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परमाणु रिएक्टर बनाना चाहता है सऊदी अरब

नई दिल्ली। सऊदी अरब अपने रेगिस्तान में दो बड़े परमाणु रिएक्टर बनाना चाहता है। इस वजह से कई बड़े देश अपनी कम्पनियों को करोड़ों डॉलर का ये कॉन्ट्रैक्ट दिलाने की होड़ में जुटे हैं। परमाणु योजनाओं में सऊदी अरब का मुख्य सहयोगी बनना चाहता है अमरीका, लेकिन उसके रास्ते में एक अड़चन ये है कि सऊदी अरब परमाणु हथियारों के बढ़ाने को लेकर लगाई जा रही बंदिशों को मानने से इनकार करता रहा है। इस वजह से डोनल्ड ट्रम्प प्रशासन थोड़ी दुविधा में है, जो परमाणु गतिविधियों को लेकर ईरान जैसे देश के ख़िलाफ़ सख़्त रवैया अपनाए हुए है। सऊदी अरब को लगता है कि परमाणु रिएक्टरों के ज़रिए वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी इज़्ज़त बढ़ा सकता है।
वहीं इससे पहले बीते महीने रूस और सऊदी अरब के संबंधों के इतिहास में पहली बार यह दस्तावेज दोनों देशों के बीच परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के निर्माण, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों एवं अनुसंधान रिएक्टरों समेत अन्य के लिए परमाणु ईंधन के आवर्तन के प्रावधान जैसे कई क्षेत्रों से जुड़े परमाणु ऊर्जा सहयोग के लिए किसी कानूनी आधार का निर्माण करता है। रूस में जारी किए गए एक बयान के अनुसार समझौते में इस्तेमालशुदा परमाणु ईंधन एवं रेडियोधर्मी कचरे, रेडियोआइसोटोप के निर्माण और उद्योग, चिकित्सा एवं कृषि क्षेत्र में उनके इस्तेमाल जैसे मुद्दे शामिल हैं।

रूस में सेंट पीटर्सबर्ग अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंच एसपीआईईएफ के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि चीन और रूस के साथ सऊदी के अच्छे व्यापारिक संबंध हैं और वे सऊदी को अमरीका से कम शर्तों पर परमाणु कार्यक्रमों में सहयोग दे सकते हैं। ख़ुद को मुक़ाबले में बनाए रखने के लिए अमरीका को अपने परमाणु सुरक्षा नियमों में थोड़ी ढील देने की ज़रूरत है। ये डील अमरीका की मर रही परमाणु रिएक्टर इंडस्ट्री को फिर से ज़िंदा करने के लिए एक अच्छा कदम साबित हो सकती है।

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