अन्तर्राष्ट्रीय

पाकिस्तान में हिंदुओं के लिए कोई विवाह कानून नहीं

दस्तक टाइम्स एजेन्सी/ pakistan-flag_650x400_71440749168 (2)इस्लामाबाद: पाकिस्तान में रह रहे लाखों हिंदुओं के लिए कोई विवाह कानून नहीं है। इस वैधानिक शून्य ने पाकिस्तानी हिंदुओं, खासकर महिलाओं के लिए कई तरह के मुद्दों को जन्म दे दिया है।

समाचार पत्र डॉन के ‘हिंदू मैरिज बिल’ शीर्षक के संपादकीय में लिखा गया है कि जब पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने की बात आती है तो कई नेता आनन-फानन में इसके लिए सार्वजनिक बयान जारी कर देते हैं। लेकिन, जब इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने का वक्त आता है तो फिर बहुत कम प्रयास नजर आता है।

अखबार ने लिखा है, ‘इस विचित्र विरोधाभास का ज्वलंत उदाहरण हिंदू विवाह से जुड़ा दशकों पुराना कानून का मामला है।’ अखबार ने लिखा है, ‘इस वक्त, पाकिस्तान में रह रहे लाखों हिंदुओं के लिए कोई विवाह कानून नहीं है। इस वैधानिक शून्य ने पाकिस्तानी हिंदुओं, खासकर हिंदू महिलाओं के लिए कई मुद्दों को जन्म दिया है।’

अखबार ने लिखा है कि अधिकारियों के सामने अपने रिश्तों को साबित करने में हिंदू महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। विधवाएं खासकर सुविधाहीन हैं। रिश्तों का आधिकारिक प्रमाण नहीं होने की वजह से बैंक खाता खोलने से लेकर वीजा के लिए आवेदन करना तक लगभग असंभव होकर रह जाता है।

अखबार ने पूछा है कि इस स्थिति से निपटने के लिए आखिर हिंदू समुदाय क्या करे? कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हिंदू विवाह के दस्तावेज के अभाव में जबरन धर्म परिवर्तन की राह आसान हो जाती है। माना जा रहा है कि नेशनल एसेंबली की कानून एवं न्याय की स्थाई समिति हिंदू विवाह कानून विधेयक को सदन में पेश करने की अनुमति देगी।

लेकिन, शुक्रवार को समिति के अध्यक्ष हिंदू समुदाय के समक्ष यह कानून न होने से पैदा चुनौतियों का जिक्र करने के बावजूद उसी दिन समिति की बैठक में विधेयक को हरी झंडी नहीं दिखा सके। अखबार ने लिखा है कि पारिवारिक कानून राज्य का मामला है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनवा राज्यों ने हिंदू विवाह कानून संबंधी प्रस्ताव पास कर दिए हैं। लेकिन, सिंध और पंजाब की विधानसभाओं ने अभी तक यह नहीं किया है।

अखबार ने लिखा है कि खासकर सिंध की विधानसभा को यह प्रस्ताव पास करने में तेजी दिखानी चाहिए, क्योंकि अधिकांश हिंदू सिंध में रहते हैं। अखबार ने लिखा है, ‘समय पर कार्रवाई नहीं करने और कानून पारित नहीं करने से दशकों पुरानी यह नाइंसाफी बढ़ेगी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के सम्मान के हमारे नेताओं के दावों का खोखलापन साबित होगा।’

 

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