एक समय यहां के अल्पसंख्यक, खासतौर से मुस्लिम वामपंथियों के साथ थे। लेकिन फिर जब सच्चर कमिटी आई तो उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें ज़मीन तो मिली मगर नौकरियां और बराबरी का अधिकार नहीं मिला। फिर वे भी नाराज हो गए। लेकिन हम उनके पास भी नहीं गए।
क्या वाम दल यहां की जनता को फ़ालतू समझती है? आज बंगाल में जो कम्युनिस्ट नेता हैं ये उनका रवैया गलत है। वे जनता को अपना अहंकार दिखा रहे हैं। चुनाव में वाम का चेहरा बने सूर्यकांत मिश्रा का कहना है कि हमारे साथ गेम हुआ है। यह बयान दुखद है। और यह सरासर झूठ है।
लोकसभा चुनाव में यदि आप वामपंथियों और कांग्रेस के वोट को जोड़ें तो उस हिसाब से इस गठबंधन को अभी 99 सीट मिलनी चाहिए थी। बताया जा रहा है कि वाम को चुनाव में 28 सीट पर बढ़त मिली और कांग्रेस को भी 28 सीट पर। 56 से 77 बढ़ने का आंकड़ा गलत बताया जा रहा है।
बल्कि वाम दलों की सीट जो 2014 में भी 99 थी घटकर 77 हो गई है। पश्चिम बंगाल में इस बार सबसे ज्यादा नोटा वोट पड़ा है। सीपीएम के समर्थकों के अनुसार उन्होंने नोटा में वोट किया है।
सांसद मोहम्मद सलीम कह रहे हैं कि भाजपा जो एक ताकत के रूप में उभर रही है, उसे रोकने के लिए वाम ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है। वाम दलों का यह बयान जनता को बेवक़ूफ बनाने वाला है। भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के साथ जो वाम दल गठबंधन बना रहा है उसे यह काम केंद्र में करना चाहिए।
पश्चिम बंगाल में तो भाजपा की सरकार ही नहीं है। अब चुनाव नतीजों के आने के बाद नई परिस्थितियां बनी है। अब वाम को यदि अपना भविष्य सुधारना है तो उसे भूमंडलीकरण के इस दौर में पुरानी हठधर्मिता को छोड़ते हुए गरीब, मजदूरों और मेहनतकश के लिए आवाज उठानी होगी।