परदे के पार
भगवा सरकार और भगवाधारी नेतृत्व
विरोधियों की लाख कोशिशों के बावजूद आखिरकार देश का सबसे बड़ा सूबा भगवा रंग में रंग ही गया। बात यहां तक रहती तो ठीक थी लेकिन नतीजे आने के करीब एक सप्ताह बाद सरकार की कमान भी ऐसे को मिली जो कि विशुद्ध रूप से भगवा रंग के ही कपड़े भी धारण करते हैं। लेकिन सूबे को जो नेतृत्व मिला उसे लेकर कई लोग डरे हुए हैं तो कुछ सशंकित भी हैं। सिर्फ यही कयास लग रहे हैं कि न जाने सरकार कौन सा निर्णय ले ले। यह बात दीगर है कि सरकार और सरकार के मुखिया की ओर से बार-बार ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा बुलन्द किया जा रहा है और यह भी साफ कर दिया गया है कि तुष्टिकरण किसी का नहीं होगा। लेकिन भगवाधारी ने जिस तरह अपनी सरकार का आगाज किया है उससे सूबे के आलाधिकारियों व कर्मचारियों में तो दहशत है ही मंत्रिमण्डल के सदस्य भी ‘हिले’ हुए हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे किस अस्तबल में अपना घोड़ा खड़ा करें।
मंत्री हैं तो क्या हुआ!
अल्पसंख्यकों के प्रभुत्व वाले प्रदेश में ‘कमल’ छोड़ ‘पंजा’ थामने वाले बल्ला रख राजनेता बने अ‘सरदार’ ने काबीना मंत्री पद की शपथ तो ले ली लेकिन वे अपना बुद्धू बक्से यानि छोटे परदे यानि टीवी से अपना मोह त्याग नहीं पाये। सो, अड़ गए कि मैं तो जो कर रहा था करता रहूंगा। बोले-इसमें संविधान और प्रोटोकाल कहां बीच में आता है। मामले ने तूल पकड़ा तो भी वे अपने ही ‘स्टैण्ड’ पर कायम रहे। कहा कि मैं सुबह से देर शाम तक जनता के लिए उपलब्ध हूं लेकिन उसके बाद मैं क्या करता हूं, इससे किसी को कोई सरोकार नहीं होना चाहिए, मैं चाहे किसी हंसी के प्रोग्राम में जाऊं या कहीं और। खैर, अब उनकी शख्सियत ही ऐसी थी कि कोई विरोध नहीं कर पाया। यहां तक कि सरकार के मुखिया ने भी दबी आवाज में ही विधिक जानकारी लेने की ही बात की। लेकिन अन्तत: विजयश्री ‘शेरबाज सरदार’ के खाते में ही गयी।
मशीनों के फेर में फंसा
बीते दिनों देश में नोटबंदी जैसा बड़ा फैसला हुआ, जिसके बाद बैंकों में लम्बी-लम्बी लाइनें देखी गयीं। शुरूआती दिनों में एटीएम यानि ‘एनी टाइम मशीन’ यानि किसी भी समय पैसा उगलने वाली मशीन की खासी चर्चा हुई। उसके बाद पांच सूबों के विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव परिणाम आने के बाद एक और मशीन ने भी खासी सुर्खियां बटोंरी। कहा गया कि इसी मशीन की वजह से हम चुनाव हारे। यह मशीन थी ईवीएम यानि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन। एटीएम मशीन रुपए उगलती है तो ईवीएम वोट निगलती है। जिन्हें सबसे ज्यादा सत्ता में वापसी की उम्मीद थी उन्हें चुनावों में करारी हार मिलने के बाद कथित रूप से इस मशीन-ईवीएम की बेवफाई नागवार गुजरी। बस फिर क्या था सारा गुस्सा इसी मशीन के ही मत्थे फोड़ते हुए बेईमानी का आरोप लगा दिया गया। यानि उसी कहावत को चरितार्थ किया गया जिसमें कहा गया है कि, ‘चलनी में दूध दुहो और करमों को दोष दो’। भले ही देश अंग्रेजों से आजाद हो गया हो ताजा दौर में पहले एटीएम और फिर ईवीएम के चंगुल से देश आजाद नहीं हो पाया।
