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पिता जी… मैं भारत माता की सेवा का मौका गंवाना नहीं चाहता और चला गया सरहद पर दुश्मनों से मुकाबला करने, पर मिसाल बन जाएगा ये उसने सोचा न था।
जम्मू कश्मीर के पुंछ की कृष्णा घाटी सेक्टर में ड्यूटी के दौरान शहीद हुए बीएसएफ के एएसआई कमलजीत सिंह शव रविवार को तिरंगे में लिपट कर गांव नंगलकलां पहुंचा। जैसे ही शव पहुंचा, चीख पुकार मच गई। रविवार सुबह ही गांव के शमशान घाट में शहीद को अंतिम विदाई दी गई। उनकी अंतिम यात्रा में पूरा गांव उमड़ा, वहीं शहीद को उनके बेटे नवदीप सिं ने मुखग्नि दी। शहीद कमलजीत सिंह के अंतिम संस्कार के समय माहौल काफी गमगीन रहा।
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उनकी पत्नी करमजीत और बेटी रमनदीप का रो रोकर बुरा हाल था। बुजुर्ग पिता सरूप दास तो बदहवासी की हालत में थे। फिर भी उन्होंने बेटे का एक किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि कमलजीत हमेशा भारत माता की सेवा करना चाहते थे। कमलजीत के पिता सरूप दास और साथी रह चुके हरदीप सिंह ने उनसे कहा था कि अब वे रिटायरमेंट लेकर घर आ जाएं। कमलजीत का जवाब था कि मुझे भारत माता की सेवा करने का अवसर बड़ी मुश्किल से मिला है। मैं इसे गंवाना नहीं चाहता।
बठिंडा के गांव मलकाना के रहने वाले एएसआई कमलजीत सिंह 29 वर्ष पहले बीएसफ में भर्ती हुए थे। पिछले कुछ समय से उनकी ड्यूटी 200 बटालियन बीएसफ कृष्णा घाटी सेक्टर पुंछ में थी। उनके पिता सरूप दास ने बताया कि एक माह पहले जब कमलजीत छुट्टी पर आया था तो उन्होंने कहा था कि बेटा अब तुम्हारी नौकरी बहुत हो गई है। अब तुम रिटायरमेंट लेकर घर आ जाओ और अपने परिवार के साथ रहो।
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कमलजीत के साथी पूर्व बीएसएफ हवलदार हरदीप सिंह ने भी कुछ समय पहले कमलजीत को सलाह दी थी अब तुम्हारी नौकरी बीस साल की हो गई है तुम रिटायरमेंट ले लो, लेकिन कमलजीत ने पिता व साथी को एक ही जवाब दिया था कि बड़ी मुश्किल से भारत माता की सेवा करने का अवसर मिला है, जिसे वह गंवाना नहीं चाहते। शहीद के पिता ने कहा कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है कि उसने देश की सेवा के लिए अपने परिवार की परवाह नहीं की।
हवलदार हरदीप सिंह बताते हैं कि कमलजीत अकसर उन्हें अपनी नौकरी के किस्से सुनाता था। साथी हरदीप सिंह बताते हैं कि कमलजीत सबके साथ हंसकर बात करता था और किसी के साथ भी उसने कभी अन्याय नहीं होने दिया। जब वह छुट्टी आता था तो हर गांव वासी को मिलने के साथ साथ हर उस शख्स को मिलकर जाता था जिस के साथ उसने ड्यूटी की थी।
कमलजीत की बेटी रमनदीप कौर बताती हैं कि जब भी पिता का फोन आता था तो वह सबसे पहले उसे पूछते थे कि बेटा तुम्हारी पढ़ाई कैसे चल रही है। तुम मन लगाकर पढ़ना और मेरी फिक्र मत करना। मैं तो देश व भारत माता की सेवा करता रहूंगा। शादी के कुछ साल बाद कमलजीत अपनी बहन के पास जाकर रहने लगे थे, लेकिन उन्होंने अपने पैतृक गांव मलकाना से नाता नहीं तोड़ा। जब भी वह छुट्टी पर आते तो गांव जरूर आते थे।