पारी अफसरों की
प्रसंगवश
आला आई0ए0एस0 अफसरों के सालाना जल्से में उन्हें सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चेतावनी भरे अंदाज में कहा, मैं फेल हुआ तो आप जिम्मेदार होंगे। अफसरों ने समझा कि मुख्यमंत्री दो दिन बाद होने वाले क्रिकेट मैच के संदर्भ में यह कह रहे हैं, सो उन्होंने भारतीय क्रिकेट के यशस्वी इतिहास का एक पन्ना पलटते हुए पहले से फिक्स एक मैच खेल लिया और मुख्यमंत्री एकादश से एक रन से हार गए। पिछले साल जब ऐसे ही एक मैच में मुख्यमंत्री का कैच छोड़ा गया था, तो भी ऐसा ही कुछ नजारा था। उसकी सहसा लोगों को याद आ गई। किसी ने याद कराया कि जब नवाब साहब क्रिकेट खेलते थे तो उन्हें ‘आउट’ कहने की हिम्मत अम्पायर की नहीं होती थी। वह कहता था- ‘नॉट इन’। दिवाली में जब पारम्परिक जुआ होता है तो ठेकेदार जानबूझकर ‘साहबों’ से हारते हैं। वजह सब जानते हैं।
मैच के बाद मुख्यमंत्री ने कहा भी, ‘मैच में सहयोग मिला, उम्मीद है शासन चलाने में भी मिलेगा’। मालूम नहीं, मुख्यमंत्री को यह बात आई0ए0एस0 वीक में ही क्यों याद आती है। यह जरूर सबको मालूम है कि आई0ए0एस0 वीक में नौकरशाही को मैच हारने की धुन क्यों सवार होती है। यह बात मन ही मन दोनों ही जानते हैं। मुख्यमंत्री जानते हैं कि नौकरशाही से फिक्स मैच ही सही, जीतते रहना कितना जरूरी है। नौकरशाही जानती है कि एक दिन हार जाने में क्या हर्ज है और कि मैच की विजेता ट्राफी लेकर क्या करेंगे? कम से कम नौ साल से अपने सूबे में नौकरशाही का एक नया रूप उभरकर सामने आ गया।
बिरादरी विशेष के नौकरों को महत्वपूर्ण पद दिए जाने लगे और पुलिस और तहसील के कामों में इनका ऐसा वर्चस्व कायम हो गया कि उनकी तूती बोलने लग गई। यह काम ज्यादातर मझोले और उससे थोड़े छोटे स्तर के कर्मियों के मामलों में हुआ जिन्हें कि मलाईदार पद दिए जाने लगे। न जाने ऐसे कितने कर्मी रहे हैं जो पंचम तल से सीधे सम्पर्क कर सकते थे। कुछ को तो यह तक खुशनसीबी हासिल थी कि वे मोबाइल पर सीधे मुख्यमंत्री ने बात कर सकते थे। नौ साल ये सही खेल चल रहा है। परिणाम सबके सामने है। जब इन छुटभैयों की इतनी बड़ी हैसियत कायम हो गई तो फिर आला अफसर उनका क्या बिगाड़ पाएंगे? वे बेलगाम हो गए। दरोगाओं ने पुलिस कप्तान के प्रति अपनी वफादारी सलूट मारने तक सीमित कर दी। दूसरे मझोलों ने बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की बात सुनना बंद कर दी। ऐसे में प्रशासनिक अराजकता कायम होनी ही थी, सो हो गई। इन छुटभैयों ने राजनीति के बड़े भैयों के दरबार में गहरी पैठ बनाई और आला अफसरों का अपनी कुर्सी पर टिके रहना उनकी मर्जी पर निर्भर हो गया।
मुख्यमंत्री ने आई0ए0एस0 बिरादरी को सम्बोधित करते हुए एकदम ठीक कहा डी0एम0 (और पुलिस कप्तान भी) का काम, उनका व्यवहार सरकार की छवि बनाते-बिगाड़ते हैं। लेकिन तकलीफ की बात यह है कि मुख्यमंत्री को यह शाश्वत सत्य तभी याद आया जब उनके सामने पूरे प्रदेश की आई0ए0एस0 कौम उनका सालाना व्याख्यान सुनने के लिए उपस्थित हुई। पिछले चार साल में यदि इस सबक को कण्ठस्थ किया गया होता तो बात ही कुछ और होती।
अगर इस मूल मंत्र का जाप किया गया होता तो किसी सत्तारूढ़ दबंग के खिलाफ एफ0आई0आर0 दर्ज होने पर लखनऊ के आदेशों की प्रतीक्षा जिलों में न की गई होती और प्रतिक्रिया रंगीन न हुई होती। बालू का खनन करने वाले नदियों पर समानान्तर पुल न बनाए होते। भ्रष्टाचार पर लगाम कसी गई होती, प्रशासन को जनोन्मुख बनाया होता तो मुख्यमंत्री को वह दोहराने की आवश्यकता नहीं होती जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में नौकरशाही का सामान्य कामकाज होना चाहिए। मसलन उन्हें यह कहने की जरूरत न पड़ती कि समाज विरोधी ताकतों को कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने की इजाजत न दी जाय और कि कमिश्नर और डी0एम0 शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं को जल्दी व समय से पूरा करने में लगें। मुख्यमंत्री ने आला अफसरों से कहा कि हमारी सरकार ने पूरी स्वतंत्रता से काम करने का उन्हें मौका दिया और पिछली सरकार से तुलना कर लें तो पूरा सम्मान भी दिया। इसमें कोई शक नहीं कि पंचम तल के स्तर से आला अफसरों को काम करने की कहीं ज्यादा आजादी इस सरकार में मिली पर भ्रष्टाचार पर काबू न पाने, त्वरित न्याय न किए जाने और और एक पारदर्शी वर्क कल्चर न बन पाने से यह आजादी धरी की धरी रह गई। काश अफसरशाही ने आम जनता के साथ फिक्स मैच खेला होता! =