पिंडरा में विधायक अजय राय का तिलिस्म तोड़ना आसान नहीं
डी.एन. वर्मा
वाराणसी: कभी वामपंथ और कम्युनिस्ट योद्धा ऊदल के अभेद्य किले के रूप में पहचाना जाने वाला कोलअसला विधानसभा (अब पिंडरा) पर कांग्रेस विधायक अजय राय का डंका बज रहा है। भाजपा के विजय रथ पर चढ़कर अजय राय ने पहली बार 1996 में कांटे के संघर्ष में महज 484 मतो से नौ बार के विजेता कामरेड ऊदल को हराकर जो इतिहास बनाया था, उस पर आज तक अंगद की तरह पांव जमाये हुए हैं। भाजपा छोड़कर दल बदलने के बाद परिस्थितियां बिगड़ी तो लगा कि विधायक के हाथ से सीट रेत की तरह सरक जायेगी लेकिन क्षेत्र की जनता में स्वीकार्यता के चलते तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के तमाम घेरेबंदी और झंझावतों के बावजूद निर्दल चुनाव लड़कर विजय हासिल कर अजय राय ने अपने राजनीतिक वजूद को बचाये रखा।
इसी बीच वाराणसी संसदीय क्षेत्र से भाजपा के कद्दावर नेता डा.मुरली मनोहर जोशी और फिर भाजपा संसदीय दल के नेता (अब प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी के सामने ताल ठोंक जमानत भी गंवा दी। इसके बावजूद पिंडरा विधानसभा क्षेत्र में अजय राय का ग्लैमर कम नही हुआ है। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा अजय राय के खिलाफ मजबुत प्रत्याशी उतारने का ताना बाना बुन रही थी लेकिन इस सीट पर गठबंधन धर्म के नाते अपना दल सोनेलाल (अनुप्रिया गुट) के लिए छोड़ना पड़ रहा है। इस सीट पर अब तक विधायक अजय को बसपा और अपना दल के प्रत्याशियों से ही कड़ी चुनौती मिलती रही है। इस बार सपा से कांग्रेस के गठबंधन के बाद उनकी राह आसान बतायी जा रही है। गौरतलब हो कि पिंडरा विधानसभा क्षेत्र में कुल 341123 मतदाता है। जिसमें पुरुष मतदाता 186008, महिला मतदाताओ की संख्या 155104 है।
शहर दक्षिणी में पार्टी से बड़ा कद दादा का
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के आठों विधानसभा क्षेत्र का अलग अलग मिजाज है। इसमें तीन विधानसभा क्षेत्र भाजपा और एक कांग्रेस तो एक सपा के किले के रूप में बदल चुका है। दो विधानसभा क्षेत्र पर बसपा का कब्जा है। इसमें खास बात यह है कि इस संसदीय क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्र शहर दक्षिणी और पिंडरा ऐसा सीट हो गया है। जहां पार्टी से बड़ा कद बर्तमान विधायको का हो गया है।
शहर दक्षिणी में सभासदी से राजनितिक पारी की शुरूआत करने वाले श्यामदेव राय चौधरी ने सात बार चुनाव जीत कर ऐसा अपना व्यक्तित्व बनाया कि पार्टी उनके कद के आगे बौनी पड़ने लगी। भाजपा के बुरे दौर में भी दादा ने पार्टी का परचम लहरा कर लोगो में मिथक रच डाला कि इस सीट पर उन्हें या भाजपा को हराना विरोधी दलो के लिए तिलिस्म तोड़ने जैसा होगा। दादा का सहज व्यक्तित्व और लोगों के बीच आसानी से उपलब्धता दुख-सुख के समय क्षेत्र की जनता के घर में पहुंचना उनके कद को बढ़ाता चला गया। हाल यह हो गया कि विरोधी दल और दूसरे दल के लोग भी दादा की सहजता और सहृदयता की मिसाल देने लगे। खासकर शहर में जब जब बिजली का संकट पैदा हुआ लोग दादा के संघर्ष को देख उनके मुरीद बन गये।