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पाकिस्तान में इन दो पार्टियों ने दिए हैं सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री, नवाज अकेले 4 बार बने पीएम

पाकिस्तान आम चुनाव इस बार कई मायनों में अलग होने वाला है।  पिछले 30 साल में यह पाकिस्तान का पहला आम चुनाव है जब देश की दो सबसे पुरानी पार्टियों की लीडरशिप बदलेगी।  बल्कि अब यह देखना और इंटरेस्टिंग होगा कि देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाली पाक की दोनों राजनीतिक पार्टियों पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज में से किसकी सरकार बनेगी। वैसे आपको यह बता दें कि अभी तक देश में सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाली पार्टियां हैं पीपीपी और पीएमएलएन।

दोनों पार्टियों ने मिलकर देश को नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। जिसमें पीपीपी के 4 और पीएमएलएन के 5 पीएम शामिल हैं। बता दें कि 1990 में पाकिस्तान मुस्लिम लीग से अलग होकर शरीफ ने पीएमएलएन बनाई और तब से जब भी पार्टी सत्ता में आई नवाज प्रधानमंत्री बने। नवाज सबसे अधिक चार बार प्रधानमंत्री बनने वाले अकेले प्रधानमंत्री है। जब तक पनामा पेपर्स मामले में उनका नाम नहीं आया और भ्रष्टाचार में वह लिप्त नहीं पाए गए वही प्रधानमंत्री रहे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार का दोषी ठहराए जाने के बाद पार्टी की कमान और देश की कमान उनके भाई शहबाज शरीफ के हाथों में आ गई है। 
 
बता दें कि पीपीपी जुल्फीकार अली भुट्टो की  पार्टी रही उसके बाद पार्टी की कमान उनकी बेटी बेनजीर के हाथों में थी। उन्हें जब देश निकाला दिया गया तब भी  वह पार्टी अध्यक्ष रहीं। 2007 में उनकी हत्या के बाद पार्टी की कमान उनके पति आसिफ अली जरदारी को मिली। लेकिन 2013 के चुनाव में पार्टी की हार के बाद पार्टी की कमान 29 साल के बिलावल के हाथों में पहुंची और इस बार का चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। बिलावल ने अपना चुनावी क्षेत्र भी लियारी ही रखा है जो उनकी मां और नाना का क्षेत्र रहा है। 

वैसे इस बार के चुनाव में इन दोनों पार्टियों को बड़ा चैलेंज देने को तैयार है पीटीआई। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पाक क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान की पार्टी है। और अकेले ही यह पार्टी दोनों पुरानी पार्टियों को चैलेंज दे रही है। बता दें कि इमरान कई वर्षों से वहां की मौजूदा सरकार के लिए चैलेंज बने हुए हैं। नवाज के खिलाफ इमरान खान 2014 में आजादी मार्च निकाल कर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर चुके हैं। पाकिस्तान को और इस मार्च को करीब से देखने वालों का मानना है कि यह आजादी के बाद चलाया गया यह सबसे बड़ा आंदोलन था और यह करीब 126 दिनों तक चला था। 

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