फायरब्राण्ड की सधी भाषा
चुनाव का मंच हो या फिर कोई और मौका जब भाषण देने की बारी आती थी तो उनकी वाणी से शब्दों के रूप में आग निकलती थी। इसीलिए उन्हें फायरब्राण्ड नेता कहा जाने लगा था। कम से कम पूर्वांचल में तो उनकी तूती बोलती थी। समय ने करवट ली और अब वही नेता पूरे सूबे के मुखिया हो गए हैं। ऐसे में वाणी पर नियंत्रण तो रखना ही होगा क्योंकि किसी संवैधानिक पद पर बैठकर आग उगलना शोभा नहीं देता है। यह स्थिति साफ तौर पर देखी भी गयी। सन्यासी से सिंहासन तक सफर तय करने के बाद जब वे अपने शहर यानि पीठ में वापस गए तो उनके सम्मान में नागरिक अभिनंदन का कार्यक्रम रखा गया। वहां जब वे सम्बोधित करने खड़े हुए तो उनकी भाषा खासी संयमित थी। जो कुछ कहना भी चाहते थे, उसे इषारों में ही कहा, खुलकर और अपनी पुरानी शैली में तो नहीं ही बोले। उनके भाषण को सुनने के बाद उनके एक समर्थक ने सहज टिप्पणी की कि जिम्मेदारी अच्छे-अच्छों को बदल देती है।
अब क्या करेंगे बबुआ-पप्पू
देश के सबसे बड़े सूबे में अपने आप को फिर से जिन्दा करने में जुटी पार्टी ने अपने ‘पंजे’ से ‘साइकिल’ का हैण्डल थामा था। हालांकि यह साथ बहुतों के गले से नहीं उतर रहा था लेकिन फिर भी ‘पी कर’ (पीके) मैनेजमेंट करने वालों ने नारा दे डाला कि ‘….यह साथ पसन्द है।’ लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जब चुनाव परिणाम आये तो प्रत्याशियों का शतक लगाने वाला दल सिर्फ सात के अंक तक सिमट कर रह गया। वहीं दूसरी ओर उसके सहयोगी की सिर्फ इज्जत ही बच सकी। लेकिन फिर भी दोनों ने ही जनादेश को स्वीकार किया। अब आगे की राजनीति पर मंथन होने लगा है। चर्चा है कि क्या ‘पंजा’ और ‘साइकिल’ का मिलन जारी रहेगा या फिर टूट जायेगा। चुनाव प्रचार के दौरान ‘बबुआ’ और ‘पप्पू’ की संज्ञा से नवाजे जा चुके ‘युवराजों’ का भविष्य क्या होगा, किसी को पता नहीं है। इस बारे में एक पक्ष का तो बयान आया लेकिन दूसरे पक्ष ने लम्बी सांस खींच ली है और उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। ऐसे में ‘मोटू और पतलू’ की जोड़ी, सॉरी-बबुआ और पप्पू की जोड़ी सजीव रहेगी या नहीं यह जेरे-बहस है।
कनबतिया रही चर्चा का विषय
पिछले दिनों एक फिल्म आयी थी ‘बाहुबली’। इस फिल्म के बाद हर तरफ एक ही सवाल था कि आखिर बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा। हालांकि इस सवाल का माकूल जवाब अब तक नहीं आया। इस बीच देश के सबसे बड़े सूबे में नयी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। इस दौरान पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया और पार्टी के भी संरक्षक जिन्हें धरतीपुत्र की संज्ञा मिली है, भी पहुंचे। जब कार्यक्रम खत्म हुआ तब देश के सबसे बड़े सेवक से धरतीपुत्र बड़ी ही गर्मजोशी से मिले। साथ ही उन्होंने अपने पुत्र को भी उनसे मिलवाया। इसी दौरान उन्होंने कुछ कनबतिया भी कीं। जिसे लेकर कटप्पा जैसा सवाल हर तरफ उछला कि आखिर नेताजी ने उनसे क्या कहा होगा। इसे लेकर तरह-तरह की चर्चायें भी हुईं। लेकिन कोई सटीक जवाब नहीं दे पाया। लेकिन अभी भी लोगों कीजिज्ञासा शांत नहीं हो पायी है।