पनकी पावर हाउस की 660 मेगावाट यूनिट पर पर्यावरण मंत्रालय का ग्रहण
एजेन्सी/ पनकी पावर हाउस की 660 मेगावाट यूनिट सहित उत्तर प्रदेश की तीन अन्य बड़ी बिजली परियोजनाओं पर पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रहण लगा दिया है। पर्यावरण संबंधी नियम इतने ज्यादा सख्त कर दिए गए हैं कि मानकों को पूरा करने में अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। नतीजा यह कि गजट जारी होने के दो महीने बाद भी अधिकारी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट ढाई वर्षों में आगे बढ़ने की बजाय तीन कदम और पीछे हो गया है। करीब डेढ़ साल भर बाद केंद्र की अनुमति लेकर लौटी प्लांट निर्माण की फाइल को दोबारा मंजूरी के लिए पर्यावरण मंत्रालय भेजना पड़ेगा। मंत्रालय के अनुसार प्रोजेक्ट को नए सिरे से तैयार करना होगा। वार्ता का दौर चल रहा है, लेकिन अधिकारियों को मंजिल तक पहुंचने का रास्ता भी नहीं मिल रहा है।
सता रहा ऑनलाइन सर्वर का डर
पावर हाउस के अधिकारियों को प्रोजेक्ट संशोधित कर दोबारा पास कराने में कोई दिक्कत नहीं है। एनजीसी से भी कोई खतरा नहीं है। डर है तो केवल पर्यावरण मंत्रालय के ऑनलाइन सर्वर का। मंत्रालय का ऑनलाइन सर्वर हर समय प्लांट से होने वाले एयर पॉल्यूशन और वाटर कजर्वेशन पर निगाह रखेगा। प्लांट कितना भी अत्याधुनिक हो वायु प्रदूषण जरूर करेगा। नियमावली कहती है कि वायु प्रदूषण इतना कम हो, मानो हो ही नहीं रहा है। वहीं पानी का प्रयोग भी कम से कम हो। जबकि ताप कंट्रोल करने के लिए पानी की सबसे ज्यादा खपत होती है।
राइट्स ने मंत्रालय को सौंप दी रिपोर्ट
12 मार्च को रेल टेक्निकल इकोनॉमिक सर्विसेज ने अपनी फिजबिलिटी रिपोर्ट रेल मंत्रालय को सौंप दी है। रिपोर्ट के साथ ही ट्रैक की रिपोर्ट भी दे दी है। राइट्स की रिपोर्ट के अनुसार रेलवे बड़ी ही आसानी से महज दो महीने में ट्रैक बिछाकर पनकी पावर हाउस तक कोयला पहुंचा सकता है। लोड अधिक होगा और मार्ग व्यस्त रहेगा। इसलिए जरूरत पड़ने पर प्लांट को दोहरी लाइन भी दी जा सकती है। राइट्स की सकारात्मक रिपोर्ट ने पावर हाउस के अधिकारियों को बड़ी राहत देते हुए यूनिट संचालन संबंधी बड़ी बाधा दूर कर दी है।
प्लांट बनाने के लिए पर्याप्त समय
प्लांट निर्माण की अभी जीरो डेट भी शुरू नहीं हुई है। जीरो डेट यानि निर्माण शुरू करने की तारीख भी अभी घोषित नहीं है। ऐसे में प्लांट तैयार कराने के लिए पावर हाउस मैनेजमेंट के पास पर्याप्त समय है। प्लांट तैयार करने में भी कम से कम चार साल का समय लगना है। यदि पर्यावरण संबंधी पेच निकल जाए तो प्लांट निर्माण की दिशा में अभी ही काम शुरू हो जाएगा। यदि अभी देरी की गई तो आने वाले समय में प्लांट निर्माण की लागत काफी ज्यादा बढ़ जाएगी। तब प्लांट निर्माण में बजट की कमी बाधक बनेगी। हालांकि अभी ही लागत दिनोंदिन बढ़ रही है।
हरदुआगंज और अनपरा भी फंसा
पर्यावरण मंत्रालय के गजट के अनुसार एक जनवरी 2017 के बाद बनने वाले सभी प्लांटों को नए मानकों का पालन करना अनिवार्य है। यही वजह है कि पनकी के साथ ही हरदुआगंज के प्लांट का निर्माण कार्य भी बड़े पेच में फंस गया है। हरदुआगंज में भी 660 मेगावाट की यूनिट का निर्माण होना है। इस यूनिट के निर्माण पर सबसे तेज काम चल रहा था। वहीं अनपरा में 500 मेगावाट की यूनिट प्रस्तावित है। पर्यावरण मंत्रालय के आदेश ने सभी प्लांटों की राह में रोड़ा अटका दिया है। रोड़ा भी इतना बड़ा है कि उसे निकाल पाना आसान नहीं है।
ये हैं पर्यावरण मंत्रालय के रोडे़
– गजट में एसपीएम (पार्टिकुलेट मैटर)को 50 से घटाकर 30 कर दिया है।
– पानी की खपत भी पांच मीटर क्यूब प्रतिघंटा से घटाकर 3.5 कर दी गई है।
– एसओएस और एनओएस के मानकों को पूरा ही बदल दिया गया है।
अनुपम अग्रवाल, जीएम पनकी पावर प्लांट
पर्यावरण मंत्रालय ने अपने नए गजट में मानक सख्त कर दिए हैं। इन मानकों का उल्लंघन किसी भी कीमत पर न करने के आदेश दिए गए हैं। इससे प्लांट निर्माण में तकनीकी दिक्कतें आ गई हैं। विशेषज्ञों से वार्ता की जा रही है। जल्द ही दिक्कत दूर करके दोबारा मंजूरी के लिए फाइल भेज दी जाएगी।