पित्त की थैली का कैंसर लीवर के अंदर पहुंचा, दूरबीन से सफल सर्जरी
रायपुर, निप्र। अंबेडकर अस्पताल के ओंकोसर्जरी यूनिट के डॉक्टर्स ने ‘लेप्रोस्कोपिक रेडिकल कोली सिस्टेक्टमी’ पद्धति से पित्त की थैली के कैंसर को जड़ से नष्ट करने में कामयाबी हासिल की है। डॉक्टर्स का दावा है कि मध्य-भारत में इससे पहले इस पद्धति से सर्जरी नहीं हुई। दोनों महिला मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है, ये कैंसर से मुक्त हैं। खास बात यह है कि लीवर के 2 सेमी हिस्से को काटकर, शेष को सुरक्षित बचा लिया गया है।
बालोद जिला की रहने वाली 49 वर्षीय लीला (बदला हुआ नाम), पेट दर्द और खाने के बाद भारीपन की समस्या लेकर अस्पताल पहुंचीं थी, जबकि अस्पताल की ही 50वर्षीय नर्स दुर्गेश (बदला हुआ नाम) ने भी पेट दर्द की शिकायत बताई थी। पहले इनकी सोनोग्राफी हुई, संकेत मिले की पित्त की थैली में कैंसर है। फिर सीटी स्कैन और एमआरआई करवाई गई। पता चला कि कैंसर लीवर के 2 सेमी अंदर तक फैला है।
लीवर के पास कई गांठें हो गई हैं। तत्काल दोनों को ऑपरेट करने का निर्णय हुआ। पहले ओपन सर्जरी, लेकिन बाद में लेप्रोस्कोपिक की प्लानिंग हुई। 3-3 घंटे चले ऑपरेशन के बाद मरीजों को 36 घंटे निगरानी में रखा गया। करीब 15 दिन बाद छुट्टी दे दी गईं। नर्स दुर्गेश ने तो अस्पताल में जॉइनिंग भी दे दी है। बता दें कि दोनों पथरी की मरीज भी थीं। डॉक्टर्स का मानना है कि छत्तीसगढ़ में ऐसे केस बहुत कम हैं, जबकि बिहार, उत्तर-प्रदेश विशेषकर गंगा की तराई वाले इलाकों में अधिक।
सबसे तेजी से फैलने वाला कैंसर
पित्त की थैली का कैंसर, बाकी कैंसर की तुलना में सबसे तेजी से फैलता है। 20 फीसदी लोगों में अधिकतम 5 साल की जिंदगी रह जाती है। इसलिए समय पर डायग्नोस होना जरूरी है। बता दें कि पिछले महीने दूरबीन पद्धति पर कार्यशाला का आयोजन भी किया गया था। पुणे से प्रसिद्ध लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. शैलेष फुंटमबेकर ने लाइव सर्जरी की थी।
अंबेडकर में फ्री ऑपरेशन
अस्पताल में कैंसर का इलाज पूरी तरह से मुफ्त है। संजीवनी सहायता कोष से राशि स्वीकृत होती है। जबकि निजी अस्पताल में इसी ऑपरेशन का खर्च 3-4 लाख रु. तक है।
पहचानें, पित्त की थैली का कैंसर
पेट दर्द, खाना खाने के बाद पेट का फूलना और लगातार पीलिया। ये पित्त की थैली के कैंसर के प्रमुख लक्ष्ण हैं। डॉक्टर की सलाह लें, सोनोग्राफी करवाएं। इसके बाद तत्काल ओंकोसर्जन की सलाह लें। सीटी स्कैन, एमआरआई से पूर्णतयाः स्थिति स्पष्ट हो जाती है।
बड़ी चुनौती थी
देश के 3-4 सेंटर में ही ये सर्जरी हो रही है। नेट पर स्पेशलिस्ट के वीडियो और लिट्रेचर को पढ़कर सर्जरी की। ये बड़ी चुनौती थी। मेरी सिर्फ इतनी सलाह है कि कोई भी व्यक्ति पेट के दर्द को नजर अंदाज न करें। डॉ. आशुतोष गुप्ता, ओकोंसर्जन, डॉ. अंबेडकर अस्पताल