से कुछ नोटबंदी की मार है कि सड़कों से पोस्टर, झंडे और भोंपू बजाती प्रचार गाड़ियां कम ही दिखती हैं।

राज्य में एक ही चरण में होने वाले मतदान में दो हफ्ते ही रह गए हैं। कंपकंपा देने वाली शीतलहर को देख लोगों से चुनावी सभाओं या रैलियों में आने की अपील भी बहुत कम ही हो रही है। पूरे राज्य में ज्यादातर डोर टू डोर प्रचार का ही सहारा लिया जा रहा है। जालंधर नाॅर्थ सीट पर भंडारी को चुनौती दे रहे कांग्रेस के अवतार सिंह हैनरी (जूनियर) कहते हैं, इस बार जनसभाएं हम सिर्फ बड़े राष्ट्रीय नेताओं की ही कर रहे हैं।

अलबत्ता आम आदमी पार्टी जरूर राज्यभर में छोटी-छोटी जनसभाओं पर जोर दे रही है। आतंकवाद का दंश ङोल चुके इस सीमावर्ती राज्य की 117 सीटों के लिए 32 साल बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवार मैदान में हैं। इस बार यहां 1941 उम्मीदवारों ने पर्चे भरे और नाम वापसी के बाद अब 1146 उम्मीदवार मैदान में रह गए हैं।

इसी तरह विधानसभा चुनाव में यहां के वोटरों में युवाओं की हिस्सेदारी भी रिकॉर्ड पर है। 1.9 करोड़ वोटर वाले पंजाब में एक करोड़ से ज्यादा 40 साल से कम उम्र के हैं। इनमें 3.67 लाख तो ऐसे युवा हैं, जिनका नाम पहली बार वोटर लिस्ट में आया है। दोआबा कॉलेज के छात्र मंदीप कहते हैं, आप देखिए, आज हर पार्टी दिखावे के लिए ही सही, हम युवाओं के मुद्दे की बातें कर रही है।

मंदीप कहते हैं, लगभग सभी पार्टियों की प्रचार अभियान टीम भी पूरी तरह युवाओं के हाथ में ही है। लेकिन खास बात है कि यहां वोटर जितने युवा होते जा रहे हैं, राज्य की राजनीति को संभाल रहे नेता उतने ही उम्रदराज हो रहे हैं। सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा गठबंधन के नेतृत्वकर्ता और मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल 89 साल के हैं तो उन्हें चुनौती दे रहे कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह 74 साल के। उधर, आम आदमी पार्टी ने अपना मुख्यमंत्री चेहरा ही घोषित नहीं किया है।

बड़ी संख्या में विदेश में रहने वाले पंजाब के लोग यहां की राजनीति में दिलचस्पी तो हमेशा लेते रहे हैं, लेकिन यह संभवत: ऐसा पहला चुनाव है जिसमें एनआरआइ बड़ी संख्या में पहुंचकर सीधे प्रचार में भूमिका निभा रहे हैं। आम आदमी पार्टी के ‘पंजाब चलो’ अभियान के तहत स्वीडन से आए कुलदीप सिंह पड्डा कहते हैं, यहां के हालात को देखकर हम हमेशा से परेशान रहे हैं। इस बार हमने तय किया है कि चुप रहने के बजाय इसे बेहतर करने में अपना योगदान दें।

हालांकि प्रवासियों की चुनावी भूमिका को कुछ लोग शक की नजर से भी देख रहे हैं, क्योंकि राज्य में कट्टरपंथी ताकतों को विदेश में रहने वाले यहां के प्रवासियों से काफी मदद मिलती रही है।

Related Articles

Back to top button