वर्ष 2004 से आपदा का दंश झेल रहे पैंकुति और दारी गांवों के ऊपर पहाड़ी पर करीब 10 मीटर लंबी 10 दरारें पड़ गईं हैं। आशंका जताई जा रही है कि यदि पहाड़ दरका तो दोनों गांवों का नामोनिशान मिट जाएगा। एक-दो जुलाई की अतिवृष्टि से दोनों गांवों में कई मकानों में दरारें पड़ीं हैं। दोनों गांवों के 40 परिवार दहशत में जी रहे हैं।
तहसील मुख्यालय से 10 किमी दूर स्थित पापड़ी ग्राम पंचायत के दारी और पैंकुति तोक वर्ष 2004 से पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं, लेकिन अब तक इनका पुनर्वास नहीं हुआ। वर्ष 2013 की आपदा ने भी इन गांवों को गहरे जख्म दिए। दारी के बहादुर सिंह, मंगल सिंह, गिरीश सिंह, बलवंत सिंह, सुरेंद्र सिंह के परिवारवालों की रातें रोजाना दहशत में गुजरती हैं।
रविवार को अमर उजाला ने इन गांवों का जायजा लिया तो लोगों दहशत में दिखे। अतिवृष्टि से पैंकुति गांव के वीरेंद्र सिंह बिष्ट के मकान में दरारें आ गईं है जबकि गोमती देवी के मकान को भी नुकसान पहुंचा है। दारी गांव के मंगल सिंह के आंगन में दरारें पड़ी हैं।
विस्थापन नहीं किया तो मामला गंभीर हो सकता है
पैंकुति निवासी गोमती देवी कहती हैं कि दो गांव खतरे में हैं। सरकार और प्रशासन को ग्रामीणों को विस्थापित करने में देर नहीं करनी चाहिए। दोनों गांवों के लोगों को सुरक्षित स्थान पर नहीं बसाया गया तो मामला गंभीर हो सकता है।
ग्रामीणों को भुगतना पड़ेगा खामियाजा
दारी निवासी लक्ष्मण सिंह सयाला कहते हैं कि पुनर्वास न करने का खामियाजा दोनों गांवों के लोगों को भुगतना पड़ेगा। गांव के लोगों की जान पर बन पड़े, इससे पहले सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए।
विस्थापन क्यों नहीं किया जा रहा
दारी निवासी मंगल सिंह कहते हैं कि दोनों गांवों के लोग वर्ष 2004 से आपदा का दंश झेल रहे हैं। गांव के ऊपर की पहाड़ी लगातार दरक रही है। गांव पुनर्वास की सूची में दर्ज हैं। विस्थापन क्यों नहीं किया जा रहा है, यह चिंता का विषय है।
दारी और पैंकुति गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण कराया जाएगा। सर्वेक्षण के बाद ही पुनर्वास के लिए रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। क्षतिग्रस्त मकानों का निरीक्षण किया जाएगा।
– कृष्ण नाथ गोस्वामी, एसडीएम, मुनस्यारी