पर्यावरण को खतरे की ओर ले जा रहे ये 5 कारण, इंसानों ने की थी तबाही की शुरुआत
मानव के विकास के साथ-साथ पर्यावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती जा रही है। दिन-ब-दिन बढ़ता प्रदूषण इस समय संसार की सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। अगर पृथ्वी को मनुष्यों और अन्य प्रजातियों के लिए रहने की जगह बनाकर रखना चाहते हैं तो सबसे पहले पर्यावरण की समस्याओं का समाधान करना होगा।
वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन
पिछले कई दशकों से वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। वायु के प्रदुषित होने के साथ-साथ जल कार्बन से भर चुका है। वातावरण में मौजूद सीओ2 पराबैंगनी विकिरण को सोखने और छोड़ने का काम करती है, जिससे हवा गरम होती है और फिर जमीन और पानी भी गरम हो जाते हैं। अगर ऐसा न हो तो पृथ्वी पर हर तरफ बर्फ जम जाएगी, लेकिन वायु में अधिक मात्रा में कार्बन के होने से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके अलावा वायु प्रदूषण से तापमान में हो रही वृद्धि का सीधा असर जलवायु पर पड़ रहा है।
जंगलों की कटाई
वातावरण और महासागर से कार्बन को सोखने में जंगलों की अहम भूमिका होती है। विभिन्न प्रजातियों के पौधों और जानवरों को आसरा देने वाले जंगल नष्ट होते जा रहे हैं। इन्हें काटकर पशुपालन, सोयाबीन, ताड़ और दूसरे किस्म की खेती के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। आज धरती का सिर्फ 30 फीसदी हिस्सा जंगलों से ढंका है, जो कि 11,000 साल पहले जब खेती शुरू की गई थी उसका ठीक आधा है। हर साल लगभग 73 लाख हेक्टेयर जंगल काटे जा रहे हैं।
प्रजातियों का लुप्त होना
जंगली जानवरों का उनके दांत, खाल और दूसरी चीजों के लिए शिकार किया जा रहा है, जिस वजह से कई जानवर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं। समुंद्रों से औधोगिक स्तर पर मछलियों को पकड़ने से जलीय जीवन का संतुलन भी गड़बड़ा गया है। धरती पर मौजूद हर पौधा और प्राणी किसी न किसी से जुड़ा हुआ है। कई प्रजातियों के विलुप्त होने से इस चेन की कड़िया टूट गई हैं। अगर ऐसे ही इस चेन की कड़ियां टूटती गई तो इंसान भी मुश्किल में आ जाएगा।
मिट्टी का दोहन
अत्यधिक चराई, एक जैसी खेती, भूमि-उपयोग रूपांतरण और जरूरत से ज्यादा खाद के इस्तेमाल की वजह से दुनिया भर में मिट्टी को नुकसान पहुंच रहा है। मिट्टी की क्वालिटी खराब होती जा रही है। यूएन के मुताबिक हर साल 1.2 करोड़ हेक्टयेर जमीन खराब होती जा रही है।
अधिक जनसंख्या
दुनियाभर में इंसान की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। 20वीं शताब्दी के शुरू में दुनिया की आबादी 1.6 अरब थी, जो कि आज 7.5 अरब है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक यह 10 अरब हो जाएगी। इतनी विशाल आबादी प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी पर भारी बोझ डाल रही है।