नई दिल्ली : देश में कई संस्कृतियां एक साथ प्रेम पूर्वक रहती हैं, यही हमारे देश और समाज की खूबसूरती है। आज पारसी समुदाय का नववर्ष है। इसे नवरोज के नाम से जाना जाता है। पारसी समुदाय में नवरोज मनाने की परंपरा करीब 3 हजार साल पहले शुरू हुई थी। माना जाता है कि आज ही के दिन समुदाय के वीर पुरुष और योद्धा जमशेद ने पहली बार लोगों को वार्षिक कैलेंडर से अवगत कराया था। पारसी समुदाय नवरोज को कई नामों से पुकारता है। जैसे, जमशेदी नवरोज, नवरोज और पतेती। ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार, पतेती या नवरोज वसंत ऋतु में उस दिन मनाया जाता है, जब दिन और रात बराबर होते हैं। पारसी इस दिन खास तरह के पकवान बनाते हैं, जिन्हें वह अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर करते हैं। साथ ही ये एक-दूसरे को उपहार भी देते हैं और दोस्तों के प्रति उनके सहयोग और प्रेम के लिए आभार भी व्यक्त करते हैं।
पारसी समुदाय मुख्य रूप से अग्नि की पूजा करता है। हिंदू धर्म में अग्नि को वाहक माना जाता है, इसलिए पूजा के वक्त अग्नि में आहुति दी जाती है। अग्नि को पवित्र माना जाता है। पारसी समुदाय के लिए नववर्ष नवरोज यानी नया दिन आस्था और उत्साह का संगम है। नवरोज, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं। यह इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं। पारसी समुदाय देश की सबसे कम आबादी वाले अल्पसंख्यक समुदायों में से एक है। लेकिन नवरोज जैसे त्योहार के माध्यम से इस समुदाय ने आज भी अपनी परंपराओं को बनाए रखा है।