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पीते हैं बोतल बंद पानी तो हो जाएं सतर्क, रिसर्च में मिला 90 फीसद प्लास्टिक

अगर आप बोतलबंद पानी पीते हैं तो ये खबर आपके लिए जरूरी है। न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अध्‍ययन में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। इसके मुताबिक दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले 90 फीसद बोतलबंद पानी में प्लास्टिक के छोटे टुकड़े मिले हैं। इसमें भारत भी शामिल है। रिसचर्स ने दुनिया भर के 9 देशों में बिकने वाले बोतलबंद पानी के 11 ब्रांड की जांच की। इसमें ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया और अमेरिका शामिल हैं। भारत में मुंबई, दिल्ली और चेन्नई के अलग-अलग 19 स्थानों से ये सैंपल इकठ्ठा किए गए।पीते हैं बोतल बंद पानी तो हो जाएं सतर्क, रिसर्च में मिला 90 फीसद प्लास्टिक

टॉप ब्रांड के बोतलबंद पानी में मिला प्लास्टिक

इस रिसर्च में टॉप ग्लोबल ब्रांड एक्वाफिना, एवियन और भारतीय ब्रांड बिसलरी की भी जांच की गई। चेन्नई में बिसलरी के एक सैंपल में पांच हजार माइक्रो प्लास्टिक पार्टिकल प्रति लीटर पाए गए। जि‍न ब्रांड के नमूनों में 90 फीसद से ज्यादा प्लास्टिक की पहचान हुई, उसमें एक्वा, एक्वाफिना, दासानी, एवियन, नेस्ले प्‍योर लाइफ और सैन पेलेग्रिनो जैसे प्रमुख ब्रांड शामिल थे। इनमें एक्वा और एक्वाफिना भारत में ज्यादा बिकते हैं। हालांकि बॉटलिंग कंपनियों का दावा है कि वो क्वालिटी कंट्रोल के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। रिसर्च में जो तथ्य सामने आए हैं, वो वाकई चौंकाने वाला है, क्योंकि पानी के सैंपल में कार्सोजेनिक पदार्थ पाए गए हैं।

पानी भरते समय अंदर चले जाते हैं हानिकारक कण

इसके अलावा प्लास्टिक की बोतल बंद पानी में पॉलीप्रोपाइलीन, नायलॉन और पॉलीइथाईलीन टेरेपथालेट जैसे पदार्थ मिले हैं। रि‍सर्चर ने बताया कि‍ इन सभी का इस्तेमाल बोतल का ढक्कन बनाने में होता है। ये अवशेष बोतल में पानी भरते समय पानी में शामिल हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। उन्‍होंने बताया कि‍ इस अध्ययन में हमें जो 65% कण मि‍ले हैं वे वास्तव में टुकड़े के रूप में हैं न कि‍ फाइबर के रूप में। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बोतल में इन प्‍लास्‍टि‍क के कणों की संख्‍या शून्य से लेकर 10,000 से अधिक तक हो सकती है।

बोतलबंद पानी में मिले माइक्रोप्लास्टिक के कण

रिसचर्स ने स्पेक्ट्रोस्कोपिक विश्लेषण के बाद पाया कि 1 लीटर की पानी की बोतल में औसत रूप से 10.4 माइक्रोप्लास्टिक के कण होते हैं। पहले के अध्ययन के अनुसार यह नल के पानी में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक के कण से दो गुना से भी ज्यादा होते हैं। रिसर्च के जो आंकड़े सामने आए हैं, उसके मुताबिक ज्यादातर मिलावट पैकेजिंग, बॉटलिंग के दौरान ही हुई है।

भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर के बाजार पर ठोस नियंत्रण नहीं है, देश में छोटे से लेकर बड़े शहरों में तमाम तरह के बोतल बंद पानी के ब्रांड काम कर रहे हैं। भारत में पानी की गुणवत्ता परखने का काम राज्य और केंद्र दोनों स्तर पर होता है। जहां बॉटलिंग प्लांट पर राज्य सरकार की एजेंसी नजर रखती है। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्डस यानी BIS और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) इन पर नजर रखता है। हालांकि ये रिपोर्ट सामने आने के बाद अब तक इन संस्थाओं का कोई बयान नहीं आया है।

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