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पिछले एक साल में बढ़ी भारत में इंटरनेट की Freedom
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दस्तक टाइम्स/एजेंसी:
उच्चतम न्यायालय के दखल एवं इंटरनेट पर सरकार के नियंत्रण के खिलाफ आम जनता के मुखर प्रतिरोध के कारण पिछले एक साल में भारत में इंटरनेट की स्वतंत्रता बढ़ी है।
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विश्वभर में इंटरनेट की स्वतंत्रता एवं इसमें सरकारी दखल का आंकलन करने वाली स्वतंत्र अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस की जारी रिपोर्ट “प्राइवेटाइजिंग सेंसरशिप, इरोडिंग प्राइवेसी: फ्रीडम ऑन द नेट 2015” के अनुसार पिछले एक साल के दौरान भारत का इंटरनेट फ्रीडम इंडेक्स 42 से सुधरकर 40 हो गया है।
रिपोर्ट के अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा इस साल सूचना तकनीक अधिनियम की धारा 66ए को निरस्त किया जाना भारत में इंटरनेट स्वतंत्रता को बढ़ाने में मददगार रहा।
संस्था ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने वेबसाइटों को ब्लॉक किए जाने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बना दिया है तथा ब्रॉडबैंड सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियों के उत्तरदायित्व संरक्षण को मजबूत किया है। न्यायालय ने कहा था कि सरकार या अदालत के आदेश पर वेबसाइटों को ब्लॉक करने से पूरे इंटरनेट सेवा पर आंशिक प्रभाव पड़ा था।
रिपोर्ट ने बताया कि किस तरह नेट न्यूट्रलिटी के संरक्षण एवं चुनिंदा सेवाओं के लिए दूरसंचार कंपनियों द्वारा अतिरिक्त पैसे लेने के निर्णय के खिलाफ अप्रैल 2015 में दस लाख से अधिक लोगों ने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था।
फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार भारत पिछले साल मई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोक्ता बना हुआ है लेकिन वेबसाइटों को ब्लॉक किए जाने एवं इंटरनेट स्वतंत्रता में सरकारी दखल में बढ़ोतरी हुई है।
संस्था ने इस रिपोर्ट में धारा 66ए की आलोचना करते हुए कहा कि इसके कारण वर्ष 2012 से लेकर 2015 की शुरुआत तक सोशल मीडिया पर राजनीतिक या सामाजिक सामग्री प्रकाशित करने के मामले में कई गिरफ्तारियां हुईं थी। उसने कहा कि इस धारा को उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किये जाने के बावजूद भारत में निजता के उल्लंघन का खतरा बना हुआ है।
उसने कहा कि हालिया खबरों के अनुसार सरकार केंद्रीय निगरानी तंत्र विकसित करने पर लगातार काम कर रही है ताकि वृहद स्तर पर डिजिटल संवाद पर नजर रखी जा सके। रिपोर्ट में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ट्राई को अधिक स्वायत्तता नहीं देने के लिए भी सरकार की आलोचना की गई है।