हाल ही में जारी उत्तराखंड के बीस जिलाध्यक्षों की सूची इसकी गवाही के लिए काफी है। भाजपा ने बीस जिलों में दो महिला और एक अनुसूचित जाति के नेता को जिलाध्यक्ष की कुर्सी सौंपी है।
वैसे तो पार्टी नेता यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि निर्वाचन प्रक्रिया से उनका कोई लेना देना नहीं है, लेकिन जितने भी जिलाध्यक्ष घोषित किए गए, उनके नामों के पीछे प्रदेश चुनाव अधिकारी के विवेक पर बड़े नेताओं की हसरतें भारी पड़ी हैं। यही हाल मंडल अध्यक्षों के चुनाव में हुआ। 214 मंडलों में से 186 के चुनाव हो चुके हैं, लेकिन डेढ़ दर्जन भी मंडलों में ही अध्यक्ष की कमान अनुसूचित जाति वर्ग के नेताओं को मिली है।
विधानसभा से लोकसभा चुनाव में महिलाओं के वोट लेने के लिए इस फैसले की दुहाई दी गई, लेकिन ताजे सांगठनिक चुनाव में भाजपा ने महिला और अनुसूचित जाति वर्ग को हाशिए पर धकेल दिया। पुराने भाजपाई और अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री रह चुके सुरेश राठौर को हरिद्वार जिलाध्यक्ष बनाया गया है।
वह अभी तक घोषित बीस जिलों में अकेले अनुसूचित जाति वर्ग से ताल्लुक रखने वाले जिलाध्यक्ष हैं। जबकि निवर्तमान प्रदेश कमेटी में उत्तरकाशी व नैनीताल के जिलाध्यक्ष एससी वर्ग के थे, मगर अब केवल एक रह गया है। राज्य में 2011 की जनगणना के मुताबिक 19 प्रतिशत दलित हैं और भाजपा जिलाध्यक्षों में प्रतिनिधित्व पांच प्रतिशत भी नहीं।
मंडल अध्यक्षों में भी दलितों को पर्याप्त भागीदारी नहीं दी गई। राज्य में भाजपा संगठन के कुल 214 मंडल है और 186 के अध्यक्ष घोषित हो चुके हैं। हरिद्वार के कलियर मंडल, कुमाऊं के मालधनचौड़ समेत बमुश्किल डेढ़ दर्जन मंडलों में ही दलित वर्ग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
भाजपा के कुल सांगठनिक जिले- 22
कुल घोषित जिले- 20
महिला प्रतिनिधित्व- 02
अनुसूचित जाति वर्ग- 01
भाजपा के कुल सांगठनिक मंडल- 214
कुल घोषित मंडल- 186
दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व- 18