पढ़ाई का बढ़ता बोझ बच्चों को बना रहा आक्रामक
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बच्चों पर बढ़ता पढ़ाई का दबाव अब खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। बच्चों पर स्कूल बैग के बढ़ते बोझ, पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी चीजों में भी अव्वल होने का दबाव रहता है। वहीं इस पर न तो स्कूलों की ओर से ध्यान दिया जा रहा है और न ही अभिभावक इसे गंभीरता से ले रहे हैं।
अगर हाल में हुए प्रद्युम्न हत्या मामले की ही बात करें तो कहा जा रहा है कि आरोपी छात्र पियानो बहुत अच्छा बजाता था, लेकिन पढ़ाई में बेहद कमजोर था और यही वजह थी कि वह उस वक्त चल रही छमाही परीक्षा और पीटीएम टलवाना चाहता था। संगीत से उसे इतना लगाव था कि वह अकसर क्लासेज बंक करके संगीत रूम में चला जाता था। उसे संगीत में रुचि थी, पढ़ाई-लिखाई में नहीं।
इस बारे में जब कंसल्टेंट साइकॉलजिस्ट का मानना है कि पहले इतना दबाव नहीं था लेकिन आजकल माता-पिता का नंबरों से ऑब्सेशन हो गया है। वे बच्चे की वीकनेस या खूबियां देखना ही नहीं चाहते। किसी भी बच्चे के दोष को देखने के साथ उसकी जड़ देखनी भी जरूरी है। परिवार के महौल का बहुत असर पड़ता है।
टीचर के पास कई बच्चे होते हैं, वे हर एक बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते। अगर बच्चा पढ़ाई में मन नहीं लगाता तो वे टीचर के भी खिलाफ हो जाते हैं जबकि ऐसी स्थिति में टीचर और अभिभाव दोनों को मिलकर रास्ता निकालना चाहिए कि कहीं बात इतनी न बिगड़ जाए। आजकल बच्चों में तकनीक का एक्सपोजर ज्यादा है लेकिन उसका इस्तेमाल सही तरीके से कैसे किया जाए ये बच्चे नहीं जानते। इन सबके पीछे तीन तरह के फैक्टर काम करते हैं।
बीते साल लखनऊ में एक छात्र ने अपनी मां के फोन से पुलिस कंट्रोल रूम में फोन करके स्कूल में बम रखे होने की सूचना दे दी थी। स्कूल की छुट्टी कर दी गई और जांच में सामने आ गया कि यह कारनाम स्कूल के एक बच्चे का ही था। बच्चे से जब पूछा गया कि उसने ऐसा क्यों किया तो वह बोला, पापा जबदस्ती स्कूल भेज रहे थे तो उसके दिमाग में यह आइडिया आ गया। उसने पुलिस को कॉल करके मां का फोन भी स्विच ऑफ कर दिया था। उसने यह भी बताया कि यह आइडिया उसे टीवी सीरियल देखकर आया था।
इन सबके पीछे तीन फैक्टर काम करते हैं। नोवैलिटी सीकिंग ( कुछ नया सीखने की चाहत), सेल्फ कंट्रोल ( खुद पर नियंत्रण) और सेंसेशन सीकिंग (एक्साइटमेंट की चाह )। बच्चों के पास बहुत सारे साधन हैं जिससे वे कुछ न कुछ नया सीखते रहते हैं लेकिन इसे इस्तेमाल करने का नियंत्रण उनके पास नहीं होता है। कभी-कभी एक्साइटमेंट की चाहत में भी बच्चे ऐसे कदम उठाते हैं।
प्रद्युम्न हत्याकांड पर अभिनेत्री रेणुका सहाणे लिखती हैं, ‘अब इंटरनेशनल स्कूलों के जागने और अपने छात्रों को शिक्षित करने का वक्त है। आशा करती हूं कि कोई अमीरों को यह समझाए कि हर एख चीज खरीदी नहीं जा सकती।’ वहीं माता-पिता को यह समझना चाहिए कि पढ़ाई में अव्वल होना या सबसे ज्यादा नंबर लाना ही सबकुछ नहीं। अगर आपके बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो उसकी और खूबियों पर ध्यान दे और प्रोत्साहित करें।
बच्चे इंटरनेट और टीवी पर क्या देख रहे हैं, उस पर कैसे रिऐक्ट कर रहे हैं, इसका ध्यान भी रखें।
बच्चे पढ़ाई को लेकर स्ट्रेस में हैं तो उनसे बात करें, जरूरी लगे तो काउंसलर की सलाह लें।
बच्चा पढ़ाई में कमजोर हो तो इस बात का दोष टीचर को न दें बल्कि बात करके उसकी दूसरी खूबियों को जानें और निखारें।
क्या करें टीचर
हर बच्चा पढ़ाई में टॉप नहीं करता, इस बात को समझें और बच्चे पर प्रेशर न बनाएं।
पढ़ाई को हौव्वा न बनाएं।बच्चा परेशान दिखे तो उसके मां-बाप से जरूर बात करें। उसे रुचि के क्षेत्र में प्रोत्साहन दें।